वीरता और बलिदान की मिसाल थे गुरु गोबिंद सिंह जी
1699 में, गुरु गोबिंद सिंह जी (Guru Gobind Singh Ji) ने खालसा (Khalsa) का गठन किया और पंच प्यारो को चुना गुरु गोबिंद जी का कहना था कि मानवता ही एकमात्र धर्म है जिसका पालन किया जाना चाहिए। एक और बात जो गुरुजी हमेशा कहते थे, वो ये की “मानस की जात सब एक ही पछनबो”, जिसका अर्थ है, मानवता को एक जाति के रूप में ही मानना। तभी से सभी सिख इस कहावत का बड़े आदर के साथ पालन करते आ रहे हैं।
गुरु गोबिंद सिंह जी के बारे में 10 अनसुनी बातें
1.गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म पटना (Patna) के तख्त श्री पटना साहिब में गुरु तेग बहादुर और माता गुजरी जी के यहाँ हुआ था।
2. गोबिंद राय सिर्फ 9 साल के थे जब वे सिख धर्म के 10वें गुरु बने। दरअसल, गुरु तेगबहादुर जी (Guru Tegh Bahadur Ji) कश्मीरी हिन्दुओं के अधिकारों की रक्षा के लिए औरंगजेब (Aurangzeb) से युद्ध के दौरान शहीद हो गए. शहादत के बाद, गुरु गोबिंद सिंह जी को 10वें गुरु के रूप में गद्दी पर बिठाया गया।
3. 19 साल की उम्र में ही गुरु गोबिंद सिंह जी ने गुरुमुखी (GuruMukhi), ब्रजभाषा (BrijBhasha), संस्कृत (Sanskrit), फारसी (Persian), हिंदी (Hindi) और उर्दू (Urdu) जैसी सभी भाषाओं का ज्ञान हासिल कर लिया था।
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4. 1699 में, उन्होंने खालसा वाणी (Khalsa Vani) का गठन किया और सभी अनुयायियों का नाम सिंह रखा गया, जिसका अर्थ शेर होता है। खालसा के 5 Ks (पंच ककार) में केश, कंघा, कड़ा, कछेरा और कृपाण को भी गुरु जी सिखों के लिए जरूरी बताया।
5. गुरु गोबिंद सिंह जी को कला से प्रेम था, इसी प्रेम के कारण उन्होंने “दिलरुबा” और “ताऊस” जैसे musical instruments का भी आविष्कार किया था।
6. उन्होंने कई लड़ाइयाँ लड़ीं लेकिन इन सब में उनका कोई निजी स्वार्थ या राजनीतिक मकसद नहीं था, ये लड़ाईयां दमन, कमजोरियों और अन्याय के खिलाफ थीं। उनका विश्वास था कि तलवार का इस्तेमाल तभी किया जाना चाहिए जब अन्य तरीके असफल हो जाएं।
7. गुरु गोबिंद सिंह जी धनुविद्या (Archery) और शस्त्रविद्या (weaponry) में निपुण थे। बहुत से सिखों को “नागिनी बरछा” नाम की उनकी भाला के बारे में नहीं पता होगा जिसे भाई बछत्तर सिंह (Bhai Bachittar Singh) ने एक पागल हाथी पर हमला करने के लिए इस्तेमाल किया था, ये वही हाथी था जिसे मुगल सेना ने चमकौर किले में सिखों पर हमला करने के लिए भेजा था।
8. जब गुरु गोबिंद सिंह जी केवल 19 वर्ष के थे, तब उन्होंने “जाप साहिब” की रचना की। जिस शब्दावली का प्रयोग किया गया था, उसमें केवल एक तथ्य पर बल दिया गया था, वह है सार्वभौमवाद (जिसका मतलब है सभी के साथ समान भाव वाला सिद्धांत या यह कह सकते है की अन्य निष्ठाओं की परवाह किए बिना दूसरों के लिए वफादारी और चिंता करना)
9. गुरु जी को “सर्वांश दानी” के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि उन्होंने अपने जीवन और परिवार को केवल अत्याचार और गलत कामों के खिलाफ लड़ने के लिए कुर्बान कर दिया। उनके लिए पूरी खालसा कौम ही उनके बेटे-बेटियां हैं।
10. वो खालसा के अंतिम गुरु थे, इसलिए उन्होंने सिखों के लिए कुछ नियम और प्रथाओं का गठन किया। उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब जी को अपने बाद गुरु के रूप में स्वीकार करने के लिए कहा।
इसलिए आज कलियुग में सिखों द्वारा गुरु ग्रंथ साहिब को ही पूजा और माना जाता है। गुरु गोविन्द सिंह जी की इन जानकारियों से आपको उनके शौर्य और बलिदान की गाथा तो समझ आ ही गई होगी।