अरेबियन सागर से उठा चक्रवाती तूफान ‘बिपरजॉय’ गुजरात के तटीय क्षेत्रों की तरफ बढ़ रहा है. आज शाम यह गुजरात के कच्छ जिले के जखाऊ पोर्ट और इससे लगते पाकिस्तान तटीय इलाकों से टकराने जा रहा है. अंदाजा है कि तट से टकराते समय तूफान की स्पीड 125 से लेकर 150 किलोमीटर तक रह सकती है. लेकिन शायद आप भूल रहे हैं कि यह कोई पहली बार नहीं है जब समुद्र अपना रौद्र रूप दिखा रहा है. इससे पहले भी न जाने कितने ही तूफानों से भारत के तटीय क्षेत्रों को नुकसान पहुंचा है. आज से ठीक 19 साल पहले भी भारत में समुद्री तबाही का ऐसा ही मंजर देखने को मिला था.
ALSO READ: Biparjoy Cyclone : क्या आप जानते हैं कैसे रखे जाते हैं चक्रवातों के नाम? यहाँ समझिए.
जिसने इतिहास के पन्नों पर हमेशा हमेशा के लिए अपना नाम काले अक्षरों में दर्ज करवा लिया था. अब आप शायद ये अंदाजा लगा पा रहे होंगे कि हम किसकी बात कर रहे हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं साल 2004 की. जब अरब सागर में सुनामी की लहरें उठी थीं और उन लहरों से ना जाने कितने ही देश प्रभावित हुए थे. इस भीषण तबाही में 2 लाख 25 हजार से भी ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवाई थी. चलिए जानते हैं Tsunami की उस दुखद घटना के बारे में विस्तार से…
सुनामी कि वजह थी तेज-तर्रार भूकंप
26 दिसंबर 2004 को इंडोनेशिया के उत्तरी भाग में स्थित असेह के निकट रिक्टर पैमाने पर 9.1 तीव्रता के भूकंप (Earthquake) के बाद समुद्र के भीतर उठी सुनामी ने भारत सहित 14 देशों में भारी तबाही मचाई थी. इसने यूं तो कई देशों में तबाही मचाई थी. लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान इंडोनेशिया, दक्षिण भारत, श्रीलंका, मालदीव्स और थाइलैंड को हुआ था.
नहीं था पूर्व चेतावनी प्रणाली का प्रचलन
उस समय तक सुनामी की पूर्व चेतावनी जैसी कोई प्रणाली प्रचलन में नहीं थी. इसी का नतीजा था कि इस तरह की तबाही का किसी को अंदाजा भी नहीं था. साल खत्म होने वाला था तो लोग भी नए साल का जश्न मनाने के लिए भारी संख्या में तटीय क्षेत्रों में घूमने के लिए गए हुए थे. इस कारण मरने वालों की संख्या कहीं ज्यादा थी. समुद्र किनारे बने होटलों और रिसॉर्ट में बड़ी संख्या में ठहरे पर्यटकों की इस समुद्री कहर ने जान ले ली थी.
ALSO READ: सिंदूर और फेरे का कोई कॉन्सेप्ट नहीं, बौद्ध धर्म में कैसे होती है शादी?
भयावह थे मौत के आंकड़े
9.1 तीव्रता वाले भूकंप के कारण समुद्र में 65 फीट ऊंची लहरें उठीं. इस सुनामी के कारण अकेले भारत में 12 हजार 405 लोगों की मौत हुई थीं. जबकि, 3,874 लोग लापता हो गए थे. इतना ही नहीं इस तबाही में 12 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था. ऊंची-ऊंची लहरों के कारण पुल, इमारतें, गाड़ियां, जानवर, पेड़ और इंसान तिनकों की तरह बहते हुए नजर आए.
वहीँ दूसरी तरफ अगर हम मौत के आकड़ों की बात करें तो अकेले तमिलनाडु राज्य में आठ हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे. वहीं, अंडमान-निकोबार में 3 हजार 515 मौते हुईं. इसके अलावा पुड्डुचेरी में 599, केरल में 177 और आंध्र प्रदेश में 107 मौतें हुईं. वहीं, अगर बात की जाए इंडोनेशिया की तो यह सुनामी का मेन सेंटर था. इसलिए सबसे ज्यादा मौतें यहीं हुईं. यहां 1.28 लाख लोग मरे और 37 हजार से ज्यादा लापता हो गए. सुनामी के दौरान पानी की ऊंची लहरें 800 किलोमीटर प्रति घंटे की तेज रफ्तार से तटीय इलाकों में पहुंची. लहरे इतनी तेजी से बढ़ीं थीं कि लोगों को संभलने तक का मौका नहीं मिला. लहरें 50 से लेकर 100 फीट से भी ऊपर तक उठी थीं.
वैज्ञानिकों ने पता लगाया था सुनामी का कारण
सालों बाद नेशनल सेंटर फॉर अंटार्कटिक एंड ओसियन रिसर्च से जुड़े वैज्ञानिकों ने इस पर शोध किया. उन्होंने पता लगाया कि आखिर इतने भयावह भूकंप और सुनामी की वजह क्या थी? जवाब मिला- हिमालय’. इस शोध के नतीजे पत्रिका जर्नल साइंस के 26 मई 2017 के अंक में प्रकाशित हुए थे.
सुमात्रा भूकंप का केंद्र हिंद महासागर में 30 किलोमीटर की गहराई में रहा, जहां भारत की टेक्टोनिक प्लेट आस्ट्रेलिया की टेक्टोनिक प्लेट के बॉर्डर को टच करती है. पिछले कई सौ वर्षों से हिमालय और तिब्बती पठार से कटने वाली तलछट गंगा और अन्य नदियों के जरिए हजारों किलोमीटर तक का सफर तय कर हिंद महासागर की तली में जाकर जमा हो जाती हैं.
ALSO READ: तिलका मांझी: वो महान दलित वीर, जिन्होंने अंग्रेजों के पांव उखाड़ दिए थे.