सफदरजंग अस्पताल फ्रॉड: छुट्टियां और प्रमोशन के बीच का गणित अभी भी अधूरा है

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Dr Sujata Sarabhai Safdarjung Fraud Details – नेताओं का फ्रॉड होना सबने सुना है…पुलिसवालों को घूस लेते हुए देखा है…भिखारियों को घर लूटते भी देखा है. लेकिन धरती पर भगवान के दूसरे रूप माने वाले डॉक्टर्स भी ऐसा कर सकते हैं, यह कोई सपने में भी नहीं सोच सकता. डॉक्टर्स सफेद कोर्ट इसलिए पहनते हैं क्योंकि सफेद रंग को शांति, पवित्रता और ईमानदारी का प्रतीक माना जाता है. अस्पताल में भर्ती हुआ मरीज, डॉक्टर में अपना भगवान देखता है…उसे उम्मीद होती है कि सामने सफेद कपड़े में जो शख्स खड़ा है या खड़ी है, वो योग्य है और वही उसे ठीक कर सकती है. लेकिन जब यह पता चले कि अस्पताल में सफेद कोट में खड़े डॉक्टर फर्जी हैं, घपला किया है या धोखेबाजी उनकी फितरत में है, फिर क्या होगा? आप भी सोच रहे होंगे कि हम कैसी बातें कर रहे हैं. लेकिन यही सच्चाई है और कुछ ऐसा ही कांड दिल्ली के सुप्रसिद्ध अस्पताल सफदरजंग में हुआ है.

समझिए पूरा मामला

यह मामला है 90 के दशक के अंतिम वर्षों का. साल था 1997 का. सफदरजंग अस्पताल से प्लास्टिक सर्जरी में M.CH करने के लिए एक 30 वर्षीय महिला का एडमिशन हुआ. डिपार्टमेंट था बर्न एंड प्लास्टिक सर्जरी. उस समय इस डिपार्टमेंट के हेड थे डॉ एस पी बजाज (Dr SP Bajaj). M.CH कोर्स के दो वर्ष के दौरान उस महिला ने अपना सीनियर रेजिडेंटशिप पूरा कर लिया. तारीख थी 30 अप्रैल 1999 की. उसके ठीक 1 महीने 5 दिन के बाद यानी 5 जून से उस महिला ने फिर सीनियर रेजिडेंट के रुप में काम करना शुरु कर दिया. उन्होंने इस पोस्ट पर 26 फरवरी 2000 तक काम किया.

उस दौरान ऐसी खबरें उड़ी कि डिपार्टमेंट हेड डॉ एस पी बजाज ने उस महिला को काफी रियायतें दी थी. ऐसा कई बार हुआ, जब वह महिला बिना किसी आवेदन और बिना किसी परमिशन के देश से बाहर छुट्टियों पर जाती रहीं लेकिन पीछे से उनकी हाजरी लगती रही. कभी भी उन्हें अनुपस्थित मार्क नहीं किया गया और जब अनुपस्थित मार्क किया भी गया तो उसे मैनेज कर दिया गया. ध्यान देने वाली बात तो यह है कि उस महिला ने उस दौरान छुट्टियों पर रहने के बावजूद सैलरी के पूरे पैसे उठाए. इस महिला का नाम है डॉ सुजाता साराभाई, जो अभी भी सफदरजंग अस्पताल में कार्यरत हैं. इन्होने जब विभाग में एडमीशन लिया तब वह सुजाता पांडे के नाम से जानी जाती थीं.

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बिना परमिशन देश से बाहर जाती रहीं डॉ सुजाता

इन मामलों पर नजर डालिए, जब डॉ सुजाता बिना किसी को बताए छुट्टियों पर जाती रहीं और महीने के पूरे पैसे उठाती रहीं. हम यूं हीं नहीं कह रहे हैं, यह जानकारी पब्लिक डोमेन में है और हमारे पास भी इसका प्रूफ भी है.

