भारतीय रेलवे के एक क्लर्क की सरकारी नौकरी चली गयी और उसकी नौकरी जाने की पीछे की वजह सिर्फ 6 रुपये है. जिसके बाद इस सरकारी नौकरी से हाथ धोने वाले भारतीय रेलवे के इस कर्मचारी ने बॉम्बे हाईकोर्ट से इस मामले में राहत मांगी और अपील की लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी इस मामले में क्लर्क को राहत देने से इनकार कर दिया.
जानिए क्या है मामला
ये मामला 30 अगस्त साल 1997 मुंबई का है. जहाँ पर रेलवे कर्मचारी राजेश वर्मा रेलवे में क्लर्क के रूप में तैनात थे 30 अगस्त 1997 को राजेश वर्मा कुर्ला टर्मिनस जंक्शन मुंबई में कंप्यूटरीकृत करंट बुकिंग कार्यालय में यात्रियों के टिकट बुक करने का काम कर रहे थे. वहीं इस दौरान विजिलेंस टीम ने एक रेलवे पुलिस बल (RPF) के एक कांस्टेबल को यहाँ पर नकली यात्री बनाकर क्लर्क राजेश वर्मा के काउंटर पर भेजा. जहाँ उसने खिड़की पर जाकर कुर्ला टर्मिनस से आरा (बिहार) तक के टिकट माँगा जिसका किराया ₹214 था और यात्री ने ₹500 का नोट दिया जिसके बाद वर्मा को ₹286 लौटाने थे लेकिन ₹6 कम देकर सिर्फ ₹280 लौटाए.
काउंटर पर की गयी छापेमारी
वहीं इसके बाद विजिलेंस टीम ने बुकिंग क्लर्क राजेश वर्मा के टिकटिंग काउंटर पर छापेमारी की और इस छापेमारी में पता चला कि टिकट बिक्री के हिसाब से में 58 रुपये कम हैं साथ ही क्लर्क की सीट के पीछे रखी स्टील की अलमारी से 450 रुपये की राशि बरामद की गई. वहीँ विजिलेंस टीम के अनुसार, यह राशि वर्मा को यात्रियों से अधिक किराया वसूली से मिली थी. जिसके बाद राजेश वर्मा के खिलाफ कार्यवाही शुरू हुई और महज ₹6 कम देने के चक्कर उन्हें अपनी सरकारी नौकरी गवानी पड़ी.
दया याचिका भी हुई खारिज
रिपोर्ट आने पर 31 जनवरी 2002 को उन्हें दोषी ठहराया गया और नौकरी से निकाल दिया गया. जिसके बाद वर्मा ने इस आदेश के खिलाफ अपीलीय प्राधिकरण के सामने रखी और 9 जुलाई 2002 को इसे खारिज कर दिया. इसके बाद फिर वर्मा 23 अगस्त 2002 को पुनरीक्षण प्राधिकरण के पास गए और 17 फरवरी 2003 को उनकी दया याचिका भी खारिज कर दी गई .
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला
वहीँ पुनरीक्षण प्राधिकरण से निराशा हाथ लगने के बाद वर्मा ने मामले को कोर्ट में ले गये. जहाँ उनके वकील ने सफाई देते हुए कहा कि छुट्टे पैसे की उपलब्धता न होने के कारण यात्री को 6 रुपये तुरंत वापस नहीं किए जा सके और नकली यात्री से शेष राशि की वापसी के लिए इंतजार करने को कहा गया था. वहीं ये भी कहा कि जो 450 रुपये की राशि मिली वो क्लर्क वर्मा के नियंत्रण में नहीं थी. वह अलमारी बुकिंग कार्यालय में काम करने वाले सभी कर्मचारियों के उपयोग के लिए थी. वहीं इस मामले पर जस्टिस नितिन जामदार और एसवी मार्ने की बेंच ने कहा कि उस दौरान न तो फर्जी यात्री और न ही किसी गवाह ने क्लर्क वर्मा को बाकी के 6 रुपये लौटाने की बात कहते सुना था. इसका रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं है.
इसी के साथ हाईकोर्ट की बेंच ने यह भी कहा कि अलमारी का स्थान वर्मा की खिड़की के ठीक पीछे था और उनकी वहां तक पहुंच थी. वहीं, रेलवे की ओर से पेश वकील सुरेश कुमार ने हाईकोर्ट से केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (सीएटी) कैट के आदेश को कायम रखने का आग्रह किया और इसके बाद कोर्ट के जरिये भी उन्हें मामले में राहत नहीं मिली.