तिलका मांझी की जीवनी – 1857, मंगल पांडे की बैरकपुर में उठी हुंकार के साथ ही देशभर में क्रांति की आग फैल गई. 1857 को अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ पहला विद्रोह कहा जाता है. इतिहास की कई किताबों में ये फ़र्स्ट रिवॉल्ट ऑफ़ इन्डिपेंडेंस के नाम से दर्ज है. ग़ौरतलब है कि इससे पहले भी देश के अलग-अलग हिस्सों में क्रांति की ज्वालायें भड़की थी और कई आज़ादी के मतवालों ने विद्रोह का बिगुल बजाया था. दुख की बात है कि इनके बारे में हमें बहुत कम जानकारी है. ऐसे ही एक वीर सपूत थे, तिलका मांझी.
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कौन थे तिलका मांझी?
13 जनवरी 1785 को अंग्रेज़ों द्वारा सरेआम बरगद के पेड़ पर लटका कर मार दिए गए, जबरा पहाड़िया यानी तिलका मांझी का जन्म 11 फरवरी 1750 को हुआ था. वे आधुनिक भारत के पहले शहीद हैं. जिन मंगल पांडेय को भारत की आज़ादी की पहली लड़ाई के लड़ाके और शहीद के रूप में याद किया जाता है,उनका जन्म तिलका मांझी की शहादत के करीब 42 वर्ष बाद हुआ था. 13 जनवरी 1785 को अंग्रेज़ों द्वारा सरेआम बरगद के पेड़ पर लटका कर मार दिए गए, जबरा पहाड़िया यानी तिलका मांझी का जन्म 11 फरवरी 1750 को हुआ था. वे आधुनिक भारत के पहले शहीद हैं. जिन मंगल पांडेय को भारत की आज़ादी की पहली लड़ाई के लड़ाके और शहीद के रूप में याद किया जाता है,उनका जन्म तिलका मांझी की शहादत के करीब 42 वर्ष बाद हुआ था.
तिलका मांझी के बाद अनेक आदिवासी नायकों ने अंग्रेज़ों और ज़मींदारों ( दिकुओं) के खिलाफ संघर्ष किया और मौत की सज़ा पाई. इसमें बिरसा मुंडा भी शामिल हैं, जिनको केवल 25 वर्ष की उम्र में ज़हर देकर अंग्रेज़ों ने मार डाला था. बिरसा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को हुआ और जिन्हें 9 जून 1900 को अंग्रेज़ों ने मार डाला. ये महान कुर्बानियां हैं, पर उच्च जातीय और अभिजात्य वर्गीय इतिहास दृष्टि ने बहिष्कृत भारत के नायकों को इतिहास से भी बहिष्कृत कर दिया. लेकिन तिलका मांझी आदिवासियों की स्मृतियों और उनके गीतों में ज़िंदा रहे. अनेक आदिवासी लड़ाके तिलका के गीत गाते हुए फांसी के फंदे पर चढ़े. अनके गीतों-कविताओं में तिलका मांझी को विभिन्न रूपों में याद किया जाता है-
तुम पर कोडों की बरसात हुई, तुम घोड़ों में बांधकर घसीटे गए
फिर भी तुम्हें मारा नहीं जा सका, तुम भागलपुर में सरेआम
फांसी पर लटका दिए गए, फिर भी डरते रहे ज़मींदार और अंग्रेज़
तुम्हारी तिलका (गुस्सैल) आंखों से, मर कर भी तुम मारे नहीं जा सके
तिलका माझी, मंगल पांडेय नहीं, तुम आधुनिक भारत के पहले विद्रोही थे
तिलका मांझी की जीवनी
तिलका जैसे शहीदों की उपेक्षा के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि उनका विद्रोह अंग्रेज़ों के साथ देसी दिकुओं (शोषकों) के खिलाफ भी था. आदिवासियों को जंगल और ज़मीन पर कब्ज़ा करने के लिए अंग्रेज़ों और दिकुओं ने आपस में गठजोड़ कर लिया था. आदिवासी एक साथ दोनों के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे.