  • पहली बार डॉ सुजाता बिना किसी आवेदन और इंफॉरमेशन के 12 अगस्त 1997 से लेकर 11 अगस्त 1997 तक छुट्टी पर रहीं. वह 16 अगस्त 1997 को फ्लाइट नंबर AI-171 से यूरोप पहुंची थीं और वहां से फ्लाइट नंबर AI-173 से 11 सितंबर को दिल्ली पहुंचीं. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अगस्त और सितंबर महीने की पूरी की पूरी सैलरी उठाई. उस समय उनके इस कुकृत्य से अस्पताल को करीब 21000 रुपये का नुकसान हुआ.
  • सितंबर 1997 में ही डॉ सुजाता दोबारा छुट्टी पर निकल गईं और उनकी यह छुट्टी 5 अक्टूबर 1997 तक चली. इस दौरान भी उन्होंने कोई आवेदन नहीं दिया और न ही आधिकारिक तौर पर किसी की परमिशन ली. इस दौरान भी उन्होंने पूरी सैलरी उठाई और इससे अस्पताल को तब 7000 रुपये का नुकसान हुआ था.
  • इसके बाद महोदया तीसरी बार 9 सितंबर 1998 से लेकर 17 सितंबर 1998 तक छुट्टियों पर रहीं. इस बार भी उन्होंने कोई आवेदन नहीं दिया और न ही किसी से परमिशन ली. उन्होंने इस महीने की भी पूरी सैलरी उठाई. उनके इस कृत्य से अस्पताल को फिर से 7000 रुपये का नुकसान हुआ.
  • उसके बाद जनवरी 1999 में जब वह छुट्टियों पर गईं तो एटेंडेंस रजिस्टर में उनका अर्जित अवकाश (Earned Leave) बताया गया. इसके लिए भी उन्होंने कोई आवेदन नहीं दिया. नतीजा यह हुआ कि उन्होंने महीने की पूरी सैलरी उठाई. इस बार भी अस्पताल को 7000 रुपये का नुकसान उठाना पड़ा.
  • इसके बाद डॉ सुजाता 10 मार्च 1999 से लेकर 30 अप्रैल 1999 तक छुट्टी पर रहीं. इसके लिए भी उन्होंने कोई आवेदन नहीं दिया. इसी बीच यानी 30 अप्रैल 1999 को उनका सीनियर रेजिडेंट का कार्यकाल पूरा हो गया उन्होंने अस्पताल में अनुपस्थित रहते हुए M.Ch. की परीक्षा दी और फिर से पूरी सैलरी उठाई. इस बार अस्पताल को 35000 रुपये का नुकसान उठाना पड़ा.

Dr Sujata Sarabhai Safdarjung Fraud Details – ऐसा कहा जाता रहा कि डॉ सुजाता के सिर पर तब के डिपार्टमेंट हेड डॉ एस पी बजाज का हाथ था. एटेंडेंस सीट उनके नीचे से होकर गुजरती थी और यही कारण रहा कि अनुपस्थित रहते भी सुजाता हर महीने पूरी की पूरी सैलरी उठाती रहीं. छुट्टियों के बावजूद डॉ सुजाता द्वारा पूरी सैलरी लेने के कारण उस समय अस्पताल को 77000 रुपये का नुकसान उठाना पड़ा. हालांकि, यह डिपार्टमेंट हेड डॉ बजाज की जिम्मेदारी थी कि वह किसी भी तरह से अस्पताल का नुकसान न होने देते. वहीं, डॉ सुजाता की भी यह नैतिक जिम्मेदारी थी कि अगर वह छुट्टियां ले रही थीं तो पूरी सैलरी नहीं उठातीं लेकिन न तो सुजाता ने कुछ कहा और न ही डॉ बजाज ने सही से अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया.

नियम के मुताबिक, जब भी कोई सीनियर रेजिडेंट किसी भी तरह की छुट्टी पर जाता है, भले ही वह कैजुअल लीव हो या फिर Earned Leave…उनके आवेदन को डिपार्टमेंट हेड के द्वारा साइन किया जाता है और फिर उसे शैक्षणिक विभाग में फॉरवर्ड किया जाता है. केवल कैजुअल लीव के लिए दायर किए गए आवेदन ही डिपार्टमेंट में रखे जाते हैं. नियम के मुताबिक, बिना HOD के परमिशन के कोई भी छुट्टी नहीं ले सकता. लेकिन डॉ सुजाता के केस में ऐसा नहीं था. डॉ बजाज के संरक्षण में उन्हें नियम कायदे की बेड़ियों से आजादी थी.

जब ‘साराभाई से पांडे’ बनीं डॉ सुजाता

आपको बता दें कि सफदरजंग अस्पताल में बर्न, प्लास्टिक और मैक्सिलोफेशियल सर्जरी डिपार्टमेंट में ज्वाइन करने से पहले डॉ सुजाता ने दिल्ली के LNJP Hospital के बर्न और प्लास्टिक सर्जरी डिपार्टमेंट में सीनियर रेजिडेंट के तौर पर काम किया था. LNJP Hospital में काम करते समय उनका नाम डॉ सुजाता साराभाई (Dr Sujata Sarabhai) हुआ करता था. इस नाम पर उन्होंने 2 दिसंबर 1994 से लेकर 3 जुलाई 1995 तक काम किया.

