देवों के देव महादेव शिव जी को भांग, धतूरा, बेलपत्र और जल अर्पित किया जाता है. शिव जी की पूजा के लिए इन चीजों का होना अनिवार्य है. कहते हैं कि भगवान शिव को सावन का महीना बहुत पसंद है.
शिव जी की पूजा करने से रुके हुए सभी काम पूरे हो जाते हैं. आज हम बात करेंगे कि भगवान शिव को आखिर भांग और धतूरा क्यों चढ़ाया जाता है. तो चलिए जानते हैं एक लोटा जल से प्रसन्न होने वाले भगवान शिव के शिवलिंग पर भांग और धतूरा क्यों चढ़ाया जाता है.
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क्यों चढ़ाया जाता है धतूरा?
शिव पुराण के अनुसार शिवलिंग पर भांग व धतूरा चढ़ाने की एक खास कथा है. कहते हैं कि सागर मंथन के दौरान जब समुद्र से कई सारी वस्तुएं निकलीं तब देवों और राक्षसों ने आपस में उसे बांट लिया. समुद्र मंथन में विष का प्याला भी निकला था जिसे किसी ने नहीं ग्रहण किया.
उस वक्त देव और दानव भगवान शिव के पास वो विष का प्याला ले कर गए थे. ऐसे में भगवान शिव ने उस विष के प्याले को पी डाला था. शिव जी ने सृष्टि की रक्षा करने के लिए उस विष को अपने गले में उतार लिया था.
भांग और धतूरा इस्तेमाल करने की वजह
विष के प्याले को धारण करने के बाद भगवान शिव अचेत हो गए थे. उस वक्त सभी देव व दानव चिंतित हो गए थे. ऐसे में आदि शक्ति के कहने अश्विनी कुमार ने भांग, धतूरा, बेल आदि औषधियों से भोलेबाबा की व्याकुलता को दूर किया.
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उनके सिर पर भांग, धतूरा और बेल पत्र रखा गया और निरंतर जलाभिषेक किया गया. इससे धीरे-धीरे शिव के मस्तिष्क का ताप कम हो गया. उसी समय से भोले बाबा को भांग और धतूरा चढ़ाया जाने लगा.
एक और कथा
वहीं शिवलिंग पर भांग धतूरा चढ़ाने को लेकर एक और कथा भी है. शिव जी हमेशा ही साधना में लीन हुआ करते थे. वे कैलाश पर्वत पर साधना किया करते थे. कैलाश पर्वत में घनघोर ठंडक होती है.
ऐसी ठंडी में उघारे बदन शिव जी तपस्या कर रहे थे. ऐसे में उन्हें गर्माहट प्रदान करने के लिए उन्होंने भांग और धतूरे का इस्तेमाल किया था. आज भी हिमालय पर संन्यासी इसका सेवन कर खुद को गर्म रखते हैं.
जो त्याज है वो शिव का
भगवान शिव को धतूरा और भांग चढ़ाने के पीछे भी एक भाव यह भी है कि ये चीजें त्याज्य श्रेणी (जिनका कुछ उपयोग) में आती हैं. भगवान शिव संदेश देते हैं कि मैं उनके साथ भी हूं जो समाज द्वारा त्याग दिए जाते हैं. इसलिए धतूरा भगवान शिव को चढ़ाया जाता है.
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सबसे न्यारा है शिव का स्वरूप
महादेव ऐसे भगवान है जिन्होंने संसार में सभी को अपनाया है। उनके लिए कोई पराया नहीं है. वे सृष्टि का भला चाहते हैं तो उन्होंने विषपान किया और स्वयं की नहीं बल्कि औरों की चिंता की.
वे गले में आभूषण नहीं बल्कि सर्पों का हार पहनते हैं और भस्म रमाते हैं. वे एकमात्र ऐसे देवता हैं जो भक्त से शीघ्र प्रसन्न होते हैं. उन्हें ज्यादा कुछ नहीं बल्कि सिर्फ पत्तों व फूलों से या फिर जल से भी प्रसन्न किया जा सकता है.