कहते हैं वक़्त और हालात सभी जख्मों को भर देते हैं लेकिन कुछ जख्म कभी नहीं भरते बस उन्हें गुजरे हुए थोडा समय हो जाता हैं ऐसा ही एक जख्म है 2 दिसम्बर 1984 का, जब भोपाल की हवा में मौत बह रही थी और जब 2 दिसंबर 1984 की रात लोग सोये तो उनकी ज़िन्दगी में सुबह नहीं हुई. ये बात उस रात की जिसे भोपाल गैस कांड और बाद में भोपाल गैस त्रासदी का नाम दिया गया. 2 दिसंबर 1984 रात 8:30 बजे से मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की हवा अचानक से जहरीली हो गयी और 3 तारीख लगते ही ये हवा जहरीली होने के साथ-साथ जानलेवा भी हो गई जिसका कारण था यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का लीक होना।
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जहरीली गैस का हुआ था रिसाव
मध्य प्रदेश की भोपाल में एक यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी थी और इस कंपनी के कारखाने से एक जहरीली गैस रिसाव हुआ जिसका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता था. दरअसल, कंपनी के कारखाने में बनी आइसोसाइनेट गैस पानी से मिल गया था जिसके कारण टैंक में दबाव बन गया और वो खुल गया।
झुग्गी-बस्ती के लोगे बने जहरीली गैस का शिकार
इस फैक्ट्री के पास ही झुग्गी-बस्ती बनी थी, जहां पर काम की तलाश में दूर-दराज गांव से आकर लोग रह रहे थे और इस जहरीली गैस ने सबसे पहले इन झुग्गी-बस्तियों में रह रहे लोगों को सबसे पहले अपनी चेपेट में लिया और कुछ लोगों की तो नींद में ही मौत आ गई। जब गैस धीरे-धीरे लोगों को घरों में घुसने लगी, तो लोग घबराकर बाहर आए, लेकिन यहां तो हालात और भी ज्यादा खराब थे। किसी ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया, तो कोई हांफते-हांफते ही मर गया। ऐसी इसलिए हुआ क्योकि इस तरह के हादसे के लिए कोई तैयार नहीं था।
अलार्म सिस्टम भी घंटों तक रहा बंद
वहीं उस समय फैक्ट्री का अलार्म सिस्टम भी घंटों तक बंद रहा था, जिसके कारण किसी को भी इस गैस रिसाव की खबर नहीं हुई और हालात और खराब होते गये. जैसे-जैसे रात बीत रही थी, अस्पतालों में भीड़ बढ़ी जा रही थी, लेकिन डॉक्टरों को ये मालूम नहीं था कि हुआ क्या है? और इसका इलाज कैसे करना है?उस समय इस जहरीली गैस के कारण किसी की आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था, तो किसी का सिर चकरा रहा था और सांस की तकलीफ तो सभी को थी। एक अनुमान के मुताबिक, सिर्फ दो दिन में ही 50 हजार से ज्यादा लोग इलाज के लिए पहुंचे थे। जबकि, कइयों की लाशें तो सड़कों पर ही पड़ी थीं।
हादसे का मुख्य आरोपी हुआ अमेरिका रवाना
इस हादसे का मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन था, जो इस कंपनी का CEO था। 6 दिसंबर 1984 को एंडरसन को गिरफ्तार भी किया गया, लेकिन अगले ही दिन 7 दिसंबर को उन्हें सरकारी विमान से दिल्ली भेजा गया और वहां से वो अमेरिका चले गए। इसके बाद एंडरसन कभी भारत लौटकर नहीं आए. कोर्ट ने उन्हें फरार घोषित कर दिया था और 29 सितंबर 2014 को फ्लोरिडा के वीरो बीच पर 93 साल की उम्र में एंडरसन का निधन हो गया.
5 लाख लोग घायल और 15,724 लोगों की गयी थी जान
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस दुर्घटना में 3,787 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 5.74 लाख से ज्यादा लोग घायल या अपंग हुए थे. दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट में पेश किए गए एक आंकड़े में बताया गया है कि दुर्घटना ने 15,724 लोगों की जान ले ली थी. वहीं इस भोपाल के हवा में शामिल इस गैस का असर 8 घंटे बाद खत्म हुआ, लेकिन 1984 में हुई इस दुर्घटना से मिले जख्म आज भरे नहीं हैं.