भारत किसी देश की बराबरी करने नहीं, विश्वगुरु बनने आया है
अच्छे दिन, विकाश, सब का साथ-सब का विकास, एक करोड़ जॉब,मेक इन इंडिया , स्मार्ट सिटी , आत्मनिर्भर भारत, पांच ट्रिलियन का इकॉनमी और विश्वगुरु जैसे शब्द आम तौर पर हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों में सुनने को मिलता है, या कह लीजिये मिलता था। अगर आपको याद नहीं तो एक बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 2014 लोकसभा चुनाव का मेनिफेस्टो देख लीजिये तब शायद कुछ याद आ जाये। प्रधानमंत्री मोदी का आप किसी भी चुनाव से पहले का भाषण उठा कर देख लीजिये। वो चाहे 2014 या 2019 का लोकसभा चुनाव हो या किसी राज्य का विधानसभा चुनाव, आपको हमारे प्रधानमंत्री कभी छोटी बाते करते हुए नहीं दिखेंगे । कभी भी उन्होंने हमें दुनिया की बराबरी में खड़े होने की बात नहीं कही, वो तो सीधा सभी के खाते में 15-20 लाख रुपये डाल देना चाहते थे, वो हमे सीधा विश्वगुरु बनाना चाहते हैं। लेकिन भारत की भोली-भाली गरीब जनता, इन्हे तो चाहिए नौकरी, इन्हे तो भाई! इस धीमी गति से बढ़ती हुई इकॉनमी में अपना योगदान देना है।
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भारत में बढ़ती बेरोजगारी दर
आप ये सब जुमले प्रधानमंत्री और भाजपा के नेताओं के जुबान से अक्सर सुनते रहते होंगे, पर गोदी मीडिया और आईटी सेल आपके पास प्रधानमंत्री के नाकामी के किस्से कभी पहुँचने ही नहीं देते है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में बेरोजगारी की दर बढ़कर 8.3 प्रतिशत हो गई, जो बीते 12 महीनों की दरों की तुलना में सबसे ज्यादा है। बेरोजगारी दर बढ़ने से आप एक चीज का और अनुमान लगा सकते है और वो है अर्थव्यवस्था (economy) । बेरोजगारी दर बढ़ने का मतलब ही होता है जब लोगों की उम्र नौकरी की हो गई हो लेकिन देश की अर्थव्यवस्था उन्हें उचित नौकरी देने में असमर्थ है। यहां पर थोड़ी गौर करने वाली बात यह है की अर्थव्यवस्था ‘उचित नौकरी देने में असमर्थ’ है, ‘उचित नौकरी’। यहां प्रधानमंत्री के सव-रोजगार वाले भाषण से confuse मत हो जाइएगा, जिसमे उन्होंने भारतीय युवाओं को पकौड़ा बेचने के लिए प्रोत्साहित किया था। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में काम करने वाले लोगों में बढ़ोतरी हो रही है। देश में काम करने वाले लोगों की संख्या 43 करोड़ के पार पहुंच गई है। दूसरी तरफ आप मोदी सरकार के आने के बाद सिर्फ सरकारी नौकरियों को देखे तो 2014 के बाद हर साल इसमें कटौती ही नजर आएगी। मोदी सरकार ने हाल में ही लोकसभा को सूचित करते हुए बताया था कि 2014-15 से 2021-22 तक 22.05 करोड़ नौकरियों के आवेदान प्राप्त हुए और केवल 7.22 लाख मतलब पुरे आवेदन के 0.33 प्रतिशत ही केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में नियुक्तियों के लिए चुने गए।
सरकारी योजनाएं फ़क़ीर के झोली में पड़ी ठंडी
एक समय ऐसा था जब सारे गोदी मीडिया की सुर्ख़ियों में मोदी ही होते थे पर अब गोदी मीडिया भी बेचारी कंफ्यूज है की अब इन रिपोर्टे के बारे में जनता को क्या कहे। अब तो रोजगार से जुड़े हुए जुमले भी धूमिल पड़ते जा रहे है। अब कोई भी सरकारी योजनाएं जैसे, start-up India, make in India, skill India के बारे में बात नहीं कर रहा, ये सारे जुमले फ़क़ीर के झोली में ठंडी पड़ी हुई है। मोदी जी के विश्वगुरु का वादा भी अब कुछ खास काम नहीं आ रहा है क्यूंकि अगर फैक्ट्स की बात करे तो बांग्लादेश जो भारत के किसी राज्य के बराबर होगा, वहां भी प्रति व्यक्ति आय भारतीय से 27% अधिक है। विश्व गुरु तो अभी दूर की बात है, अभी हमारी सरकार देश में बढ़ती हुई महंगाई पर ही ध्यान दे-दे तो बहुत बड़ी बात होगी। अब तो लोग ट्विटर पर ट्वीट करके प्रधानमंत्री और भाजपा सरकार को उनके जुमले की याद दिलवा रहे है। लोग कह रहे हैं कि, “पिछले आठ वर्षो से बजट को हासिये पर पटक रखा है , न रोज़गार है न बचत न अच्छे दिन …बस जुमले और छलावा”। अब इन भोली-भलि जनता को कौन समझाए कि भाई मंजिल पर ध्यान दो, प्रक्रिया पे नहीं। मतलब की विश्व गुरु बनने पे ध्यान दो ये सब क्या नौकरी, अच्छे दिन, विकास की रट्ट लगा रहे हो। मित्रों ये सब से क्या होगा हमारा टारगेट तो विश्व गुरु है।
प्रधानमंत्री के इतने सारे बेहिसाब काम और जुमलों को देख कर जनता से अब रहा नहीं जा रहा वो भी अब समझ गई है की रोजगार, GDP, इकॉनमी ये सब बस अब सपने है, हमारा और देश का असली मकसद तो विश्वगुरु बन कर दूसरे देशों को फकीरी का सीक्रेट सिखाना है।
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