Jallianwala Bagh Massacre Day: जनरल डायर की गोली से बचकर निकलने वाले क्रांतिकारी की कहानी

JALLIANWALA BAGH MASSCRE, गोविन्द बल्लभ शास्त्री भट्ट
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आज भारतीय इतिहास का वो काला दिन है जब अंग्रेजों के मुखिया जर्नल डायर के एक इशारे पर बाग में निहत्थे मासूमों को गोलियों से भून दिया था. हां वही वक़्त जब स्वर्ण मंदिर के पास जालियावाला बाग में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे अनगिनत निहत्थे मासूमों को गोलियों से छल्ली कर दिया गया था. इस घटना के दिन कासगंज की तीर्थनगरी सोरों जी के एक साहित्यकार व क्रांतिकारी पंडित गोविन्द बल्लभ शास्त्री भट्ट भी अमृतसर के जलियांवाला बाग में चल रही सभा में संचालित हो रहे मंच पर मौजूद थे. और इसी सभा में अचानक से आ धमके जनरल डायर ने फायरिंग का आदेश दे दिया.लेकिन डायर की इस अंधाधुंध फायरिंग के बीच भी पंडित गोविन्द बल्लभ शास्त्री भट्ट अपनी जान बचाने में कामयाब रहे.

गोविन्द बल्लभ शास्त्री भट्ट ने अपनी आत्मकथा में…

अपनी आत्म्कथा में इस वाकये का जिक्र करते वो लिखते हैं कि, 13 अप्रैल 1919 के  दिन जलियांवाला बाग की सभा के मंच पर वक्ताओं में मैं भी वहीँ मौजूद था. मेरे साथियों को गोलियां लगीं . मैं कैसे भी वहां से बच निकला. वहां अनगिनत निहत्थे बूढ़े बच्चे जवान व महिलाओं को चुनकर गोली मार दी गई. इस नरसंहार को उन्होंने अपनी आंखों से देखा था. किताब में आगे लिखते हुए वो कहते हैं कि मार्शललॉ लागू होने कि वजह से वो सोरों आ गए और अपनी साहित्यिक खोज में लग गए.

क्या होता है मार्शल लॉ ?

मार्शल लॉ, किसी भी देश में सरकार द्वारा घोषित एक ऐसी न्याय व्यवस्था है जिसमें सैन्य बलों को एक क्षेत्र, शासन और नियंत्रण करने का अधिकार दिया जाता है. यह जरूरी नहीं हैं कि मार्शल लॉ पूरे देश में ही लागू हो, यह किसी भीं देश के छोटे से हिस्से में लगाया जा सकता है. इसे सैनिक कानून भी कहा जाता है. यानी कि विशेष परिस्थितियों में किसी भी देश की न्याय व्यवस्था जब सेना अपने हाथ में ले लेती है, तब जो नियम प्रभावी होते हैं उन्हें मार्शल लॉ कहते हैं.

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क्यों लागू किया गया था मार्शल लॉ?

रौलट एक्ट साल 1919 में पारित किया गया था. लेकिन महात्मा गांधी और बाकी नेता इसके खिलाफ थे. इसलिए, उन्होंने सत्याग्रह शुरू करने का फैसला लिया जिसके चलते जनरल डायर ने पूरे देशभर मार्शल लॉ लागू कर दिया था. मार्शल मार्शल लॉ का उद्देश्य भारतीय नेताओं की गतिविधियों को समाप्त करना और सार्वजनिक सभाओं से बचना था.

क्या था जालियावालाबाग कांड?

जलियांवाला बाग हत्याकांड भारत में ब्रिटिश इतिहास का अब तक का सबसे काला दिन माना जाता है. अमृतसर स्वर्णमंदिर के करीब जलियांवाला बाग स्थित रॉलेट एक्ट के विरोध में चल रही सभा में हजारों लोगों की भीड़ जमा हो गई थी. जनरल डायर को जब सभा के बारे में पता चला, तो वो अपने लगभग 50 मुस्तैद सैनिकों के साथ जलियांवाला बाग जा पहुंचा, और प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग करने का आदेश दे दिया.

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10 मिनट तक फायरिंग होती रही, और करीब 1650 राउंड गोलियां चलीं. ब्रिटिश सरकार के अनुसार जलियांवाला बाग हत्याकांड में 379 लोग मारे गए थे, और 1200 घायल हुए थे. कुछ रिकॉर्ड कहते हैं कि, लगभग एक हजार से अधिक लोग मारे गए थे. यह इतिहास की सबसे दर्दनाक घटना थी. अंग्रेज अफसर जनरल डायर ने इस क्रूरतम घटना को अंजाम दिया था.

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