विभन्न विकास मॉडल को प्रचार-प्रसार के जरिए लोगों के दिमाग में बिठाया जा रहा
क्या आप विकास (development) को किसी खिलौने से ज्यादा बिक्री योग्य बना सकते हैं? इस सवाल का जवाब 2014 से पहले ढूंढना थोड़ा मुश्किल था पर जिस तरह से 2014 की लोकसभा चुनाव में गुजरात के डेवलपमेंट मॉडल का प्रचार किया गया और जिस तरह से भारतीय जनता ने इस मॉडल को अपनाने की उत्सुकता दिखाई उससे तो यह साफ़ हो गया की किसी भी तरह के विकास मॉडल को भारत में प्रचार-प्रसार कर लोगों के दिमाग में बिठाया जा सकता है। उस समय हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुरे देश को गुजरात मॉडल की चम-चमाती विकास दिखाई थी तो दूसरी तरफ वर्तमान में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल गुजरात की जनता को मुफ्त वाली दिल्ली मॉडल की चका-चौंध दिखा रहे हैं।
गुजरात में केजरीवाल अपनी जगह बनाने की कर रहे कोशिश
गुजरात में आम आदमी पार्टी (AAP) दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) सरकार के मॉडल के जरिए भाजपा को भाजपा को उसके गृह राज्य में घेरने की कोशिश में लगी है। आप भले ही भाजपा के मुकाबले गुजरात में कमजोर राजनीतिक ताकत है पर दृष्टिकोण की लड़ाई में केजरीवाल भाजपा को सीधी टक्कर देने में लगे है। हालांकि भाजपा को इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ना चाहिए, लेकिन अगर केजरीवाल गुजरात में दिल्ली मॉडल को लेकर कामयाब होता है तो देश के सामने फिलहार सरकार का तो नहीं पर 2024 लोकसभा चुनाव में विपक्ष के चेहरे का एक ऑप्शन बढ़ जायेगा। वैसे भाजपा हर स्तर पर अपनी रणनीति से एक बार फिर गुजरात फतह की तैयारी करनी शुरू कर दी है। दिल्ली में कथित शराब घोटाला भी गुजरात में चर्चा में है पर यह देखना दिलचस्प होगा की मुफ्त पानी, बिजली, शिक्षा, हॉस्पिटल और घर पहुँचते राशन पर यह घोटाला कितना भारी पड़ेगा।
गुजरात मॉडल पर उठाया सवाल
कुछ दिन पहले ही गुजरात में शिक्षकों के साथ बात-चित के दौरान केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में स्कूलों की हालत खराब थी। केजरीवाल ने आगे कहा जब मैं मरूंगा तो संतुष्टि होगी कि मैंने दिल्ली के स्कूल अस्पताल अच्छे कर दिए। उन्होंने भाजपा की 27 सालों की गुजरात सरकार की स्थिति पर कहा कि गुजरात की यह स्थिति पहले वाली दिल्ली के जैसी है। अब गुजरात के स्कूल भी अच्छे होंगे। अगर कोई रोक सकें तो रोक लें।
गुजरात चुनाव के बाद देश के सामने भी आ सकता है ‘केजरीवाल ऑप्शन’
अब आते है गुजरात की चुनावी गणित पर, अभी तक राज्य में भाजपा और कांग्रेस में यह मुकाबला होते आये है। इस चुनाव में आम आदमी पार्टी ने जिस तरह घुसपैठ कर राजनीतिक लड़ाई को बदलने की कोशिश की है उससे तो ये लगता है की केजरीवाल की आप सरकार कांग्रेस और भाजपा के बिच कड़ी हो गई है। अगर गुजरात में केजरीवाल ने कांग्रेस की जगह ले ली तो इससे देश की राजनीती को भी कुछ बड़े संकेत मिल सकते है। आप का कांग्रेस की जगह लेना एक तरीके से मोदी के गुजरात मॉडल को भी कटघरे में खड़ा कर सकता है। दूसरी तरफ केजरीवाल अगर भाजपा वोट बैंक में भी थोड़ी बहुत सेंध लगाने में कामयाब हो जाते है तो भाजपा के लिए 2024 के लिए ये खतरे की घंटी हो सकती है क्यूंकि केजरीवाल इस बार हिंदुत्व के रस्ते पर भी अपना हर एक कदम फूंक-फूंक कर रख रही है। यहाँ तक की केजरीवाल मुस्लिमों के मुद्दों पर अपनी आंख फेरते हुए भी दिखाई देती है।
भाजपा की राह चल रहे केजरीवाल
“मैं एक बेहद धार्मिक आदमी हूँ। मेरा जन्म श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन हुआ था। भगवान श्री कृष्ण ने मुझे एक काम देकर भेजा है – इन कंस की औलादों का सफ़ाया करना” ये शब्द है अरविन्द केजरीवाल के और अगर आप अपने दिमाग पर जोर दे तो कुछ इस तरह की ही बाते 2014 के लोकसभा चुनाव के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की थी। इससे ये तो पता चल गया की केजरीवाल भी भाजपा की काट बनने के लिए उसी के रास्तों पर चलने के लिए तैयार हैं। केजरीवाल ने अपने ट्वीट में कहा कि “अब ये लोग भगवान को भी बदनाम करने लगे हैं। ये सारी असुरी शक्तियाँ एक हो गईं हैं”। अब देखना तो ये है की क्या केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का यह नया रूप क्या गुजरात में उनको जगह दिलवा पाती है ? क्या केजरीवाल का यह नया रूप आने वाले लोकसभा चुनाव में देश के सामने एक नया विकास का मॉडल रख पाएगी ? इन सारे सावलें के जवाब फिलहाल तो किसी के पास नहीं है पर आने वाले कुछ समय में मतलब की गुजरात चुनाव के बाद इन सवालों की धुंधलाहट थोड़ी साफ़ जरूर हो जाएगी।
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