Kaudiyala Ghat Gurudwara in Hindi – सिखों से जुड़े इतिहास को हम जितना भी खंगालते जाएं ये खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा किसी एक विषय पर लिखते हैं तो उस के अंत होने तक एक दूसरी कड़ी फिर से मिल जाती है जिसे आपतक पहुंचाना हमें बेहद जरूरी लगने लगता है. वास्तविकता तो ये है कि सिखों के त्याग बलिदान से जुड़े हम कितने भी किस्से आपको क्यों न सुना दें लेकिन ये कभी खत्म नहीं होने वाला क्योंकि जो इतिहास बनाकर जाते हैं वो कभी भुलाये नहीं जाते.
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जब तक धरती है तब तक दुनिया उनको याद रखती है. और इसी कड़ी में आज हम आपको बताने जा रहे भारत और नेपाल बॉर्डर पर स्थित कौडियाला घाट गुरुद्वारे (Kaudiyala Ghat Gurudwara) की बारे में जहां के चमत्कारों और अद्भुत किस्सों को सुनकर आप की आंखें चकाचौंध हो जाएंगी. गुरुद्वारा कौडियाला घाट सिखों का एक ऐतिहासिक गुरुद्वारा है यहां पर सिखों के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी आये थे और उन्होंने यहाँ पर एक रात्रि विश्राम किया था . यह गुरुद्वारा उत्तर प्रदेश के प्रमुख गुरुद्वारों में से एक है.
नानक देव के जन्म से जुड़ा यह गुरुद्वारा
गुरुद्वारा कौडियाला घाट सिखों का एक ऐतिहासिक गुरुद्वारा है यहां पर सिखों के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी आये थे और उन्होंने यहाँ पर एक रात्रि विश्राम किया था . यह गुरुद्वारा उत्तर प्रदेश के प्रमुख गुरुद्वारों में से एक है.
जब कोढ़ी के साथ कुटिया में रहे नानक देव
जब गुरु जी अपने शिष्यों भाई बाला जी और मर्दाना जी के साथ इस स्थान पर पहुंचे तो अँधेरा हो चुका था. और गुरु जी ने इस स्थान पर मौजूद एक गाँव में रात्रि विश्राम करना चाहा लेकिन कोई भी ग्रामीण गुरु जी और उनके साथियों का आतिथ्य सत्कार करने को तैयार नहीं हुए और ग्रामीणों ने गुरु जी को गाँव से दूर एक कोढ़ी की कुटिया में जाने को कहा.
पूर्व में ग्रामीणों ने उस कोढ़ी के शरीर से अत्यधिक दुर्गंद आने के कारण उसे गाँव से दूर खदेड़ दिया था तब से वो कोढ़ी गाँव से दूर नदी के किनारे एक झोपडी बना कर रहता था. गाँव का कोई भी व्यक्ति दुर्गंद व कोढ़ की छूआ-छूत के डर के कारण उसके पास नहीं जाता था वे जैसे-तैसे अपना जीवन काट रहा था.
गुरु जी ने रात्रि विश्राम का कोई साधन न देख और आस-पास में कोई अन्य गाँव न होने के कारण व जंगली जानवरों का भय होने के कारण व रात्रि होते देख गुरु जी ने अपने दोनों शिष्यों के साथ उसी कोढ़ी की कुटिया में रात बिताई जहाँ पर उन्होंने कीर्तन और ध्यान किया. गुरु जी ने उक्त स्थान पर नीचे वर्णित श्लोक उच्चारित कर गायन किया. उक्त शब्द श्री गुरु ग्रंथ साहिब के पन्ना 661 पर अंकित है.
“धनासरी महला १ ॥ जीउ तपतु है बारो बार ॥ तपि तपि खपै बहुतु बेकार ॥ जै तनि बाणी विसरि जाइ ॥
जिउ पका रोगी विललाइ ॥१॥ बहुता बोलणु झखणु होइ ॥ विणु बोले जाणै सभु सोइ ॥१॥ रहाउ ॥” (हिंदी )
गुरु जी द्वारा गायन किये गए रूहानी कीर्तन से उस कोढ़ी को बहुत सुकून मिला, जो शायद कई रातों के बाद चैन की नींद सोया था. सुबह उस कोढ़ी ने गुरु जी को कोई ईश्वरीय शक्ति समझ कर गुरु जी से उनकी बीमारी को ठीक करने और मदद करने के लिए प्रार्थना की. गुरु जी ने उस कोड़ी को प्यार से पास बुलाया और पास में बह रही नदी (जिसे आज घाघरा और नेपाल में कर्णाली कहा जाता है) में स्नान करने को कहा .
