ये हैं BJP के 5 बड़े 'भ्रष्ट' नेता! जिनपर ED, CBI नहीं करती कोई कार्रवाई

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“हम भ्रष्टन के, भ्रष्ट हमारे

और करें तो छापा मारे…”

यह पंक्ति मौजूदा समय में भाजपा पर काफी सटीक बैठती है. विपक्षी नेताओं पर सरकारी एजेंसियों की कार्रवाई किसी से छिपी नहीं है और इन एजेंसियों ने सत्ताधारी पार्टी के नेताओं पर कितनी कार्रवाई की है, यह भी आप बेहतर जानते हैं. पिछले कुछ वर्षों में हमने देखा है कि भ्रष्टाचार में संलिप्त कई नेता भाजपा में शामिल हुए और उनसे जुड़े मामलों पर ताला लग गया. विपक्षी पार्टियों की ओर से भी लगातार यह आरोप लगाए जाते रहे हैं कि भाजपा वाशिंग पाउडर की तरह है, उसमें जो भी जाता है उसके सारे दाग धुल जाते हैं. इस लेख में आज हम आपको भाजपा के 5 ऐसे भ्रष्ट नेताओं के बारे में बताएंगे, जिनपर घोटाले के कई बड़े आरोप हैं और उसके बावजूद जांच एजेंसियों की ओर से उन्हें क्लीन चिट मिली हुई है!

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शिवराज सिंह चौहान

शिवराज सिंह चौहान लंबे समय से मध्यप्रदेश के सीएम हैं. लगातार 15 वर्षों तक मुख्यमंत्री रहने के बाद वर्ष 2018 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था लेकिन येन केन प्रकारेण वो फिर से सीएम बन गए. 2018 में अगर उनकी हार की कहानी को बारीकी से समझा जाए तो तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार द्वारा किया गया व्यापमं घोटाला काफी चर्चा में रहा. इस घोटाले में शिवराज सिंह चौहान पर भी कई तरह के आरोप लगे और उसका असर विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला, जिसमें भाजपा को हार नसीब हुई थी. 

दरअसल, व्यापमं भर्ती घोटाले में खुलासों की औपचारिक शुरुआत 18 जुलाई, 2013 को हुई जब इंदौर पुलिस ने व्यापमं के सेंट्रल सर्वर की हार्ड डिस्क जब्त कर ली. इसके बाद तो खुलासों का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व सीएम उमा भारती, आरएसएस के पूर्व सरसंघचालक के एस सुदर्शन, सुरेश सोनी, मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा सहित कई बड़े नेता और अधिकारी इसमें उलझते चले गए. उसके बाद इस मामले को एसटीएफ को सौंप दिया गया. 2014 के लोकसभा चुनाव में तो यह बड़ा मुद्दा नहीं बना लेकिन घोटाले की हकीकत सामने आ गई. पता चला कि साल 2004 से 2013 के बीच व्यापमं ने करीब 212 प्रवेश एवं चयन परीक्षाएं आयोजित की जिनमें करीब एक करोड़ 7 लाख छात्र शामिल हुए थे. एसटीएफ ने बताया कि इनमें से अधिकांश परीक्षाओं में लेन-देन से भर्तियां की गईं.

व्यापमं घोटाले में जब सीधे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम आने लगा तो सीएम हाउस में बीजेपी के पदाधिकारियों की एक बैठक बुलाई गई. बैठक में विशेष रूप से तैयार की गई पुस्तिका ‘व्यापमं का सच’ बांटी गई. ध्यान देने वाली बात है कि पुस्तिका तैयार करने का उद्देश्य सीएम शिवराज को घोटाले की आंच से बचाना था, लेकिन इसका असर उल्टा हो गया। इसमें घोटाले के दौरान हुई करीब 36 मौतों की जानकारी भी शामिल थी. फरवरी 2015 में कांग्रेस ने आरोप लगाया कि शिवराज ने हार्ड डिस्क से छेड़छाड़ कर उसमें अपनी प्रतिद्वंद्वी उमा भारती का नाम जुड़वाया और अपना तथा पत्नी साधना सिंह का नाम हटवा दिया. हालांकि, इतना सब होने के बाद भी यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया.

बीएस येदियुरप्पा

बीएस येदियुरप्पा का कार्यकाल ही घोटालों से शुरु हुआ था. वर्ष 2008 में पहली बार दक्षिण भारत में भाजपा की सरकार बनाने वाले येदियुरप्पा पहले नेता थे. लेकिन सीएम बनने के 2 वर्ष बाद ही उनपर अवैध खनन के आरोप लगने लगे. जुलाई 2011 में अवैध खनन पर लोकायुक्त संतोष हेगड़े द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट में येदियुरप्पा को दोषारोपित किए जाने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था. 

रिपोर्ट में साउथ वेस्ट माइनिंग कंपनी से प्रेरणा ट्रस्ट को 10 करोड़ रुपये मिलने और खनन कंपनी द्वारा राचेनहल्ली में 1.02 एकड़ जमीन खरीदने के बदले में ट्रस्ट को 20 करोड़ रुपये का भुगतान किए जाने की बात कही गई थी. इस ट्रस्ट का स्वामित्व और प्रबंधन येदियुरप्पा के परिवार के पास है.

