नेता इस आम जनता के औजार को जनता के ही खिलाफ कर रही इस्तेमाल
आपको याद होगा बचपन में जब हम स्कूल जाया करते थे तो क्लासेज शुरू होने से पहले हम प्रेयर या प्राथना किया करते थे। हम सुबह की परयेर में राष्ट्रगान और किसी ईश्वर की प्राथना बोला करते थे। राष्ट्रगान और ईश्वर की प्राथना हमारे अंदर सकरात्मक ऊर्जा बनाये रखने के लिए जरुरी भी है। ठीक इसी तरह देश को भी गतिशील और लोकतंत्र बनाये रखने के लिए संविधान बहुत जरुरी है। किसी भी लोकतान्त्रिक देश के हर नागरिक को संविधान पता होना चाहिए और ये मेरा नहीं बल्कि हमारे स्वतंत्रा सेनानिओं का कहना है। बाबा साहब डॉ भीम राव अंबेडकर ने तो इसे देश के नागरिकों के लिए एक औजार के रूप में बनाया था, पर आज-कल के राजनेताओं ने इसे राजनीति का एक हथियार बना लिया है। अब तो नेता इस आम जनता के औजार (यानि की संविधान) को जनता के ही खिलाफ उनको डरा और बांध कर रखने के काम में ला रहे हैं। इसका थोड़ा बहुत श्रेय तो देश के नागरिक और शिक्षा प्रणाली को भी जाता है। देश के नागरिक न इस संविधान को जानना चाहते हैं और ना ही भारत के शिक्षा प्रणाली में कोई ऐसी व्यवस्था है जिससे यहाँ के नागरिकों को बचपन में ही अपने हक़, अधिकारों और देश के प्रति अपने कर्तव्यों से अवगत कराया जा सके।
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भारत के नागरिकों के पास संविधान है तब तक मैं उनके साथ हूँ
बाबा साहब डॉ भीम राव अंबेडकर कहते थे कि, ‘जब तक भारत के नागरिकों के पास संविधान है तब तक मैं उनके साथ हूँ’ … इसलिए ये तो देश के सभी नागरिकों का अधिकार है की उन्हें तो बचपन में ही यानि की प्राथमिक शिक्षा के दौरान ही संविधान से अवगत करा दिया जाये। दूसरी तरफ की तस्वीर देखे तो यहां के स्कूलों को तो खासकर के प्राइवेट स्कूलों को केवल पैसा बनाने से मतलब दीखता है, पर आज हम आपको एक ऐसे स्कूल के बारे में बताएंगे जहाँ बच्चों को मॉर्निंग प्रेयर में Preamble of the Constitution, Fundamental duties और Fundamental rights सिखाया जाता है। इस स्कूल का नाम है ‘होली फेथ ग्लोबल स्कूल’ … आप यहां के चौथी क्लास के बच्चे से भी मिलेंगे तो उन्हें भी देश का Preamble, Fundamental duties और Fundamental rights कंठस्त याद है। उन्हें बाबा साहेब के संविधान लिखने के पीछा का मकसद पता है। वो जानते हैं कि संविधान भारत को भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक और गणतांत्रिक राज्य घोषित करता है। वहां के बच्चे भी ये जानते हैं कि सरकार अपने फायदे के लिए नागरिकों को उनके मूल अधिकारों के बारे में उतना नहीं जानने देना चाहती।
अंबेडकर के सभी बलिदानों और योगदानों को चुटकी बजाकर दिखा देते हैं छोटा
आप इससे ये अनुमान लगा सकते हैं की जब प्राइवेट स्कूल के पढ़े लिखे छात्रों को संविधान द्वारा दिए गए ताकत का एहसास नहीं है तो देश के दलितों और आदिवासियों को अपने इस ताकत के बारे में कहा से जानकारी होगी। पढ़े लिखे लोग दलितों के सामने अपने तरीके से संविधान पेश कर देते हैं तो सरकार अपने सुविधा के अनुसार से। बाबा साहब अंबेडकर जो जिंदगी भर दलितों के हक़ और अधिकारों के लिए लड़ते रहें और भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के खिलाफ रहे, आज के नेता अंबेडकर के इन सभी बलिदानों और योगदानों को चुटकी बजाकर छोटा दिखा देते हैं। आप अगर किसी सिविल सर्विस की तयारी करने वाले स्टूडेंट से मिलेंगे या फिर किसी अधिकारी से तो वो सब आपको ये कहते सुनाई पड़ेंगे ‘जिस नागरिक के पास जितनी ज्यादा संविधान की जानकारी होगी वो उतना ही अपने अधिकारों का बारे में अवगत होगा। वो अपने देश की सरकार और अधिकारीयों से उतने ही हक़ से सवाल करेंगे और अपने अधिकारों के प्रति सचेत रहेगा।
इसलिए आप भारत की शिक्षा प्रणाली में ये कभी नहीं देखेंगे की कोई भी स्कूल अपने बच्चों को राइट तो स्पीच और राइट तो एक्सप्रेशन की अहमियत सिखाता दिखेगा या फिर अब का कोई राजनेता अपने भाषणों में ये कहता मिलेगा की हम आपको संविधान की ताकत से अवगत कराएंगे। भाई स्कूल, राजनीतिक पार्टी और नेता सभी जानते की आखिरी में जनता उन्ही से अपने अधिकारों के लिए सवाल करने लगेगी। बाबा साहब ने उसी समय इस चीज को भांप लिया था। वो जानते थे की आने वाले समय में संविधान किसके हाथ में है इस पे बहुत कुछ निर्भर करेगा। अम्बेडकर का कहना था कि ‘संविधान पर अमल केवल संविधान के स्वरूप पर निर्भर नहीं करता. मतलब की सिर्फ संविधान में क्या लिखा है इसपर डिपेंड नहीं करता। वो आगे कहते हैं कि ‘संविधान केवल विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे राज्य के अंगों का प्रावधान कर सकता है. उन अंगों का संचालन लोगों पर तथा उनके द्वारा अपनी आकांक्षाओं तथा अपनी राजनीति की पूर्ति के लिए बनाये जाने वाले राजनीतिक दलों पर निर्भर करता है.’
जैसे गाड़ी के लिए पेट्रोल वैसे ही देश के लिए है संविधान
बाबा साहब के इन शब्दों से आपको ये तो पता चल ही गया होगा की संविधान हम सिर्फ अपने ताकतों के बारे में बता सकता है और विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को किस रह पर चलना है उसके लिए मैप-दंड तय कर सकता है, पर संविधान सही और पूर्ण तरीके से लागु है की नहीं वो देश की जनता और उनके द्वारा चुने गए राजनीतिक दलों पर निर्भर करता है। इसलिए अंत में इन सब चीजों का बस इतना ही मतलब है की ‘जैसे गाड़ी पेट्रोल के बिना, या फिर किसी दूसरे ईंधन से नहीं चल सकती, वैसे ही देश भी बिना संविधान सही से नहीं चल सकता।’ अब ये तो सरकार और जनता पर निर्भर करता है की किसके पास कितना संविधान के ज्ञान का ईंधन है और देश किस रास्ते पर चलेगा।