2008 से भी बड़ा हो सकता है ये वैश्विक आर्थिक मंदी
Financial Crisis, Recession और आर्थिक मंदी जैसे शब्द किसी भी देश या फिर इंसान के लिए खतरे की घंटी होती है। जो देश या इंसान समय रहते इस संकट को भांप लेते हैं उन्हें तो इस मंदी के दौर में ज्यादा असर नहीं पड़ता लेकिन जो भी देश इस मंदी जैसे शब्द को हलके में लेते है वो इस Recession की मार को लम्बे समय तक झेलते है। अगर अभी भी किसी को इस मंदी के दौर का एहसास नहीं हो पा रहा है तो एक बार 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट को आप याद कर सकते हैं।
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IMF की रिपोर्ट दे रही दुनिया को आर्थिक मंदी का संकेत
कुछ समय पहले international monetory fund यानि की IMF के मैनेजिंग डायरेक्टर ने भी ये चेतावनी दी है की आने वाले कुछ समय में दुनिया भर के देश वैश्विक आर्थिक संकट की मार झेलेंगे। अब देखने वाली बात यह होगी की इस आर्थिक मंदी से भारत पे कितना असर पड़ता और भारत किस तरह से इस आर्थिक मंदी का सामना करता है? ये वैश्विक आर्थिक संकट 2014 के बाद से आये मोदी सरकार के लिए भी एक चैलेंज होगी, क्यूंकि अभी तक तो देश कोरोना की मार से भी नहीं उबर पाया उसके ऊपर से ये आर्थिक मंदी देश के लिए “शर्दी में प्याज काटने” जैसे हो जायेगा।
वैश्विक ग्रोथ रेट 2.9 से गिर पहुंचा 2.5 फीसदी पर
आज हम बात करेंगे आने वाले इस आर्थिक मंदी के कारण के बारे में, इसके पीछे के reason के बारे में। अरे भाई कोरोना इस आने वाली आर्थिक मंदी के मुख्य कारणों में से एक है ये तो सभी जानते हैं और इस ‘जले पर अब नमक छिड़क’ रहा है रूस-यूक्रने युद्ध। लेकिन इस मंदी का एक और कारण है और वो है इंसानों की जगह मशीन का लेना। मतलब की मशीन का अत्यधिक उपयोग मॉल की climate change …. IMF के मैनेजिंग डायरेक्टर के ही अनुसार ग्लोबल ग्रोथ रेट में चौथी बार revision किया जा सकता है जिस कारण वैश्विक ग्रोथ रेट 2.5 फीसदी तक गिरा सकता है जो फिलहाल 2.9 फीसदी पर जमा हुआ है। ये तो बात हुई IMF की, दूसरी तरफ UN यानि की united nation या फिर संयुक्त राष्ट्र ने भी इस वैश्विक आर्थिक मंडी की पुष्टि करते हुए कहा है कि advanced economies सिंपल भाषा में आप समझे की विकसित देश पुरे दुनिया को एक वैश्विक आर्थिक संकट की ओर धकेल रही है। यूरोप, USA चीन जैसे देशों की अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे धीमी पड़ रही है, लेकिन ये आर्थिक मंदी किसी देश के लिए आपदा भी बन सकती है जबकि चालाक देश या फिर कहें चालाक सरकार वाली देश इसे अवसर की तरह भी इस्तेमाल कर सकती है। अब हमे यह देखना की भारत इस चालाक सरकार वाले देश में गिना जाता है फिर आपदा ग्रषित देश में।
भारत बना सकता है इस आपदा को अवसर
आइये अब समझते है की इस ग्लोबल रिसेशन कामार भारत पर कैसे और कितन पड़ सकता है ? अगर आम भाषा में समझे में तो हमारी-आपकी यानि की empoyees की सैलरी आने वाले मार्च में बढ़ेगी या फिर हममे से बहुतों को अपनी नौकरी से धोनी पड़ेगी हाथ। देश में बढ़ती महंगाई को देख कर आपको ये तो पता चल गया होगा की इस वैश्विक आर्थिक संकट के बाद देश की हालत और भी गंभीर हो सकती है पर इससे हमे क्या? हम तो पेट्रोल की बढ़ती कीमत से और दारु के ठेकों से देश को आर्थिक संकट से निकलने पर भरोसा करते हैं। इस बार सायद मोदी सरकार के इन सब तकनीकों से काम ना चले, क्यूंकि इस बार इसका मार आपके बिजली बिल और गैस बिल पर सीधा पड़ सकता है जिससे शायद देश के नागरिकों को थोड़ा फर्क पड़े नहीं तो पहले से तो हम इस बढ़ती हुई कीमत के आदि तो हो ही चुके है। हाँ पर देश की सरकार अगर चाहे तो यूरोप, चीन, और USA से भगति हुई कंपनियों को अपनी ओर आकर्षित जरूर कर सकती है जिससे हम इस आपदा को अवसर में भी बदल सकते हैं।