Nanak Piao Gurudwara History in Hindi – गुरुद्वारा जो सिखों की आस्था का प्रतीक है. जहाँ सिख धर्म के अलावा आम लोग भी जाते हैं ये लोग यहाँ पर अरदास करते हैं कड़ा प्रसाद लेते हैं लंगर खाते हैं और साथ ही सेवा भी करते हैं. जहाँ भारत में कई सारे गुरूद्वारे हैं और इन गुरुद्वारों को लेकर अलग-अलग मान्यता है तो वहीं भारत की राजधानी दिल्ली में भी एक ऐसा गुरुद्वारा है जिसका इतिहास और महत्व इसे खास बनाता है. वहीं इस पोस्ट के जरिए हम आपको इसी गुरुद्वारा के बारे में बताने जा रहे हैं.
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500 साल से ज्यादा पुराना है ये गुरुद्वारा
जिस गुरूद्वारे कि हम बात कर रहे हैं वो राजधानी दिल्ली में है और इस गुरुद्वारा का नाम नानक प्याऊ गुरुद्वारा है. इस गुरुद्वारे की स्थापना गुरुनानक साहेब ने की थी. कहा जाता है कि जब सिखों के पहले गुरु नानक 1505 में पहली बार दिल्ली आए तब उन्होंने इस गुरुद्वारे की स्थापना की थी और ये दिल्ली का पहला गुरुद्वारा है और साथ ही गुरुनानक साहेब की वजह से ये गुरुद्वारा प्रसिद्ध हो गया. वहीं ये गुरुद्वारा एक और वजह से भी प्रसिद्ध है.
एक घटना की वजह से पड़ा इस गुरुद्वारे का नाम
इस गुरुद्वारे की प्रसिद्ध होने की वजह इस गुरुद्वारे के नाम से जुडी हुई है. दरअसल, इस गुरूद्वारे को नानक प्याऊ गुरुद्वारा कहा जाता है और इसी नाम की जुडी एक घटना है जिसकी वजह से ये गुरुद्वारा प्रसिद्ध हो गया है. कहा जाता है कि गुरुनानक जी जब पहली बार दिल्ली आए और इसी गुरुद्वारे पर रुके तब उन्हें पता चला कि यहां पर रहने वाले लोगों को पीने का पानी बड़ी समास्या होती है. क्योंकि यहाँ कि जमीन से कहर पाने निकलता है और सी पानी को पीने से उनकी तबियत खराब हो जाती है.
गुरुनानक जी ने दिखाया चमत्कार
वहीं इस समस्या का पता चलन के बाद गुरुनानक जी (Nanak Piao Gurudwara History) ने अपनी दिव्य दृष्टि से लोगों को एक स्थान पर कुंआ खोदने का निर्देश दिया है और गुरुनानक जी के बताई हुई जगह पर कुंआ खोदने के बाद यहाँ पर मीठा पानी आने लगा और लोगों के पानी पीने की समास्या खत्म हो गयी. तो इस पानी को पीने से यहाँ के लोगों कि बीमारियां भी खत्म हो गईं.
सालों से यहाँ पर लगातार चल रहा है लंगर
इस गुरुद्वारे में जहाँ लोग इस पानी को अमृत कहते हैं तो वहीं अब यहां एक प्याऊ है. इसी कारण इस गुरुद्वारे का नाम नानक प्याऊ गुरुद्वारा रखा गया था. आज के समय में भी इस गुरुद्वारे से मीठे पानी की आपूर्ति पूरी होती है साथ ही साथ ही यहाँ पट 500 सालों से लगातार चलने वाला लंगर के लिए ये ही पानी इस्तेमाल किया जाता है.
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