Hindu Mandir: साल में 8 महीने गंगाजल में डूबा रहता हैं वाराणसी का यह मंदिर, जानें क्या है इसके पीछे का रहस्य

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भारतरवर्ष में शायद ही ऐसा कोई हिन्दू राजा रहा होगा जिसने मंदिरों का निर्णमाण न करवाया हो. और जिसने भी बनवाया उसमे एक ऐसी खासियत छोड़ गया कि जिसके पीछे का रहस्य आज तक कोई वैज्ञानिक नहीं सुलझा पाया. हिंदू देवी देवताओं (Gods) के सैकड़ों मंदिर मौजूद हैं. वाराणसी(varanasi) में सामान्य मंदिरों से अगल एक ऐसा मंदिर भी मौजूद हैं जो बहुत ही अद्भुत हैं. वाराणसी में मौजूद ये मंदिर मणिकर्णिका घाट  पर मौजूद हैं. इस मंदिर का नाम रत्नेश्वर महादेव मंदिर हैं.

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यह मंदिर कई खास वजहों से श्रद्धालुओं के बीच आकर्षण का केंद्र है. मंदिर की सबसे अधिक अनोखी बात यह है कि यह मंदिर मणिकर्णिका घाट (Manikarnika Ghat) पर नीचे बना हुआ है जिस कारण यह रत्नेश्वर महादेव मंदिर (Ratneshwar Mahadev Temple) साल में 8 महीनों तक गंगाजल में डूबा रहता है.

क्या है रत्नेश्वर महादेव मंदिर का रहस्य?

रत्नेश्वर महादेव मंदिर अद्भुत शिल्प कला के आधार पर बना हुआ है. इस मंदिर की खास बात ये है कि ये मंदिर सालों से 9 डिग्री के एंगल पर झुका हुआ है. मंदिर से एक रहस्य यह है कि इसकी छज्जे की ऊचांई पहले 7-8 फीट थी जो अब केवल 6 फीट रह गई है. मंदिर के 9 डिग्री पर झुके होने को लेकर भी वैज्ञानिक कुछ पता नहीं लगा पाएं हैं.

8 महीने क्यों डूबा रहता है मंदिर

मंदिर मणिकर्णिका घाट पर बिल्कुल नीचे बना हुआ है. गंगा में जल स्तर बढ़ने की वजह से साल में करीब 8 महीने तक जल में डूबा रहता है. कई बार जल का स्तर अधिक बढ़ने पर मंदिर का शिखर तक पानी में डूब जाता है. इस मंदिर में सिर्फ 3-4 महीने ही पूजा होती है. हालांकि महीनों तक पानी में डूबे रहने के बाद भी मंदिर को कोई नुकसान नहीं होता है. मंदिर के पानी में डूबे रहने के पीछे एक पौराणिक कथा भी है.

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मंदिर से जुड़ी कुछ मान्यताएं

रत्नेश्वर महादेव मंदिर के नाम को लेकर एक पौराणिक कहानी है कि यह मंदिर अहिल्याबाई होल्कर के शासन काल के दौरान बनाया गया था. अहिल्याबाई की दासी रत्नाबाई एक शिव मंदिर बनवाना चाहती थी. उन्होंने ही यह मंदिर अहिल्याबाई की मदद से बनाया था. हालांकि रत्नाबाई के मंदिर का नाम अपने नाम पर रखने को लेकर अहिल्याबाई ने विरोध किया था. रानी के विरुद्ध जाकर रत्नाबाई ने मंदिर का नाम अपने नाम पर “रत्नेश्वर महादेव मंदिर” रखा. ऐसी मान्यता है कि अहिल्याबाई ने नाराज होकर श्राप दिया था जिस वजह से यह मंदिर टेढ़ा हो गया है.

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एक अन्य मान्यता है कि एक संत ने बनारस के राजा से मंदिर की देखरेख के लिए जिम्मेदारी मांगी थी. राजा के मना करने पर संत ने श्राप दिया था कि इस मंदिर में पूजा के लायक नहीं होगा. इस वजह से भी मंदिर 8 महीनों तक पानी में डूबा रहता है जिस कारण इसमें पूजा नहीं होती है.

मंदिर का निर्माण

भारतीय पुरातत्व विभाग के मुताबिक इस मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में हुआ था. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण सन 1857 में अमेठी के राज परिवार ने करवाया था.

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