बाबा साहेब को हम संविधान निर्माता, राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री, वकील, पत्रकार और समाज सुधारक के रूप में जानते है. इनका जन्म महाराष्ट्र के एक महार परिवार में हुआ था, जिससे उस समय हमारे समाज में पायदान की सबसे निचली सीढी पर रखा गया था. उस समय महार जाति को अछूत माना जाता था. जिसके चलते उन्हें जीवन भर जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा था. उनकी जाति के कारण जाने कितनी बार उन्हें दुत्कारा गया था, जिसके बाद उन्होंने जाति व्यवस्था के खिलाफ विरोध किया, दलितों को उनके हको के प्रति जागरूक किया और महिला सशक्तिकरण पर बल दिया. बाबा साहेब को दलितों का मसीहा भी कहा जाता है. क्यों कि बाबा साहेब ने अपना पूरा जीवन दलितों को उनके अधिकार दिलाने में लगा दिया था. जिसके बाद उन्हें सामाजिक सुधारक एक तौर पर भी लोग जानने लगे.
दोस्तों, आईये अज हुमाप्को बताएंगे कि बाबा साहेब ने ऐसा क्यों कहा था कि वह मातृभूमि पर गर्व नहीं करते? बाबा साहेब जिसने पूरा जीवन अपने समाज को जागरूक करने में लगा दिया उन्होंने असा क्यों बोला होगा ?
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बाबा साहेब ने कहा था कि ‘मैं मातृभूमि पर गर्व नहीं करता’
बाबा साहेब जिन्हें समाज सुधारक और दलितों के मसीहा के रूप में जाना जाता है. हम आपको बता दे कि राष्ट्रपिता कहे जाने वाले गांधी और बाबा साहेब के बीच वैचारिक मतभेद हमेशा से ही था. क्यों कि गांधी हमारे समाज में वर्ण व्यवस्था को अच्छा मानते थे, जबकि बाबा साहेब हिन्दू वर्ण व्यवस्था का विरोध करते थे. लेकिन आज हम उस समय की बात करेंगे जब बाबा साहेब और गांधी पहली बार मिले थे.
1931 में, बाबा साहेब और गांधी की पहली बार मुलाकात हुई थी. गांधी ने कई बार बाबा साहेब को पत्र लिख का मिलने को बुलाया था. एक दिन बाबा साहेब गांधी से मिलने गए. जब गांधी पहली बार बाबा साहेब से मिला था तो उन्हें नहीं पता था बाबा साहेब एक दलित है. वह तो मानते थे कि बाबा साहेब एक ब्राह्मण है जिसके मन में दलितों के लिए करुणा के भाव है.
दोनों की पहली मुलाकात के समय गांधी को पता चला कि बाबा साहेब एक दलित है. गांधी ने बाबा साहेब से पुछा कि “आप कांग्रेस के इतनी कटु आलोचना क्यों करते है?” क्यों कि उस समय कांग्रेस की आलोचना करना मतलब होता था कि मातृभूमि की आलोचना करना.
बाब साहेब ने इस बात का जवाब देते हुए कहा कि “गांधी जी मेरी अपनी कोई मातृभूमि नहीं है, कोई भी अछूत जिसमे थोड़ी भी चेतना हो, इस मातृभूमि पर गर्व नहीं करेगा”.
क्योंकि हमारे समाज ने बाबा सहेव्ब ने साथ भुत ही निर्यता पूर्ण व्यवहार किया था. बाब साहबे ने जीवन भर जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा था. वह दलितों होने के कारण पूरा जीवन अपना खुद का घर तक नहीं खरीद पाए थे. जिसके बाद उन्हें यह मानना कि वह मातृभूमि पर गर्व नहीं करेंगे.
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