स्वर्ण मंदिर के परिसर में ‘पहला बल्ब’ जलने के 33 साल बाद आई थी बिजली

Electrification of Golden Temple
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Electrification of Golden Temple – सिख आस्था के प्रतीक स्वर्ण मंदिर को लेकर कई किस्से और कहानियां हैं. अमृतसर के दिल में बसा यह गुरुद्वारा सिखों का सबसे पवित्र गुरुद्वारा है. अकाल तख्त के निर्माण से लेकर SGPC के गठन तक…यह गुरुद्वारा आंदोलनों का भी केंद्र रहा है. गुरुद्वारे में दीपमाला और रोशनी की प्रथा तो गुरु साहिबान के समय से चला आ रहा है लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस गुरुद्वारे में सबसे पहले बल्ब कब जलाया गया था? स्वर्ण मंदिर में बिजली कैसे आई? आज के लेख में इन्हीं प्रश्नों के उत्तर जानेंगे.

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1897 में पहली बार जला बल्ब

दरअसल, अमृतसर में पांचवें गुरु, गुरु अर्जनदेव जी ने 1581 में स्वर्ण मंदिर का निर्माण शुरु कराया, जिसका काम लगभग 8 सालों में पूरा हुआ. 1589 में स्वर्ण मंदिर पूरी तरह से बनकर तैयार हो गया. पहले इसका नाम श्री हरिमंदिर साहिब था. यह पवित्र स्थान अंधेरे में न रहे, इसलिए इसे दीपों से सजाया जाने लगा…समय के साथ-साथ यह प्रथा में बदल गई और यह तय हो गया कि पूरे गुरुद्वारे में दीपमाला लगाई जाएगी.

यही प्रथा सदियों तक चलती रही. 100 एकड़ में फैले इस गुरुद्वारे की भव्यता की चर्चा दूर दूर तक थी. 1897 में प्रीतकोट के महाराज विक्रम सिंह ने श्री हरिमंदिर साहिब में एक जेनरेटर और बिजली के कुछ सामानों के जरिए अरदास कराया था. ताकि गुरुद्वारे में रोशनी लाई जा सके. यह पहली बार था जब स्वर्ण मंदिर के कैंपस में इलेक्ट्रिक बल्ब जला था. लेकिन उसके बाद लंबे समय तक इस गुरुद्वारे में बिजली नहीं आई और फिर से लोग दीपमाला प्रथा पर शिफ्ट हो गए.

1930 के आसपास आई बिजली

सिखों (Electrification of Golden Temple) के लिए उनकी धार्मिक आस्था सबसे ऊपर होती है. कहा तो यह भी जाता है कि सिखों की धार्मिक आस्था के मध्य इस पर विवाद भी हो गया था कि श्री हरिमंदिर साहिब में बिजली लगाई जाएगी या नहीं. इस बारे में पंथक राय एक समान नहीं थे. कोई बिजली का बल्ब जलाने के हक में था तो वहीं कुछ लोग दीप जलाने के पक्ष में थे. कुछ सिख इसे पश्चिमी सभ्यता समझ कर नकार रहे थे. इसी उधेड़बुन में समय बीतता रहा और आरोप प्रत्यारोप चलते रहे.

1898 में श्री हरिमंदिर साहिब के सरोवर के पास बल्ब जला दिया गया लेकिन यह बल्ब जेनरेटर से था. 1930 के आस पास जब नगर निगम द्वारा पूरे अमृतसर में बिजली लगाई गयी, तो उस समय स्वर्ण मंदिर परिसर में भी बिजली आई और इलेक्ट्रिक बल्ब जलने लगे. बिजली लगने के बाद भी बवाल थमा नहीं. काफी ज्यादा संख्या में सिख इसे पश्चिमी सभ्यता का अंग मान रहे थे. हालांकि, धीरे धीरे चीजें सामान्य हुई और स्वर्ण मंदिर में हमेशा के लिए बिजली आ गई.

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