भारत प्रतिज्ञाओं का देश
वैसे तो भारत को संकल्प और प्रतिज्ञा का भी देश कहा जाता है, क्यूंकि आप यहां पौराणिक कथाओं से लेकर नई पीढ़ी के वैज्ञानिक सोच तक को देख लें, आपको हर जगह संकल्प का एक बड़ा अहम रोल नजर आएगा। आप वेद पुराणों से लेकर बुद्ध तक या विवेकानंद से लेकर अंबेडकर तक को सुन ले आपको हर जगह प्रतिज्ञाएं जरूर मिलेंगी। आपको अगर सीता जी की अग्नि परीक्षा याद होगी तो वो भी एक प्रतिज्ञा ही थी, आप अगर बुध्द की ज्ञान प्राप्ती को देख ले तो वहां भी आपको प्रतिज्ञा ही नजर आएगी और अंत में अगर बाबा साहब डॉ भीम राव अम्बेडकर को देखे तो उनका भी जीवन आपको संकल्प और प्रतिज्ञाओं से भरा पड़ा ही मिलेगा …. पर आज हम बात करेंगे बाबा साहब के उन 22 प्रतिज्ञाओं के बारे में जो संविधान निर्माता ने 14 अक्टूबर 1956 को बौद्ध धम्म की दीक्षा के समय लिया था।
इन प्रतिज्ञाओं के बिना कोई बुद्ध की रह पर नहीं चल सकता
बाबा साहब और संविधान निर्माता डॉ भीम राव अंबेडकर के उन 22 प्रतिज्ञाओं को जानने और समझने से पहले हमारा ये जानना जरुरी है की ये प्रतिज्ञाएं बाबा साहब की कोई व्यक्तिगत प्रतिज्ञा नहीं थी, बल्कि इन प्रतिज्ञाओं में आपको बुद्ध की पंच शील प्रतिज्ञा ही नजर आएंगी जिसे वो अपने हर एक अनुवाई को दीक्षा से पहले दिलवाते थे। इन 22 प्रतिज्ञाओं के बिना आप-हम या कोई भी बुद्धत्व को नहीं प्राप्त कर सकता, यहां तक की इन प्रतिज्ञाओं के बिना कोई बुद्ध की रह पर चल भी नहीं सकता। बाबा साहब भी बुद्ध की राह पर चलते हुए उस समय भारत में एक सम्यक समाज, या कहें की एक बराबरी वाला समाज बनाने के लिए बुद्ध के प्रतिज्ञाओं को दोहराया था। बाबा साहब की इन प्रतिज्ञाओं में आपको कठोरता जरूर दिख सकती है क्यूंकि संविधान निर्माता हिन्दुओं के जाती-वर्ण व्यवस्था के कट्टर खिलाफ थे। आइये अब जान लेते है उन 22 प्रतिज्ञाओं को जिसे बाबा साहब ने 14 अक्टूबर 1956 को धम्म क्रांति के समय लिया था।
बाबा साहब की 22 प्रतिज्ञाएं
1- मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई विश्वास नहीं करूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा
2- मैं राम और कृष्ण, जो भगवान के अवतार माने जाते हैं, में कोई आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा
3- मैं गौरी, गणपति और हिन्दुओं के अन्य देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा.
4- मैं भगवान के अवतार में विश्वास नहीं करता हूँ
5- मैं यह नहीं मानता और न कभी मानूंगा कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे. मैं इसे पागलपन और झूठा प्रचार-प्रसार मानता हूँ
6- मैं श्रद्धा (श्राद्ध) में भाग नहीं लूँगा और न ही पिंड-दान दूँगा.
7- मैं बुद्ध के सिद्धांतों और उपदेशों का उल्लंघन करने वाले तरीके से कार्य नहीं करूँगा
8- मैं ब्राह्मणों द्वारा निष्पादित होने वाले किसी भी समारोह को स्वीकार नहीं करूँगा
9- मैं मनुष्य की समानता में विश्वास करता हूँ
10- मैं समानता स्थापित करने का प्रयास करूँगा
11- मैं बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग का अनुशरण करूँगा
12- मैं बुद्ध द्वारा निर्धारित परमितों का पालन करूँगा.
13- मैं सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया और प्यार भरी दयालुता रखूँगा तथा उनकी रक्षा करूँगा.
14- मैं चोरी नहीं करूँगा.
15- मैं झूठ नहीं बोलूँगा
16- मैं कामुक पापों को नहीं करूँगा.
17- मैं शराब, ड्रग्स जैसे मादक पदार्थों का सेवन नहीं करूँगा.
18- मैं महान आष्टांगिक मार्ग के पालन का प्रयास करूँगा एवं सहानुभूति और प्यार भरी दयालुता का दैनिक जीवन में अभ्यास करूँगा.
