विश्वगुरु के परदे के पीछे देश का छुपा काला सच
Forbes की तजा लिस्ट के मुताबिक भारत के 100 सबसे अमीर व्यपारियों की कुल संपत्ति में 25 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हुई है, 500 करोड़ रूपये से ज्यादा गुजरात विधानसभा चुनाव में केवल मीडिया पे खर्च किया गया है, 1000 करोड़ रूपये नेताओं की पब्लिसिटी पर खर्च किया गया जबकि गुजरात के चुनाव में 100 करोड़ रूपये से ज्यादा पुलिस ने जब्त किया है। इतने बड़े आकड़े को सुनकर आपको लग रहा होगा की भारत विश्वगुरु बनने की ओर बढ़ चला है और देश में अच्छे दिन आ चुके हैं। इस अच्छे दिन और विश्वगुरु के परदे के पीछे देश का एक काला सच छुप सा गया है, और वो यह है कि भारत अब Nigeria को पछाड़ दुनिया भर में गरीबों की राजधानी बन गया है।
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आर्थिक मंदी के बावजूद बढ़ रहा अमीरों का पैसा
पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी का माहौल चल रहा है, दुनिया भर के उद्योगपति cost cutting कर रहे है और employees को बाहर निकाल रहे हैं। इसी बीच फोर्ब्स ने एक लिस्ट जारी की है जिसकेअनुसार, भारत के 100 सबसे अमीर लोगों की कुल संपत्ति में 25 अरब डॉलर (भारतीय करेंसी में 2 लाख करोड़ से भी ज्यादा) की बढ़ोतरी हुई है। ये बढ़ोतरी उस समय हुई जब दुनिया भर के उद्योगपति कोरोना, युद्ध और आर्थिक मंदी को लेकर चिंता में पड़े हैं। ये तो देश के लिए गर्व की बात है, की भारत के उद्योगपति इस आर्थिक मंदी के बावजूद भी तरक्की कर रहे हैं और गौतम अडानी तो कुछ ज्यादा ही उन्नति कर रहे हैं। जैसे हर सिक्के के दो पहलु होते हैं वैसे ही Forbes के इस लिस्ट का भी एक दूसरा एंगल है और वो देश और देश की आम जनता के लिए चिंता का विषय भी है।
- 10 फीसदी लोगों के पास 48 प्रतिशत पैसा
आप अगर इस फोर्ब्स की लिस्ट को ध्यान से देखे तो आपको पता चलेगा की इन 100 लोगों की लिस्ट में से केवल 10% लोगों के पास लगभग 48 फीसदी पैसा है और टॉप 2 के पास तो पूछिए ही नहीं। आपको पता ही होगा की टॉप 2 में कौन आते हैं। हाँ दोस्तों आपने सही समझा अडानी और अम्बानी।
भारत बना दुनिया में गरीबों की राजधानी
अब बात करते है उस लिस्ट के बारे में जो देश और देश की सरकार के लिए शर्म की बात होनी चाहिए। The World Poverty Clock की एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश ने यानी की भारत ने गरीबों की संख्या में Nigeria को पीछे छोड़ दिया है। भारत में Nigeria की तुलना 63 हजार से भी ज्यादा गरीब हैं। यानि की Nigeria में गरीबी के भी बहुत निचे रह रहे लोगों की संख्या आठ करोड़ तीस लाख पांच हजार 482 है, जबकि भारत में यह संख्या आठ करोड़ तीस लाख 68 हजार 597 पहुँच गई है।
- इसी दौर में बढ़ा पार्टियों का चुनावी खर्चा
अब अगर इन दोनों लिस्टों को एक साथ देखे तो आप हैरान हो जायेंगे, की यह कैसे हो सकता है, लेकिन देश की सच्चाई तो यही है। इसी सिलसिले में अगर आप देश की राजनीति, राजनीतिक पार्टियों और चुनावी खर्चों पे ध्यान दे तो आपको दिखेगा की इसी दौर में जहां एक तरफ देश भर में रईसों के पैसे बढ़ रहे हैं तो दूसरी तरफ गरीबों की संख्या बढ़ रही है, और इसी के बीच कहीं, राजनीतिक पार्टियों की फंडिंग और चुनावी खर्चे में भी वृद्धि हो रही है। केवल गुजरात के अकेले चुनाव की बात करे, तो गुजरात के पिछले चार विधानसभा चुनाव के खर्चों को मिला दिया जाये फिर भी पैसों का ये आकड़ा इस बार के चुनावी खर्च के आस-पास भी नहीं पहुँच पायेगा। राजनीतिक पार्टियों की फंडिंग को देखे जो देश के रईस ही बांड के रूप में विभिन्न पार्टियों को देते हैं, तो इससे भी आपको साफ़ हो जायेगा की सरकार भी इन रईसों के इर्द-गिर्द ही अपनी योजना तैयार करती हैं। इसका उदाहरण आपको किसान बिल के समय मिल गया होगा जब मीडिया की सुर्ख़ियों में आपको Adani group भी farmer bill के मुद्दे से जुड़ते दिख रहे थे।
सरकार बनती है रईसों के इर्द-गिर्द योजनाएं
अब अगर इन तीनो एंगल्स को एक साथ देखे और chronology समझने की कोशिश करे तो आपको पता चलेगा की सरकार कैसे देश के अमीरों की सुविधा को देखते हुए आम जनता के लिए सरकारी योजना बनाती है। इसके बाद देश के आमिर इन सरकारी योजनाओं से लाभ कमाकर राजनीतिक पार्टियों को bonds के रूप में फंडिंग करती हैं। इन्ही funding की मदद से राजनीतिक पार्टियां चुनाव लड़ती हैं। इस chronology के अंत में बड़े-बड़े नेता जनता के लिए बनाये गए इन्ही सब योजनाओं को लेकर और ढेर सारे पैसों के साथ चुनाव के समय जनता के बीच जाते है और शाम-दाम-दंड-भेद या फिर कह ले किसी भी माध्यम से चुनाव जितने में लग जाते हैं।
आपको इस बात का उदाहरण आये दिन मीडिया की ख़बरों में मिलता होगा की कैसे राजनितिक पार्टिया चुनाव के समय एक-दूसरे के नेताओं का, मीडिया का और यहाँ तक की जनता का भी खरीद-फरोख्त करती हैं। इन सारी जानकारियों को सुनकर आपके मन में एक सवाल तो जरूर आता होगा की क्या देश की सिस्टम अब सारी योजना देश के रईसों को और आमिर बनाने के लिए तथा केवल चुनाव के नजरिये से तैयार करती है ? क्या अब की सरकारें और उनकी योजनाएं देश के भविष्य और विकास को अँधेरे की तरफ धकेल रही है?