राष्ट्रीय एकता की प्रेरणा हैं सरदार पटेल
आज स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय एकता के प्रतीक, महान स्वतंत्रता सेनानी, देश के पहले उप-प्रधानमंत्री और पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar Vallabh Bhai Patel) की जयंती है। पटेल को भारत का लौहपुरुष भी कहा जाता है। सरदार पटेल का आजादी के बाद भारत को एकसाथ लाने में बड़ा महत्वपूर्ण योगदान था, इसलिए उन्हें राष्ट्रीय एकता का प्रेरणा माना जाता है और इसी कारण गुजरात में उनकी प्रतिमा को स्टेचू ऑफ़ यूनिटी (Statue Of Unity) का नाम दिया गया। पटेल का जन्मदिन देश भर में राष्ट्रीय एकता दिवस के तौर पर मनाया जाता है। सरदार पटेल की जयंती पर देश भर में रन यूनिटी का भी आयोजन किया जाएगा। प्रधानमंत्री सहित देश के तमाम बड़े नेता सरदार पटेल के जन्मदिवस पर उनको याद करते हुए दिख रहे हैं।
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देश भर में आयोजित होते हैं अनेकों कार्यक्रम
इस अवसर पर देश भर में कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे जिसमें सरदार पटेल की जीवनी, उनके महान व्यक्तित्व, उनके सशक्त विचारों, आजादी, राष्ट्रनिर्माण व एकीकरण में उनके योगदान से जनता को रूबरू कराया जाएगा। सरदार पटेल की जीवनी व कार्यों एवं दर्शन पर आधारित क्वीज, निबंध व भाषण प्रतियोगिता का आयोजन विद्यालयो में कराया जाता रहा है। सरदार बल्लभ भाई पटेल की जयंती पर छात्र- छात्राओं को पुरस्कृत भी किया जाता है।
रियासतों को एक साथ करना आसान नहीं
उद्यम और पूंजीवाद के खुले समर्थक होने के कारण सरदार पटेल समाजवादियों को नापसंद करते थे, मगर स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका की प्रशंसा भी करते थे। महात्मा गांधी के बाद हमारे तीन सबसे महत्वपूर्ण नेताओं में पंडित नेहरू, सरदार पटेल और राजेंद्र प्रसाद गिने जाते हैं। जब देश आजाद हुआ तो छोटे छोटे 562 देसी रियासतों में बंटा था। सभी रियासतों को एक साथ करना आसान नहीं था। सरदार पटेल ने इस चुनौती का सामना किया और अपनी बुद्धि व अनुभव का इस्तेमाल करते हुए सभी को एकता के सूत्र में पिरोया। उनके इसी योगदान के कारण सरदार पटेल की जयंती को एकता दिवस के तौर पर मनाते हैं।
किसानों के थे सच्चे हितैषी
लौहपुरुष पटेल को वास्तव में, किसानों के सच्चे हितैषी के रूप में देखा जाता था। 1917 में गोधरा राजनीतिक सम्मेलन के दौरान वह गांधीजी के करीब आए। तब कार्यसमिति के अध्यक्ष गांधी जी बने और वल्लभभाई उनके सचिव। खेड़ा में किसान प्रतिनिधिमंडल उनसे मिला। इसी बीच चंपारण सत्याग्रह की सफलता के किस्से यहां भी सुनाई पड़ने लगे। इसी प्रकार बारडौली का किसान आंदोलन भी ब्रिटिश अफसरों द्वारा उत्पीड़न एवं पुलिस ज्यादती का शिकार हो चला। 1924 और 1927 में दो बार बढ़े हुए लगान की वसूली का विरोध तीव्र हुआ। स्पष्ट है कि सरदार स्वतंत्रता से पहले और उसके तुरंत बाद उतने ही असरदार थे और भारत इस समय जिस दौर से गुजर रहा है, उसमें भी वह राष्ट्रीय एकता की प्रेरक कड़ी बने हुए हैं।