19- मैं हिंदू धर्म का त्याग करता हूँ जो मानवता के लिए हानिकारक है और उन्नति और मानवता के विकास में बाधक है क्योंकि यह असमानता पर आधारित है, और स्व-धर्मं के रूप में बौद्ध धर्म को अपनाता हूँ
20- मैं दृढ़ता के साथ यह विश्वास करता हूँ की बुद्ध का धम्म ही सच्चा धर्म है.
21- मुझे विश्वास है कि मैं फिर से जन्म ले रहा हूँ (इस धर्म परिवर्तन के द्वारा).
22- मैं गंभीरता एवं दृढ़ता के साथ घोषित करता हूँ कि मैं इसके (धर्म परिवर्तन के) बाद अपने जीवन का बुद्ध के सिद्धांतों व शिक्षाओं एवं उनके धम्म के अनुसार मार्गदर्शन करूँगा।
पहली आठ प्रतिज्ञाएं बुद्ध के मूर्ति पूजन ना करने के संकल्प का समर्थन
अगर आप इन प्रतिज्ञाओं को ध्यान से पढ़े तो आपको ये समझ आएगा की सबसे ऊपर की आठ प्रतिज्ञाएं आपको किसी चीज को नकारते हुए लफ्जों में मिलेगी, इसका मतलब ये नहीं …. की बाबा साहब किसी एक धर्म और उनके देवी-देवताओं को नकारने की बात कह रहे थे। उस समय, उस धम्म क्रांति में अंबेडकर के साथ भारी संख्या में हिन्दू धर्म के ही दलित और अक्षूत मौजूद थे, जो हिन्दू जाती-वर्ण व्यवस्था और ऐतिहासिक उत्पीड़न से काफी परेशान थे। दूसरी तरफ ऊपर की आठों प्रतिज्ञाएं बुद्ध के मूर्ति पूजन ना करने के संकल्प को भी समर्थन करती हैं। इस लिए, अगर आप एक हिन्दू है या कह ले की आप कट्टरता वाले हिंदुत्व के फॉलोवर हैं तो आपको अम्बेडकर के इन आठों प्रतिज्ञाओं में हिन्दू देवी-देवताओं के प्रति विरोधाभास ही सुनाई पड़ेगा।
अंधभक्ति एक खतरनाक बीमारी
हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा ग्रंथ गीता और बुद्ध दोनों का ये कहना है की जब तक आप अपने अंदर से कुछ खाली नहीं करोगे तब-तक आप एक बराबरी वाले समाज की दिशा में नहीं बढ़ सकते। इस पर एक बहुत ही प्रशिद्ध कहावत भी है की ‘आप बिना कुछ नकारे किसी चीज को स्वीकार नहीं कर सकते है’। बाबा साहब का भी यही कहना था की जब तक आप अपने पुराने संस्कारों से मुक्त नहीं हो पाइएगा तब तक आप एक वैज्ञानिक सोच वाले सम्यक समाज की ओर नहीं बढ़ सकते है, इस लिए उस समय अंबेडकर ने पहले की आठ प्रतिज्ञाओं में पुराने धर्म के जंजीरों को त्यागने की प्रतिज्ञा ली थी। बुद्ध और अंबेडकर एक और कारण से ईश्वरवाद को नकारते थे क्यूंकि बुद्ध कहते थे की अगर आप किसी ईश्वर को अपना पहला और आखरी विकल्प मानने लगते है तो आपके अंदर से चीजों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखने की शक्ति खत्म हो जाती है। आज-कल इसी कारण अंधभक्ति को एक खतरनाक बीमारी के रूप में देखा जाता है।
धर्म के जंजीरों को तोड़े बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता
अब बात करते है उन आठ प्रतिज्ञाओं के आगे…. जब आप आगे की प्रतिज्ञाओं पर ध्यान देंगे तो उनमे आपको किसी चीज को अपनाने की भावना नजर आएगी। जैसे की मैं समानता स्थापित करूँगा, बुद्ध की राहों पर चलूँगा इत्यादि। इन प्रतिज्ञाओं को आप देखेंगे तो इनमे बुद्ध के पंच शील को अपनाने की बात कही गई है। आखिरी में जब इन सभी प्रतिज्ञाओं को एक साथ देखे तो आपको ये महसूस होगा की अगर आप एक समता और विकसशील समाज बनाना चाहते है तो आपको अपने पुराने धर्म के जंजीरों से आगे बढ़ना होगा और ये सभी धर्मों के लिए है चाहे वो हिन्दू, मुस्लिम, सिख या फिर ईसाई हो। जैसे आप अपने पुराने कपड़ों को उतारे बिना नए कपड़े नहीं पहन सकते, जैसे आप अपने पुराने पापों का पश्चताप किये बिना नई जिंदगी नहीं जी सकते ठीक वैसे ही समता और विकसशील समाज बनाने के लिए आपको पुराने धर्मों के जाती-वर्ण व्यवस्था, कटटरवाद और अंधभक्ति को त्यागना ही पड़ेगा।