प्रेमानंद जी के सत्संग: कौन से संप्रदाय का तिलक कैसे लगता है

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Premanand ji ke Satsang
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Premanand ji ke Satsang – माथे पर तिलक लगाना हिंदू परंपरा की आस्था का प्रतीक है. जहाँ भारत में शुभ कार्य के लिए घर से बाहर जाने से पहले तिलक लगाने का महत्व है तो वहीं हिन्दू धर्म में जब किसी भगवान कि पूजा होती है तब उनकी पूजा के दौरान अलग-अलग तरीके से तिलक लगाया जाता है. जहाँ हिन्दू में माथे के साथ-साथ कंठ,नाभि, पीठ, भुजाओं पर भी तिलक लगाने की परंपरा है. तो वहीं हर तिलक संप्रदाय के महत्व को दर्शाता है. वहीं इस तिलक को लेकर राधा रानी के परम भक्त प्रेमानंद ने एक खास बात बताई है. वहीं इस पोस्ट के जरिए हम आपको इस बात की जानकारी देने जा रहे हैं कि प्रेमानंद जी ने दी गयी जानकारी के अनुसार, संप्रदाय का तिलक कैसे लगता है.

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इस तरह लगाया जाता है राधा रानी के नाम का तिलक

पीले वस्त्र धारण करके और माथे पर पीला चन्दन लगाए प्रेमानंद जी सत्संग करते हैं और इस सत्संग के जरिए वो लोगों को प्रेणादायक सन्देश देते हैं साथ इस कई सारी अहम बातें भी बताते हैं. वहीं अपने सत्संग के दौरन प्रेमानंद जी महाराज ने बताया कि हमारी श्री जी यानि कि राधा रानी का जो तिलक लगाया जाता है जहाँ चश्मा पहना जाता है वहां से लगाया जाता है.

संप्रदाय के अनुसार इस तरह लगाया जाता है तिलक

Premanand ji ke Satsang – इसी के साथ प्रेमानंद जी महाराज ने भी बताया कि जहाँ राधा रानी का तिलक जहाँ चश्मा पहना जाता है वहां से लगाया जाता है. तो वहीं उन्होंने बताया कि घोडेस्वार संप्रदाय में तुलसी की रचना हो जाती है इसलिए इस संप्रदाय का टीका यहाँ से लगाया जाता है. इसी के साथ हरिदासजी संप्रदाय जहाँ तुलसी की रचना हो जाती है और इस संप्रदाय का टीका यहीं से लगाया जाता है.वहीं निंबार्क संप्रदाय में आधी नाक तक तिलक लगाया जाता है. इसी के साथ प्रेमानंद जी महाराज ने भी बताया मैंने जिस प्रकार से तिलक वो राधा वल्लभ का तिलक है.

महाराज जी सत्संग के जरिए देते हैं खास सन्देश 

आपको बता दें, प्रेमानंद जी ने अपना अपना जीवन राधा रानी की भक्ति सेवा के लिए समर्पित कर दिया. वृंदावन वाले श्री प्रेमानंद महाराज जी जो पीले वस्त्र धारण करते हैं और श्री प्रेमानंद महाराज जी सत्संग करते हैं और अपने सत्संग के जरिए लोगों को ज़िन्दगी जीने के खास सन्देश देते हैं. वहीं महाराज प्रेमानंद जी के दर्शन करने के लिए उनके भक्त देश-विदेश से वृंदावन आते है महाराज जी कि दोनों किडनी खराब है लेकिन वो भगवान का स्मरण करना नहीं भूलते हैं. वो सुबह 2 बजे उठकर वृंदावन की परिक्रमा उसके बाद संकीर्तन राधा वल्लब और बांके बिहारी जी के दर्शन और परिक्रमा जरुर करते हैं. साथ ही वो सत्संग भी करते हैं.

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