हिंदुत्व की काट बनने, केजरीवाल चले हिंदुत्व की राह
भारत में नोटबंदी के 6 साल बाद एक बार फिर से करेंसी की चर्चा शुरू हो गई है। अरे डरिये नहीं …. इस बार हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रात को कोई घोषणा नहीं की है बल्कि इस बार राष्ट्रिय राजधानी दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व के इक्के का जवाब, भाजपा के ही हिंदुत्व कार्ड से देने की कोशिश में लगे हैं। जैसे-जैसे गुजरात का विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है और त्योहारों का सीजन ख़त्म हो रहा सभी राजनितिक पार्टयों के चुनावी गतिविधि तेज़ होते जा रही है। यहाँ तक की दीवाली के बाद और गुजरात चुनाव से पहले केजरीवाल ने भारतीय नोट पर लक्ष्मी-गणेश की तस्वीर की मांग कर के अपना हिंदुत्व का कार्ड फेंक दिया है।
केजरीवाल के बाद कांग्रेस ने अम्बेडकर का उठाया नाम
केजरीवाल का मानना है कि करेंसी नोटों पर देवताओं के चित्र प्रकाशित करने से लोगों को और देश को दैवीय आशीर्वाद मिलेगा, जिससे आर्थिक लाभ होगा। इसके बाद कांग्रेस के मनीष तिवारी ने आंबेडकर की तस्वीर लगाने की मांग उछाली, तो दूसरी तरफ महाराष्ट्र के भाजपा नेता नितेश राणे ने फोटोशॉप की गई तस्वीर शेयर कर दी जिसमें 200 रुपये के नोट पर शिवाजी दिखाई देते हैं। ये सवाल जैसे -जैसे बड़ी होते जा रही है की नोट पर आखिर किसकी तस्वीर होनी चाहिए, वैसे-वैसे ही केजरीवाल के चरित्र पर सवाल गहरा होता जा रहा है। केजरीवाल जहां एक तरफ राजनीति में ये कह कर आएं थे की हम शिक्षा और विकास की राजनीति करेंगे, वहीँ केजरीवाल अपने इस मांग के बाद भाजपा के हिंदुत्व की राह पर चलते नजर आ रही है।
केजरीवाल के इस मांग को जैसे ही मीडिया में सुर्खियां मिली फिर क्या था, कांग्रेस भी इस राजनीतिक युद्ध में कूद गई। कांग्रेस नेता मनीष तिवारी (Manish Tewari) ने महात्मा गांधी के साथ बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की तस्वीर लगाने की मांग कर दी और इस्पे एक ट्वीट भी कर दिया। तिवारी ट्वीट में लिखा कि, “नोटों की नई श्रृंखला पर डॉ बाबासाहब अम्बेडकर की तस्वीर क्यों नहीं? एक तरफ महान महात्मा दूसरी तरफ डॉ. अम्बेडकर। अहिंसा, संविधानवाद और समतावाद एक अद्वितीय संघ में विलीन हो रहे हैं जो आधुनिक भारतीय प्रतिभा को पूरी तरह से जोड़ देगा” … इसके बाद से मीडिया में लक्ष्मी-गणेश और अम्बेडकर के बीच बहस छिड़ गया है।
पहले भी उठी है ऐसी मांग
इस बात पर इतनी जल्दी कोई निष्कर्ष निकालना किसी भी सरकार के लिए बहुत मुश्किल है। क्यूंकि आजादी के बाद जब महात्मा गांधी की तस्वीर छापने में दो दशक लग गए तो धर्मनिरपेक्ष या फिर कहे सेक्युलर रूप वाले भारत देश में भगवान की तस्वीर लगाने का फैसला लेना आसान नहीं है। अक्सर बापू की जगह आंबेडकर की तस्वीर लगाने की मांग होती रहती है। हिंदू महासभा की ओर से सुभाष चंद्र बोस और कई लोगों की तरफ से रवींद्रनाथ टैगोर, एपीजे अब्दुल कलाम की तस्वीर लगाने की मांग उठती रही है ।
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