4 जुलाई 1995 से उनका नाम बदला और अब वह डॉ सुजाता पांडे (Dr Sujata Pande) हो गईं. LNJP Hospital में उन्होंने 5 मई 1997 तक काम किया यानी कुल मिलाकर LNJP Hospital में उन्होंने सीनियर रेजिडेंट के रुप में 2 साल 5 महीनें काम किया. जब डॉ सुजाता, सफदरजंग अस्पताल में बर्न डिपार्टमेंट में आईं तो उनसे जुड़ी ये तमाम बातें डिपार्टमेंट हेड डॉ एस पी बजाज को पता थीं.

नियमों के अनुसार, M.Ch पाठ्यक्रम की अवधि जो उस समय दो वर्ष की थी, उस अवधि को मिलाकर कोई भी शख्स तीन वर्ष की सीनियर रेजिडेंट शिप कर सकता था. इस नियम का एकमात्र अपवाद यह था कि M.Ch पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने से पहले अगर किसी ने सीनियर रेजिडेंट की अवधि पूरी कर ली हो तो उसके बावजूद M.Ch पाठ्यक्रम के दौरान वह 2 साल का सीनियर रेजिडेंट शिप कर सकता है.

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ध्यान देने योग्य है कि सफदरजंग अस्पताल (Dr Sujata Sarabhai Safdarjung Fraud Details) में M.Ch कोर्स करने वाले एक सीनियर रेजिडेंट को पीजी स्टूडेंट कहा जाता है, जो एक ‘गलत नाम’ है। ये प्रशिक्षु सीनियर रेजिडेंट के रूप में काम करते हैं और समान वेतन पाते हैं. M.Ch कोर्स वास्तव में एक पोस्ट डॉक्टरल कोर्स है. डॉ. बजाज ने डॉ. सुजाता के नाम की सिफारिश करके और कथित तौर पर अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक को राजी करके विभाग में उन्हें फिर से सीनियर रेजिडेंट के पद पर दिनांक 5.6.1999 से 26.2.2000 तक की नियुक्ति दिला दी, जब कि अन्य अभ्यर्थियों का आवेदन उपरोक्त नियम का हवाला देते हुए अस्वीकृत करा दिया.

वहीं, सीनियर रेजिडेंट शिप के लिए आवेदन करते समय खुद डॉ सुजाता ने भी इस तथ्य को छिपाया क्योंकि वह अपने कृत्य से अवगत थी. वो अपनी ‘धोखाधड़ी’ के बारे में इतनी स्पष्ट थीं कि बाद में जब सफदरजंग अस्पताल से जुड़े वीएम मेडिकल कॉलेज में शिक्षण पदनाम के लिए अनुभव प्रस्तुत करने के लिए कहा गया तो डॉ सुजाता ने अपने बायोडाटा में भी इस अनुभव का उल्लेख नहीं किया. वहां की अपनी सर्विस फाइल में भी उन्होंने इस तथ्य को छिपाया है और इसका जिक्र नहीं किया है.

फिर शुरु हुआ छुट्टियों का सिलसिला

हालांकि, इन सब के बाद डॉ सुजाता एक बार फिर से सफदरजंग अस्पताल में उसी डिपार्टमेंट में सीनियर रेजिडेंट के पद पर आ गईं थी. पद पर आने के बाद उनकी बिन बताए छुट्टियों का सिलसिला एक बार फिर से शुरु हो गया. इन छुट्टियों पर नजर डालिए…

  • अगस्त-सितंबर 1999 में सीनियर रेजिडेंट के रुप में काम करते हुए डॉ सुजाता 27 अगस्त 1999 से लेकर 11 सितंबर 1999 तक छुट्टियों पर रहीं. इस दौरान एटेंडेंस रजिस्टर में उनका Earned Leave मेंशन किया गया जबकि उन्होंने इसके लिए कोई आवेदन नहीं दिया था. वहीं, डॉ सुजाता ने इस महीने की पूरी की पूरी सैलरी उठाई. अस्पताल को इससे 11,000 रुपये का नुकसान हुआ.
  • उसके बाद 17 जनवरी 2001 को डॉ सुजाता पांडे एक बार फिर से डॉ सुजाता साराभाई बन गईं और बर्न डिपार्टमेंट में स्पेशलिस्ट के तौर पर ज्वाइन कर लिया. इस साल वह 2 दिसंबर 2001 से लेकर 22 दिसंबर 2001 तक छुट्टियों पर रहीं. रजिस्टर में उनकी छुट्टी को Earned Leave प्रदर्शित किया गया लेकिन इसके लिये कोई आवेदन और स्वीकृति नहीं ली गई. इसी छुट्टी के दौरान डॉ सुजाता (Sujata Sarabhai Safdarjung Fraud Case Details) 11 दिसंबर 2001 को फ्लाइट नंबर TG-316 से सिंगापुर गईं थी. इस बार भी उन्होंने न तो डिपार्टमेंट में इसका एप्लीकेशन दिया था और न ही सरकार से किसी भी तरह की कोई परमिशन ली थी. वहां से 20 दिसंबर 2001 को वह फ्लाइट नंबर TG-315 से वापस लौट आईं. यह सब डॉ बजाज की देखरेख में हुआ.
  • वहीं, जनवरी 2002 में एटेंडेंस सीट में 23 जनवरी 2002 से लेकर 30 जनवरी 2002 तक (Sujata Sarabhai Safdarjung Fraud Case) डॉ सुजाता का ‘L’ लगा. इस बार भी छुट्टी के लिए उन्होंने कोई आवेदन नहीं दिया था और उन्हें जनवरी 2002 की पूरी की पूरी सैलरी मिली.
  • डिपार्टमेंट में स्पेशलिस्ट के रूप में काम करते हुए उन्होंने मार्च 2002 और अप्रैल 2002 के मध्य भी कुछ ऐसा ही किया. वह 25 फरवरी 2002 से लेकर 9 मार्च 2002 तक छुट्टियों पर रहीं. इस बार भी उन्होंने किसी भी तरह की परमिशन नहीं ली थी और न ही कोई आवेदन दिया था. इस बार भी रजिस्टर में ‘L’ मेंशन हुआ. लेकिन इस बार भी उन्होंने पूरी सैलरी उठाई. इससे अस्पताल को करीब 16000 रुपये का नुकसान हुआ था.