गुरु जी के आशीर्वाद से कोढ़ी ने उस नदी में स्नान किया और उसका रोग ठीक हो गया. यह सुनते ही वो ग्रामीण जिन्होंने कल रात गुरु जी को आश्रय देने से मना कर दिया था गुरु जी के पास आ गए और गुरु जी से क्षमा याचना करने लगे. गुरु जी ने ग्रामीणों को आश्रीवाद देते हुए यह समझया कि आये अतिथियों व जरूरत मंदों को आश्रय व भोजन देना चाहिए न कि उन्हें दुक्कार कर घर से भगा देना चाहिए. गुरु जी ने ग्रामीणों को यात्रियों के रुकने के लिए एक विश्राम गृह बनाने के लिए कहा और कहा कि विश्राम ग्रह में आए मेहमान व् जरूरत मंद का सेवा सत्कार कर उन्हें भोजन करवाया करो. आज इसी स्थान पर गुरुद्वारा साहिब मौजूद हैं. उसके बाद गुरु जी नदी पार कर नेपाल राज्य की तरफ चले गए.
Kaudiyala Ghat Gurudwara in Hindi
ऊपर बताई गयी एतिहासिक घटना के बाद इस जगह का नाम कोढ़ी + वाला शब्दों से मिलकर कोढ़ीवाला पड़ गया धीरे-धीरे लोग इसे कौडियाला कहने लगे क्योंकि प्राचीन समय से ही यहाँ पर नौकाएं चलती थी जिस कारण से इस गाँव का नाम कौडियाला घाट पड़ गया.
नदी को लेकर मान्यताएं
सन 1970 के दशक तक यहां कोई धार्मिक स्थान नहीं था बल्कि लोकल लोग एक विशेष पर्व पर घाघरा नदी में स्नान करते थे. उनका मानना था कि लगभग 500 साल पूर्व कोई नानक नामक संत यहाँ पर आये थे और उन्होंने इस जगह को आश्रीवाद दिया था तबसे इस जगह में नहाने से कोढ़ जैसी गंभीर बीमारी व अन्य प्रकार के त्वचा के रोग जड़ से खत्म हो जाते हैं.
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मान्यता को लेकर क्या कहता है इतिहास?
भारत में हरित क्रान्ति के समय जब उत्तरप्रदेश की तराई में सिख समुदाय की संख्या बड़ी और छेत्र के कुछ जागरूक लोगों ने इस जगह के बारे में खोज बीन की तो पाया कि यह ग्रंथों में वर्णित वही पवित्र स्थान है जहां पर श्री गुरु नानक देव जी ने कोढ़ी का उद्धार किया था . उसके बाद उन लोगों ने चंदा इकट्ठा कर के व इलाके के लोगों के सहयोग से कुछ भूमि खरीद कर उसमे छोटे से गुरूद्वारे का निर्माण कराया. कुछ समय बाद इलाका वासीयो के निवेदन पर इस गुरूद्वारे का प्रबंध कारसेवा संस्था के अगवा जत्थेदार फौजा सिंह जी ने अपने हाथ में ले लिया और इस जगह पर बहुत बड़े गुरूद्वारे का निर्माण करवाया तथा गुरद्वारे में दरबार साहिब, दीवान हाल, लंगर हाल, रसोई व सराय के साथ साथ एक सरोवर का भी निर्माण करवाया गया.
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Kaudiyala Ghat Gurudwara in Hindi – इसी सरोवर में आज कल लोग नदी की जगह स्नान करते हैं. वर्तमान में इस गुरूद्वारे का प्रबंध जत्थेदार फौजा सिंह के उत्तराधिकारी जत्थेदार काला सिंह के पास है. इस वक्त उक्त स्थान पर बहुत बड़ा गुरुद्वारा सुशोभित है. जो बाढ़ या अन्य कोई दैविक आपदा आने पर इलाके के गरीब वा मजबूर लोगों की बिना किसी भेदभाव के सेवा करता है व उनको आश्रय देता है. तिकुनिया कस्बे में गुरूद्वारे द्वारा संचालित एक इंटर कालेज भी है जो इस पिछड़े इलाके में शिक्षा के छेत्र में अपना अहम योगदान दे रहा है.