पहाड़िया भाषा में ‘तिलका’ का अर्थ है गुस्सैल और लाल-लाल आंखों वाला व्यक्ति. चूंकि वह ग्राम प्रधान थे और पहाड़िया समुदाय में ग्राम प्रधान को मांझी कहकर पुकारने की प्रथा है. इसलिए हिल रेंजर्स का सरदार जौराह उर्फ जबरा मांझी तिलका मांझी के नाम से विख्यात हो गए. ब्रिटिशकालीन दस्तावेज़ों में भी जबरा पहाड़िया मौजूद हैं पर तिलका का कहीं नामोल्लेख नहीं है. उनका मूल नाम जबरा पहाड़िया ही था. तिलका नाम उन्हें अंग्रेज़ों ने दिया. अंग्रेज़ों ने जबरा पहाड़िया को खूंखार डाकू और गुस्सैल (तिलका) मांझी (समुदाय प्रमुख) कहा.
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अंग्रेजों ने हथिया लिया था जंगल महल क्षेत्र
तिलका मांझी ने बचपन से ही अपनी मां यानि प्रकृति को अंग्रेज़ों द्वारा कुचले जाते देखा था. अंग्रेज़ों द्वारा उसके लोगों पर किये जाने वाले अत्याचार देख कर ही वो बड़ा हुआ. पहले से ही दिल के किसी कोने में छिपी स्वतंत्रता की आग को ग़रीबों की ज़मीन, खेत, खेती आदि पर अंग्रेज़ों के अवैध कब्ज़े ने हवा दी.
1750 में अंग्रेज़ों ने नवाब सिराजउद्दौला से जंगल महल क्षेत्र हथिया लिया. 1765 तक कंपनी ने संथाल परगना, छोटानागपुर पर भी कब्ज़ा कर लिया. अंग्रेज़ बिहार और बंगाल के आदिवासियों से भारी कर वसूलने लगी और आदिवासियों के पास महाजनों से सहायता मांगने पर मजबूर हो गये. अंग्रेज़ और महाजन आपस में मिले होते और महाजन धोखे से उधार चुकाने में असमर्थ आदिवासियों की ज़मीन हड़प लेते. तिलका मांझी का बचपन, युवावस्था ये सब देखते हुये बीता.
1770 आते-आते तिलका मांझी ने अंग्रेज़ों से लोहा लेने की पूरी तैयारी कर ली थी. वो लोगों को अंग्रेज़ों के आगे सिर न झुकाने के लिये प्रेरित करते. उनके भाषण में जात-पात की बेड़ियों से निकल कर, अंग्रेज़ों से अपना हक़ छीनने जैसी बातें होती.
बंगाल में पड़ा भीषण सूखा
1770 में ही बंगाल में भीषण सूखा पड़ा. संथाल परगना पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ा. आदिवासियों को लगा कि टैक्स कम किया जायेगा लेकिन कंपनी सरकार ने टैक्स दोगुना कर दिया और जबरन वसूली भी शुरु कर दी. कंपनी अपना खज़ाना भर्ती रही और लोगों की मदद नहीं की. लाखों लोग भूख की भेंट चढ़ गये.
मांझी ने लूटा अंग्रेजों का खजाना
अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लोगों की नफ़रत बढ़ रही थी. तिलका मांझी ने भागलपुर (बिहार) में रखा ख़ज़ाना लूट लिया. टैक्स और सूखे की मार झेल रहे ग़रीबों और आदिवासियों में मांझी ने लूटे हुये पैसे बांट दिए. लोगों में वो रॉबिन हूड जैसे ही मशहूर हो गये. बंगाल के तत्कालनी गवर्नर, Warren Hastings ने तिलका मांझी को पकड़ने के लिये 800 की फौज भेजी.
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28 वर्षीय तिलका मांझी के नेतृत्व में आदिवासियों ने 1778 में रामगढ़ कैंटोनमेंट (अभी झारखंड में) में तैनात पंजाब रेजिमेंट पर हमला कर दिया. आदिवासियों की सेना इतने जोश के सामने कंपनी सरकार की बंदूकें नहीं चल पाईं. अंग्रेज़ों को कैन्टोनमेंट छोड़ कर भागना पड़ा.