इन सब के बावजूद डिपार्टमेंट हेड डॉ एस पी बजाज ने डॉ सुजाता को सर्टिफिकेट देते समय उनका जमकर गुणगान किया था, जबकि सच्चाई हर किसी को पता थी. ये सारे फ्रॉड डिपार्टमेंट हेड के देखरेख में हुए थे और डॉ सुजाता इसकी बराबर की जिम्मेदार थी. उनके कृत्यों पर तमाम सवाल तो उठे ही, वहीं, सरकार को भी तब 1,00,000 से ज्यादा का नुकसान हुआ.

कंसल्टेंट प्रोफेसर के रुप में काम कर रही हैं सुजाता

ध्यान देने वाली बात यह है कि सरकारी कर्मचारी और अधिकारी को विदेश भ्रमण से पहले प्रशासनिक विभाग से अनुमति लेनी होती है. नियमों का उल्लंघन करने पर संबंधित कर्मचारी के खिलाफ एक्शन भी लिया जाता है लेकिन डॉ सुजाता बिना किसी एप्लीकेशन और अनुमति के विदेश घूमती रहीं और उनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया. मजे की बात तो यह है कि इस मामले पर कभी बहुत अधिक चर्चा भी नहीं हुई है. इस मामले में नीचे से लेकर ऊपर तक के अधिकारियों की संलिप्तता देखी गई थी. ‘आरोपी’ आज भी सफदरजंग अस्पताल के मेडिकल कॉलेज वर्द्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज (Sujata Sarabhai Safdarjung Fraud Case) में कंसल्टेंट एवं प्रोफेसर के रूप में काम कर रही हैं और आगे विभागाध्यक्ष चयनित होने की कोशिश में हैं.

आपको बता दें कि डॉ सुजाता की मनमानियां आज भी जारी हैं. ऐसा बताया जाता है कि मौजूदा समय में भी वो अक्सर बगैर छुट्टी के आवेदन और बिना स्वीकृति के अस्पताल से अनुपस्थित रह कर दूसरे शहरों के कार्यक्रमों में शामिल होती रहती हैं. उनमें से कई कार्यक्रम ऐसे होते हैं, जो दवा कंपनियों द्वारा आयोजित होते हैं. रिपोर्ट्स की मानें तो अस्पताल में NOTTO यानी National Organ and Tissue Transplant Organisation के अंतर्गत चल रहे स्किन बैंक, जिसका केवल licence renewal होना था…उसे डॉ सुजाता ने बंद करवा दिया.

उसके बाद उन्होंने स्किन बैंक को नए सिरे से अपने नाम से शुरु करने के लिए आवेदन दिया और नई जगह, उपकरण एवं मशीनरी खरीदने के प्रयास में लग गईं. उनके इस कृत्य से एक चलता हुआ प्रोग्राम बंद हो गया. अब नए सिरे से इसकी शुरुआत करने में अनावश्यक खर्च और अनावश्यक समय लगेगा. अस्पताल में डॉ सुजाता का काम करने का तरीका कुछ ऐसा ही है. ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि विभाग में भी वह अपनी मनमानी करती हैं और दूसरे कर्मचारियों, प्रशिक्षु डॉक्टरों, सहयोगियों एवं वरिष्ठ डॉक्टर्स के साथ भी उनका व्यवहार ठीक नहीं है.

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