क्या है महिला आरक्षण बिल? इसे लेकर क्यों मचा है बवाल, जानें इससे जुड़ी हर एक बात

women reservation bill
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18 सितंबर को संसद के पांच दिवसीय विशेष सत्र की शुरुआत हुई है. वहीं इस पांच दिवसीय विशेष सत्र में महिला आरक्षण विधेयक को लागू करने की चर्चा है और इसको लेकर कई समय से बवाल मचा हुआ है. वहीं इस बीच इस पोस्ट के जरिए हम आपको महिला आरक्षण बिल क्या है और इस बिल को लेकर बवाल क्यों मचा है इस बात की जानकारी देने जा रहे हैं.

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जानिए क्या है महिला आरक्षण बिल

27 साल से ज्यादा समय से लंबित महिला आरक्षण बिल को सोमवार की शाम को मोदी कैबिनेट की बैठक में महिला आरक्षण बिल को मंजूरी भी दे दी गई है. वहीं अब ये बिल संसद में पेश होगा और अगर ये बिल पारित हो जाता है तो उसके बाद संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई यानी 33 फीसदी सीटें आरक्षित हो जाएंगी. वहीं अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों में से एक-तिहाई सीटें एससी-एसटी समुदाय से आने वाली महिलाओं के लिए आरक्षित होगी साथ ही इन आरक्षित सीटों को राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अलग-अलग क्षेत्रों में रोटेशन प्रणाली से आवंटित किया जा सकता है. वहीं महिला आरक्षण बिल के अनुसार, महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण 15 साल के लिए ही होगा.

वहीं महिला आरक्षण बिल की जरूरत इसलिए है ताकि इससे पंचायत से लेकर विधानसभाओं, विधान परिषदों और देश की संसद में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ें. वहीं इस बिल को कानूनी दर्जा मिलने से देश की सियासत से लेकर सरकारी और निजी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी.

बिल को लेकर क्यों मचा है बवाल

महिला आरक्षण विधेयक लंबे समय से संसद में लंबित है. 2010 में ही इस बिल को राज्यसभा से पारित किया जा चुका था, लेकिन अब तक लोकसभा में पेश नहीं किया जा सका. वहीं कांग्रेस और बीजेपी इस बिल के समर्थन में हैं तो वहीं एनी दलों की कुछ ऐसी मांगें रही जिसकी वजह से ये विधयेक पास न हो सका.

वहीं इस बिल को बवाल इस बात का है कि कई राजनीतिक दल और नेता सवाल उठाते हैं कि इसका फायदा कुछ विशेष वर्ग तक सीमित रह जाएगा साथ ही ये भी कहा गया कि देश की दलित, पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में कमी हो सकती है. इन नेताओं की मांग है कि महिला आरक्षण के भीतर ही दलित, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित की जायें. हालांकि, इस बात के लिए अभी संविधान में कोई प्रावधान नहीं है. वहीं आरजेडी ने भी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के साथ महिला आरक्षण बिल का विरोध किया था. किसी का भी विरोध महिला आरक्षण को लेकर नहीं रहा है, बल्कि विरोध करने वालों ने मसौदे के स्वरूप पर आपत्ति जताई है.

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