जहरीली तीर से धूर्त क्लीवलैंड को मारा
अंग्रेज़ों को अपनी बेइज़्ज़ती का बदला लेना था. तिलका मांझी और अन्य आदिवासियों से निपटने ने के लिये कंपनी सरकार ने August Cleveland को मुंगेर, भागलपुर और राजमहल ज़िलो का कलेक्टर ऑफ़ रेवेन्यू बनाकर भेजा. Cleveland ने संथालियों से बात-चीत करने के लिये संथाली सीखी. कहते हैं 40 आदिवासी समुदायों ने Cleveland की सत्ता स्वीकार की. Cleveland आदिवासियों को टैक्स में छूट, नैकरी जैसे लुभावने प्रस्ताव देता. Cleveland ने आदिवासियों की एकता तोड़ने के लिये उन्हें बतौर सिपाही रखना भी शुरु कर दिया.
तिलका मांझी को भी नौकरी का प्रस्ताव दिया गया. तिलका अंग्रेज़ों की असली चाल समझ गये और उन्होंने कोई भी प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया. कुछ आदिवासी अब भी तिलका का समर्थन कर रहे थे और आदिवासी एकता बनाये रखने के लिये दिन-रात एक कर रहे थे.
तिलका मांझी की जीवनी – उन्होंने अन्य आदिवासी समुदायों को एकजुट करने की कोशिश की. उन्होंने साल के पत्ते पर संदेश लिखकर अन्य समुदायों को प्रमुख को भेजा. मिट्टी की पुकार को अनसुना करना मुश्किल है. अपनी माटी की रक्षा के लिये कई लोग आगे आये और तिलका मांझी को बहुत से प्रमुखों का समर्थन मिला. तिलका मांझी ने एक बहुत बड़ा क़दम उठाने की प्लानिंग की. 1784 में आदिवासियों ने अंग्रेज़ों के भागलपुर मुख्यालय पर हमला कर दिया. घमासान लड़ाई हुई.
तिलका मांझी ने अपने धुनष से एक ज़हरीली तीर छोड़ी और वो Cleveland को लगी. वो ज़ख़्मी हो गया और कुछ दिनों बाद मारा गया. एक आदिवासी के हाथों Cleveland की मौत अंग्रेज़ों के गाल पर ज़ोरदार तमाचा जैसा था. कंपनी सरकार ने Lieutenant General Eyre Coote को तिलका को ज़िन्दा या मुर्दा पकड़ने के लिये भेजा.
तिलका मांझी की मृत्यु कैसे हुई
कहा जाता है कि किसी घर के भेदी ने तिलका मांझी का पता अंग्रेज़ों को बता दिया. अंग्रेज़ों ने बीच रात में तिलका और अन्य आदिवासियों पर हमला किया. तिलका जैसे-तैसे बच गये लेकिन उनके कई कॉमरेड शहीद हो गये. अंग्रेज़ों से बच कर तिलका मांझी अपने गृह ज़िले, सुलतानगंज के जंगलों में जा छिपे. यहां से उन्होंने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ गुरैल्ला युद्ध छेड़ दिया. अंग्रेज़ तिलका तक पहुंचने वाले हर सप्लाई रूट को बंद करने में क़ामयाब हो गये. तिलका और उनके सैनिकों को अंग्रेज़ों से आमने-सामने लड़ना पड़ा.
कहते हैं 12 जनवरी, 1785 के दिन तिलका मांझी को अंग्रेज़ों ने पकड़ लिया. तिलका मांझी को अंग्रेज़ों ने घोड़ों से बांधकर भागलपुर तक घसीटा. कहते हैं तिलका मांझी इस यातना के बाद जीवित थे. 13 जनवरी, 1785 को 35 वर्षीय वीर को फांसी दे दी गई.
इतिहास के पन्नों से गुम तिलका मांझी
तिलका मांझी की जीवनी – ये दलित योद्धा इतिहास की किताबों से भले ही ग़ुम हैं लेकिन आदिवासी समाज में आज भी क़ायम हैं. आदिवासी समुदाय में उन पर कहानियां कही जाती हैं, संथाल उन पर गीत गाते हैं. 1831 का सिंगभूम विद्रोह, 1855 का संथाल विद्रोह सब तिलका की जलाई मशाल का ही असर है.
1991 में बिहार सरकार ने भागलपुर यूनिवर्सिटी का नाम बदलकर तिलका मांझी यूनिवर्सिटी रखा और उन्हें सम्मान दिया. इसके साथ ही जहां उन्हें फांसी हुई थी उस स्थान पर एक स्मारक बनाया गया.