हालांकि, इन सबके बावजूद भाजपा ने वर्ष 2016 में उन्हें कर्नाटक भाजपा का अध्यक्ष बनाया. उनके नेतृत्व में भाजपा कर्नाटक चुनाव 2018 जीतने में सफल रही और येदियुरप्पा फिर से सीएम बन गए. हालांकि, भ्रष्टाचार के मामले और पार्टी में असंतोष के कारण उन्हें दोबार अपने पद से इस्तीफा देना पड़ गया था.

मुकुल रॉय

मुकुल रॉय, ममता बनर्जी के सबसे करीबी नेताओं में से एक हैं. वह नारदा स्कैम मामले में आरोपी रह चुके हैं. वर्ष 2019 में वो पूरी तरह से इस मामले में सीबीआई की रडार पर थे. उनसे की बार पूछताछ भी हुई थी लेकिन पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 से ठीक पहले वह भाजपा में शामिल हो गए. मई 2021 में जब सीबीआई ने इस मामले में कार्रवाई करते हुए गिरफ्तारी की तो उसमें से मुकुल रॉय का नाम गायब था. अब आप क्रोनोल़जी सझिए. भाजपा में शामिल होने के बाद नारदा स्कैम के मुख्य आरोपियों में से एक मुकुल रॉय का नाम ही गायब हो जाना, अपने आप में एक प्रश्न चिह्न के समान है. हालांकि, मुकुल रॉय फिर से टीएमसी में शामिल हो चुके हैं.

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शुभेंदु अधिकारी

शुभेंदु अधिकारी वही नेता हैं, जो एक समय में ममता बनर्जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहते थे. उनका पूरा परिवार ही टीएमसी की टिकट पर चुनाव लड़ता था और उन्हें जीत भी हासिल होती थी. यह लंबे समय तक टीएमसी में रहे और हर एक भ्रष्टाचार में कथित तौर पर इनका नाम भी सामने आया. शारदा चिट फंड घोटाला तो आपको याद ही होगा. शुभेंदु अधिकारी इस घोटाले के मुख्य आरोपियों में से एक थे. लेकिन पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा के पोस्टर बॉय बनने के बाद शुभेंदु अधिकारी पर किसी भी तरह की कोई आंच नहीं आई. नारदा स्कैम में भी इनका नाम था लेकिन मुकुल रॉय के साथ इनके भी पाप धुल गए और शारदा स्कैम में भी इन पर किसी भी तरह की कोई कार्रवाई होती नहीं दिखी.

हिमंता बिस्वा सरमा

वर्ष 2002 में पहली बार कांग्रेस सरकार के मंत्रिमंडल का हिस्सा बनने वाले हिमंता लंबे समय तक कांग्रेस के वफादार रहे. उन्हें पार्टी की राज्य ईकाइ में नंबर 2 का दर्जा प्राप्त था. ऐसा लगता था कि असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के बाद वही राज्य के सीएम बनेंगे लेकिन 2011 से चीजें बदलने लगी. तरुण गोगोई अपने बेटे को लॉन्च करने की कोशिश करने लगे. उससे पूर्व 2010 में गुवाहाटी में एक स्कैम की खबर भी सामने आई, जिसने असम की राजनीति में भूचाल ला दिया था. 

दरअसल, 21 जुलाई, 2015 को बीजेपी ने नई दिल्ली में पार्टी सांसदों की एक बैठक में ‘वाटर सप्लाई स्कैम-2010’ नाम से एक बुकलेट जारी की थी, जिसमें अमेरिकी बहुराष्ट्रीय निर्माण प्रबंधन कंपनी लुइस बर्जर इंटरनेशनल की एक जल आपूर्ति परियोजना में सेवाएँ लेने के एवज में गुवाहाटी विकास विभाग पर घोटाला करने के आरोपों का उल्लेख था. असम में उस समय कांग्रेस की सरकार थी और हिमंत बिस्वा सरमा गुवाहाटी विकास विभाग के प्रभारी मंत्री थे. असल में जल आपूर्ति परियोजना से जुड़ा यह कथित घोटाला गोवा और गुवाहाटी में हुआ था.

लेकिन इस मामले में तब भी बहुत कुछ नहीं हुआ क्योंकि केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और नॉर्थ ईस्ट में हिमंता बिस्वा सरमा की पकड़ ने कांग्रेस की आंखों पर पट्टी बांध रखी थी. लोकसभा चुनाव 2014 में भी हिमंता काफी एक्टिव रहे और भाजपा समेत नरेंद्र मोदी पर आग उगलते रहे. लेकिन 2014 में भाजपा की जीत के बाद चीजें बदल गई. केंद्र में मोदी की सरकार बनने के 15 महीने के भीतर ही हिमंता भाजपा में शामिल हो गए. कई नेताओं ने आरोप लगाया कि भ्रष्टाचार के आरोपों और उसकी जांच से बचने के लिए उन्होंने भाजपा का दामन थामा. हालांकि, उनके विरुद्ध अभी तक किसी भी मामले में कोई कार्रवाई देखने को नहीं मिली है.

और पढ़ें: एक माफी से बच सकती थी राहुल गांधी की सदस्यता! मानहानि के मामले में पहले तीन बार मांग चुके हैं माफी 

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