कोरोना के बाद भी नहीं खुली सरकार की आंख
देश भर की चिकित्सा प्रणाली की कमर टूटी हुई है और अस्पतालों की हालत दिन-ब-दिन बदहाल होते जा रही है। अगर आपको कोरोना महामारी याद होगी तो आपको वो खौफनाक मंजर भी याद होगा जहां लोगों को जब अस्पताल में बेड नहीं मिला तो अस्पताल के बाहर ही कई लोगों के प्राण पखेरू हो गए थे, लेकिन अभी भी सरकार की आंखें नहीं खुली हैं। आज बात करते हैं मध्यप्रदेश की जहां एक तरफ इलाज और एम्बुलेंस ना मिलने के कारण एक बाप अपने नवजात बेटे की लाश को गाड़ी के डिक्की में लेकर दर-बदर भटक रहा है वहीं दूसरी तरफ एक मामा अपनी भांजी के शव को कंधे पर उठाये घूम रहा है।
सिंगरौली जिले से सिस्टम की बदनुमा तस्वीर
मध्यप्रदेश के सिंगरौली जिले से सिस्टम की बदनुमा तस्वीर सामने आई है। जहां जिला अस्पताल में एंबुलेंस नहीं मिलने के कारण बेबस पिता अपने नवजात बेटे का शव बाइक की डिक्की में रखकर ले गया। उनका गांव सिंगरौली मुख्यालय से 50km दूर है। इससे पहले दंपती ने बच्चे के शव के साथ कलेक्टोरेट पहुंचकर शिकायत की। कलेक्टर ने SDM को जांच के आदेश दिए हैं।
दिनेश भारती जो बीजपुर के निवासी हैं वह अपनी पत्नी की डिलीवरी कराने के लिए मंगलवार सुबह सिंगरौली पहुंचते हैं। बीजपुर उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में आता है और बीजपुर से सोनभद्र की दूरी 100 km है। सिंगरौली नजदीक है, इसीलिए दिनेश को सिंगरौली पहुंचना ज्यादा आसान और उपयुक्त लगा।
जिला अस्पताल से मरीजों को भेजा जाता है प्राइवेट क्लीनिक
जब दिनेश आनन-फानन में सिंगरौली जिला अस्पताल पहुंचते हैं तो वहां दिनेश को यह जानकारी दी गई की आप डॉक्टर सरिता शाह के प्राइवेट क्लीनिक चले जाओ। प्राइवेट क्लीनिक पहुंचते ही दिनेश के आगे पैसों की मांग रख दी गई। दिनेश को 5 हजार रुपए जमा कराने को कहा, पर दिनेश जिसके जेब में केवल 3 हजार रुपए ही थे, जैसे-तैसे 5 हजार रुपए का इंतजाम किया, तब जाकर प्राइवेट क्लीनिक में उसके पत्नी को एडमिट किया गया।
बच्चे का शव बैग में रख कर गाड़ी के डिक्की में ले जाना पड़ा घर
प्राइवेट क्लीनिक में शुरूआती जांच के दौरान यानि की अल्ट्रासाउंड में पता चला कि गर्भ में मृत बच्चा है। उसके बाद प्राइवेट अस्पताल से दिनेश को वापस जिला अस्पताल भेज दिया गया। जिला अस्पताल में मृत बच्चे का जन्म हुआ। डिलीवरी के बाद उसकी पत्नी की हालत भी ठीक नहीं थी। जब दिनेश ने अस्पताल वालों ने एंबुलेंस की मांग की तो उसके गरीब बच्चे के नसीब में एक सरकारी एम्बुलेंस भी नहीं थी। जिसके बाद दिनेश को अपने बच्चे का शव बैग में रख कर गाड़ी के डिक्की में ले जाना पड़ता है। जब दिनेश कलेक्टर से शिकायत करने पहुँचता है तो हर सरकारी अफसरों की तरह कलेक्टर भी जाँच के आदेश दे देते हैं।
इलाज के दौरान बच्ची ने तोड़ा दम
वहीं दूसरी तरफ ठीक इसी तरह सरकार और अस्पताल के नाकामी का एक और किस्सा मध्यप्रदेश से ही सामने आया है। बाजना थाना क्षेत्र के पाटन गांव में बुधवार सुबह नदी के पास 4 वर्षीय प्रीति अपनी सहेलियों के साथ खेल रही थी, इसी दौरान बच्ची की मिट्टी में दबने से हालत खराब हो गई। हादसे के समय बच्ची का मामा वहीं नदी में नहा रहा था, तुरंत बच्ची को मिट्टी से निकाला और उसे गंभीर हालत में बिजावर अस्पताल ले जाया गया। बच्ची की हालत को देखते हुए उसे जिला अस्पताल रेफर किया गया। जहां इलाज के दौरान बच्ची ने दम तोड़ दिया। यहां तक कहानी आपको सामन्य लगेगी, लेकिन यहीं से शुरू होती है सरकार और सरकारी अस्पताल के नाकामी का किस्सा।
मामा भांजी के शव को कंधे पर लेके गए घर
भांजी की मौत के बाद उसका मामा किशोरी जब शव को कंधे पर लिए अस्पताल प्रबंधन और समाज सेवियों के चक्कर लगाता रहा, लेकिन उसे शव को घर ले जाने के लिए शव वाहन नहीं मिला। जिसके बाद किशोरी भांजी के शव को लेकर नि:शुल्क वाहन की तलाश में समर्पण क्लब में पहुंचा लेकिन, किशोरी को ये समझ नहीं आया की जब सरकारी अस्पताल शव वहां उपलब्ध नहीं करा पा रही तो दूसरों से उम्मीद करना बेकार होता है। उसे समर्पण क्लब में भी निराशा ही हाथ लगी। 2 घंटे इधर-उधर भटकने के बाद परेशान होकर किशोरी अपनी भांजी के शव को उठाकर अस्पताल से पैदल निकल पड़ा और चौराहे से टैक्सी लेकर पुराना बिजावर नाका तक पहुंचा, जहां बच्ची के शव को बस में लेकर अपने गांव के लिए निकला।
पूरे देश की अस्पतालों की है ये कहानी
ये कहानी सिर्फ दिनेश और किशोरी या फिर केवल मध्यप्रदेश की ही नहीं है, अगर आप देश के किसी भी सरकारी अस्पताल के सामने खड़े हो जाएं तो आपको पता चलेगा की ये कहानी देश की हर एक आम जनता की है। अगर आपके पास पैसे हैं या फिर आपकी पहचान बड़े नेता या अफसर से है तो आपके लिए अस्पताल होटल बन जाएगा और नहीं तो आपको कोरोना काल की देश भर की अस्पतालों की स्थिति तो दिखी ही होगी।