बाबा साहेब का जन्म महाराष्ट्र के महार समुदाय में हुआ था, जिससे उस समय अछूतों में गिना जाता था. जातिगत व्यवस्था के विषय का बाबा साहेब के जीवन पर काफी प्रभाव पड़ा था. बाबा साहेब ने जीवनभर जातिगत व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई और दलितों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया. बाबा साहेब ने गोलमेज सम्मेलन में भी दलितों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई थी, दलितों के लिए इतना कुछ करने वाले बाबा साहेब ने पूना पैक्ट जैसे बिल को मजूरी कैसे दी ? बाबा साहेब ने क्यों कहा कि पूना पैक्ट 1932 मेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती है? जी हाँ.. हम उसी पूना पैकट की बात कर रहे है, जिसमे दलितों के आरक्षित अधिकारों को खत्म करना था.
दोस्तों, आईये आज हम हमारे लेख से आपको बताएंगे कि बाबा साहेब ने पूना पैक्ट को मंजूरी क्यों दी ? क्यों बाबा साहेब ने दलितों के आरक्षित अधिकारों को खत्म होने दिया ?
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‘पूना पैक्ट 1932 मेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती है’
सबसे पहले हम आपको बता दे कि 24 सितम्बर 1932 को डॉ. बाबा साहेब और अन्य हिन्दू नेताओं के कहने पर उच्च जाति के हिन्दुओं और दलितों के बीच एक समझौता हुआ था, जिससे पूना पैक्ट के नाम से जाना जाता है. इस समझौते के अनुसार दलितों के निर्वाचन मंडल को समाप्त कर दिया गया तो दलित वर्ग को हिन्दू वर्ग में ही सुरक्षित रखने का फैसला किया गया था, इसमें दलितों के चुनाव में विशेषाधिकार/ आरक्षण को खत्म कर दिया था.
अंबेडकर के नेतृत्व में दलित वर्गों ने संयुक्त निर्वाचन क्षेत्र के इस समझौते को स्वीकार कर लिया था. जिस चीज़ के लिए अम्बेडकर इतने लम्बे समय तक लड़ता आया था, दलितों के जीवन स्तर को ऊचा उठाने की कोशिश में जिस बाबा साहेब ने अपना पूरा जीवन लगा दिया, उन्होंने एक ऐसे समझौते के लिए दलित वर्गों को मानने के लिए कहा जो समझौता दलितों से उनके आरक्षित अधिकारों को खत्म करता है. दलितों को यह आरक्षण खुद बाबा साहेब ने दिलवाया था.
हुआ यह था कि बाबा साहेब द्वारा गोलमेज सम्मेलन ने ब्रिटिश सरकार के सामने दलितों के लिए कुछ क्षेत्रों में आरक्षत देने की बात रखी. और ब्रिटिश सरकार को बताया की भारतीय समाज में सदियों से दलितों और पिछड़े वर्ग के लोगो की स्थिति कितनी दयनीय रही है. बाबा साहेब ने अपने तर्को से ब्रिटिश सरकार को मना लिया और दलितों को कुछ विशेषाधिकार दिलाये.
जिसकें बाद हिन्दू नेताओं ने इसका विरोध किया. बाबा साहेब को बहुत सारी धमकियां मिली, कि इस विशेषाधिकार को खत्म किया जाये. लेकिन बाबा साहेब ने ऐसा नहीं किया. जिसके बाद बाब असहेब ने पास एक पत्र आया कि अगर यह अधिकार खत्म नहीं किया गया तो हम दलितों को ही खत्म कर देंगे. जिसके बाद बाबा साहेब ने सोचा की जो यह लड़ाई में लड़ रहा हु, यह दलितों के लिए है. अगर दलित ही नही रहेंगे तो इन अधिकारों का क्या मतलब… जिसके बाद बाबा साहेब ने पूना पैक्ट समझौते को मान लिया और साथ ही कहा कि पूना पैक्ट 1932 मेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती है.
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