केजरीवाल की असाधारण राजनीति की कहानी
राजनीति को देखा जाये तो ये एक तरीके का दलदल है जहां लोग आकर सिस्टम के ताना-बाना में फंस जाते हैं। कुछ इस सिस्टम की दलदल में कमल की तरह खिल जाते है, जैसे की जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपई इत्यादि। जबकि कुछ लोग इस सिस्टम के दलदल में पूरी तरह डूब जाते हैं और गन्दी राजनीति में लिप्त हो जाते हैं, अगर इसका भी आप उदहारण ढूंढे तो आपको खबरों के जरिए आये दिन इसके मिसाल मिलते रहते होंगे। आज हम किसी राजनेता के चरित्र के बारे में बात नहीं करेंगे, बल्कि आज हम राजनीति के एक ऐसे शख्स के बारे में बात करेंगे जिसने सियासत में अपनी एंट्री एक ईमानदार और आम आदमी के नाम पे की थी।
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राजनीतिक गलियारे में ऐसा पहली बार हुआ था जब एक पढ़ा-लिखा इंसान आम आदमी के नाम पे सियासत करने उतरा था। जो अपने शुरूआती राजनीति में आंदोलनों के नाम पे मीडिया सुर्ख़ियों में बना रहा, जिसके बाद उन्होंने विकास की राजनीति का हाथ थामा और वर्तमान में वो धर्म की राजनीति की तरफ भी झुकते दिख रहे हैं। आपको मेरी बातों से ये अनुमान लग ही गया होगा की हम किसके बारे में बात कर रहे हैं। हम बात कर रहे है राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संस्थापक तथा अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल की। आज हम बात करेंगे केजरीवाल के व्यक्तिगत और राजनीतिक जिंदगी के बारे में। आज के वीडियो में हम देखेंगे की केजरीवाल किस तरह राजनीति में पहुंचे, और फिर कैसे विकास से धर्म की राजनीति की ओर वो एक-एक कर बढ़ गए ।
साधारण परिवार से आते हैं केजरीवाल
आज अरविन्द केजरीवाल को किसी परिचय की जरूरत नहीं है। इनके व्यक्तिगत जीवन के बारे में बात करते है तो इनका जन्म 16 अगस्त 1968 को हरियाणा के भिवानी में हुआ था। इनके पिता का नाम गोबिंद राम केजरीवाल और माँ का नाम गीता देवी था। केजरीवाल का एक छोटे भाई और एक छोटी बहन है। उनके पिता गोविंद राम केजरीवाल बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मेसरा में एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थे। पिता के इधर-से-उधर ट्रांसफर के कारण केजरीवाल कई अलग-अलग स्थानों पर रहे। इसके परिणामस्वरूप इनका बचपन गाजियाबाद, हिसार और सोनीपत जैसे कस्बों में बीता। उन्होंने हिसार के कैंपस स्कूल में अपनी शुरूआती पढ़ाई की। इसके बाद अरविंद केजरीवाल ने 1989 में IIT, खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि प्राप्त की, जबकि उन्होंने कोलकाता में रामकृष्ण मिशन और नेहरू युवा केंद्र में भी कुछ समय बिताया था । जिसके बाद वो IRS अधिकारी यानि की Indian Revenue Services में भी रह चुके हैं।
केजरीवाल और सुनीता के दो संतान
केजरीवाल का विवाह उनकी बैच मेट सुनीता से हुआ, जो नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन, मसूरी में थीं। केजरीवाल और सुनीता के दो संतानें हैं, एक पुत्र पुलकित और एक पुत्री हर्षिता। ये तो हो गई केजरीवाल की एक आम आदमी वाली व्यक्तिगत जिंदगी के बारे में, जो बचपन से एक होनहार छात्र रहता है और आगे चल कर अच्छे कॉलेज से डिग्री लेने के बाद अधिकारी बनता है। इसके बाद ही केजरीवाल के जिंदगी में यू-टर्न आता है और उनकी आम आदमी वाली जिंदगी धीरे-धीरे बदलने लगती है।
घिसी हुई पैंट, फ्लोटर की चप्पल, और एक साधारण चस्मा लगा कर मौजूद थे स्टेज पर
साल था 2010 का, जब अन्ना हजारे और लोकपाल बिल मीडिया की सुर्ख़ियों में छाये हुए थे । अन्ना की आंदोलन में एक तरफ जहां जनता नारा लगा रही थी कि, “अन्ना तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं।” दूसरी तरफ केजरीवाल और सिसोदिया अन्ना के इस आंदोलन में तप कर दिल्ली की राजनीति में परिवर्तन लाने की तैयारी में थे। उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे और शिला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री, लेकिन उस समय की मीडिया में चर्चा एक और शख्स की चल रही थी। वो अन्ना की आंदोलन में घिसी हुई पैंट, फ्लोटर की चप्पल, और एक साधारण सा चस्मा लगा कर स्टेज पर मौजूद था। उस समय केजरीवाल की ये आम इंसान वाली छवि जनता को बहुत भा रही थी। खासकर के दिल्ली की जनता को। जानकारों की माने तो अन्ना आंदोलन की बुनियाद इसी आम इंसान जैसे दिखने वाले चेहरे ने रखी थी। ये चीज इससे भी प्रमाणित होती है की 1999 में, केजरीवाल ने परिवर्तन नामक एक गैर सरकारी संगठन की स्थापना की थी। जिसका उद्देश्य नागरिकों को बिजली, आयकर और खाद्य राशन से संबंधित मामलों में सहायता प्रदान करना था। यही सब चीज की मांग अन्ना के आंदोलन में भी उठ रही थी।
मोदी सुनामी के बावजूद नहीं थमा केजरीवाल भूकंप
अन्ना के इस आंदोलन से एक आम अधिकारी या एक्टिविस्ट कैसे आन्दोलनों के जरिये राजनीति में आया और राजनीति का ही हो कर रह गया ये बखूबी देखने को मिलता है। अब केजरीवाल की असाधारण राजनीति की बात करे तो उन्होंने 2012 में अन्य के साथ मिलकर आम आदमी पार्टी की स्थापना की थी। दिल्ली के विधानसभा में कुल 70 सीट है जिनमे से मुख्यमंत्री केजरीवाल ने अपने दूसरे ही चुनाव में 67 सीट अपने नाम कर लिया था। अगर आप 2014 में प्रधानमंत्री मोदी के राजनीतिक सुनामी को भी देखे तो केजरीवाल ने दिल्ली में इसकी हवा निकल दी थी। 2014 में मोदी के प्रचंड बहुमत के बाद भी केजरीवाल ने राष्ट्रीय राजधानी में अपनी जीत का परचम लहराया और मीडिया में चर्चा का केंद्र बन गए।
इसके बाद केजरीवाल ने पंजाब विधानसभा चुनाव जीत कर एक क्षेत्रीय नेता से राष्ट्रीय नेता की सफर की ओर बढ़ चुके । केजरीवाल की राजनीति अब बाकि बड़े राजनेताओं की तरह विकास और धर्म को जोड़ते दिख रही है। इससे ये पता तो चलता है की सड़क पर आंदोलन करने वाले केजरीवाल विवादित हो कर भी मीडिया की सुर्ख़ियों में बने रहना सिख लिया है। केजरीवाल की असाधारण राजनीति की एक झलक 2006 में RTI लागु करने में भी देखि गई थी। 2006 में अरविन्द केजरीवाल को उभरते नेतृत्व के रुप में रमन मैग्सेसे पुरस्कार भी मिला था ।