IPC First and Last code- इंडियन पैनल कोड भारत में होने वाले कुछ अपराधों की परिभाषा और साथ ही उससे जुड़ी उचित सजा का प्रावधान करती है. आईपीसी में कुल 511 धाराएं हैं. जिसका उल्लेख सविधान के चेप्टर 23 के तहत किया गया है.
जब कोई अपराध होता है तो हम आपको बीच बीच में किसी न किसी धारा का एक्सप्प्लेनेशन देते रहते हैं लेकिन आज सिर्फ बात करेंगे संविधा की पहली और सबसे आखिर धरा की बारे में. की ये धारा किस अपराध से जुड़ी है और और इसमें किस तरह की सजा का प्रावधान है?
आईपीसी (IPC) की धारा 1
दरअसल, भारतीय दंड संहिता की पहली धारा 1 ही हमें आईपीसी के बारे में पूरी जानकारी देती है इस धरा के तहत ये उल्लेख है कि, “यही अधिनियम भारतीय दंड सहिंता कहलाएगा और इसका विस्तार भारत के 28 राज्यों और 8 केद्र शासित प्रदेशों तक रहेगा. यानी संपूर्ण भारत कश्मीर से कन्याकुमारी तक यही कानून लागू होगा. इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत में है.
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आईपीसी की धारा 511
अब हम बात करते हैं भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) यानी IPC की सबसे अंतिम धारा 511 के बारे में. इस धारा को हम ऐसे समझने का प्रयास करते हैं जैसे कि अगर कोई शख्स किसी को चोट पहुंचाने की कोशिश करता है लेकिन कोशिश के बावजूद कामयाब नहीं हो पाता. ऐसे ही अगर कोई व्यक्ति चोरी करने का कोशिश करता है, मगर उसे सफलता नहीं मिलती. तो ऐसी स्थिति में ऐसा करने वाले के लिए सजा का जो प्रावधान है वो इसी धारा में निहित है.
इस तरह की नाकाम कोशिश करने व्यक्ति को दोषी पाए जाने पर आजीवन कारावास या लंबी अवधि के लिए जेल या जुर्माने की सजा दी जा सकती है. यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है. इस धारा के तहत दोषी को जमानत और उसके खिलाफ अदालती कार्रवाई उसके द्वारा किए गए अपराध या अपराध की कोशिश के नजर में रखते हुए की जाएगी.
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ब्रिटिशर्स ने दिया ‘इंडियन पेनल कोड’
बात है साल 1860 यानि भारत की आजादी से पहले की. जब ब्रिटिश भारत के पहले कानून आयोग की सिफारिश पर आईपीसी अस्तित्व में आई. जिसे बाद में भारतीय दंड सहिंता के तौर पर 1 जनवरी को लागू कर दिया गया था.
फिलहाल देश में जो मौजूद संहिता है उसे हम इंडियन पेनल कोड 1860 के नाम से जानते है. इस सहिंता का खाका तैयार किया था ब्रिटिश शासक लार्ड मैकाले ने. जिसके बाद समय समय पर इसमें बदलाव होते रहे हैं.