तबाह होने की कगार पर है जोशीमठ
कहते हैं घर बनाना बहुत मुश्किल है, कई सालों की मेहनत के बाद जब घर बनता है तो इस बात का एहसास होता है कि आपके पास सिर छुपाने की जगह है लेकिन जब आपको पता चले कि आने वाले समय में आपके सिर के उपर की छत नही रहेगी. इस बात का दर्द वहीं समझ सकता है जिसके सिर पर छत न हो.
उत्तराखंड के हल्द्वानी (Uttarakhand Haldwani) का किस्सा जिसकी बातें हर घर, हर जगह पर हुई क्योंकि ये बात थी एक समुदाय की. जहाँ इस किस्से पर पूर्णविराम लग गया वहीं ऐसा ही किस्सा इस राज्य के जोशीमठ शहर (Joshimath) में हो रहा है. यहाँ पर जो हालात पैदा हुए हैं उसको देखकर ऐसा लगता है कि कब यहां के लोगों के सिर से छत छिन जाए इस बात की जानकारी किसी को भी नहीं है प्रशासन चुप है और सरकार भी मौन है.
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उत्तराखंड का जोशीमठ (Joshimath Sinking ) शहर समुद्र क्षेत्र था. लेकिन आज ये ऐतिहासिक और धर्मिक जगह खत्म होने के कगार पर है जोशीमठ की धरती फट रही है और इस वजह से पूरे शहर पर ढह जाने और तबाह हो जाने का खतरा बना हुआ है.’
जोशीमठ के तबाह होने की ये थी बड़ी वजह
जोशीमठ की धरती फटने की वजह NTPC का (Vishnugad-Tapovan Hydro Power Project) बन रही टनल (Tunnel) को बताया जा रहा है. वहीं कहा ये भी जा रहा है कि हेलंग मारवाड़ी बाईपास (Helang Marwari Bypass) का निर्माण शुरू होने के बाद जोशीमठ की जमीन धंसने की घटना शुरू हो गई थी. जोशीमठ के कई इलाकों में सालों से पानी रिस रहा है लेकिन प्रशासन ने कभी इसे गंभीरता से नहीं लिया.
47 साल पहले दे दी गयी थी घटना की चेतावनी
कहा जाता है कि इस 47 साल पहले ही ऐसी ही घटना की चेतावनी दे दी गयी थी. जब चमोली यूपी का हिस्सा हुआ था तब जोशीमठ में 70 के दशक में यहां पर सबसे भीषण तबाही आई थी. इस तबाही का कारण बेलाकुचि बाढ़ (Belakuchi flood) थी. जिसके बाद से लगातार यहां पर भू-धंसाव की घटनाएं सामने आई. वहीं इस घटना के बाद गढ़वाल कमिश्नर मुकेश मिश्रा ने एक आयोग का गठन किया. इस मिश्रा आयोग में भू-वैज्ञानिक, इंजीनियर, प्रसाशन के कई अधिकारियों को शामिल किया गया. एक साल के बाद आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी.
जोशीमठ को लेकर बताया गया था ये खतरा
1976 में आई इस रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया कि जोशीमठ की जड़ पर छेड़खानी करना यहाँ के लिए खतरा साबित होगा. इसी के साथ इस रिपोर्ट में जोशीमठ के नीचे की जड़ से जुड़ी चट्टानों, पत्थरों को बिल्कुल भी न छेड़ने के लिए कहा गया था. वहीं यहां हो रहे निर्माण को भी सीमित दायरे में समेटने की गुजारिश की गई थी.
वहीं इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि जोशीमठ एक रेतीली चट्टान पर स्थित है. जोशीमठ की तलहटी में कोई भी बड़ा काम नहीं किया जा सकता. ब्लास्ट, खनन सभी बातों का इस रिपोर्ट में जिक्र था. बताया गया था कि बड़े-बड़े निर्माण या खनन न किया जाएं और अलकनंदा नदी (Alaknanda River) के किनारे से एक सुरक्षा वॉल बनाई जाए, यहां बहने वाले नालों को सुरक्षित किया जाए लेकिन सरकार ने और आम लोगों ने भी मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट को नजरअंदाज किया और यहां बड़े-बड़े कंस्ट्रक्शन किए .
इन वजहों से भी जोशीमठ की धरती को नुकसान
जोशीमठ में आईटीबीपी और सेना की बटालियनों (Army battalions) के लिए निर्माण हुए, साथ ही बदरीनाथ (Badrinath), हेमकुंड साहिब मार्ग (Hemkund Sahib Marg) का मुख्य शहर होने की वजह से यहां बड़े-बड़े होटल भी बन गए. लेकिन यहां ड्रेनेज (Drainage system) की कोई व्यवस्था नहीं है. घरों और होटलों का पानी यहीं जमीन में रिसता रहता है. पहाड़ों में हो रहे अनियंत्रित निर्माण और सड़क परियोजनाओं की वजह से प्रकृति को काफी नुकसान हुआ. जिसकी वजह से आज जोशीमठ में हर तरफ दरारें दिख रही हैं और जगह-जगह जलस्रोत फूटे हुए हैं. तपोवन परियोजना के तहत साल 2009 में यहां टनल बनाने के दौरान एक टनल बोरिंग मशीन यहां फंस गई थी. इस बोरिंग मशीन की वजह से वहां 250 क्यूसेक पानी का जलस्रोत फूट गया है. ये पानी जोशीमठ की धरती फाड़ के बाहर आ गया है और अब इस पानी की वजह से ये शहर कभी भी खत्म हो सकता है.