सिखों के आठवें गुरु हरकिशन सिंह जी का जन्म 17 जुलाई 1656 को कीरतपुर साहिब में हुआ था. उनके पिता सिख धर्म के सातवें गुरु, गुरु हरि राय जी थे और उनकी माता का नाम किशन कौर था. बचपन से ही गुरु हरकिशन जी बहुत ही गंभीर और सहनशील प्रवृत्ति के थे. कहा जाता है कि उनके पिता गुरु हरिराय जी ने गुरु हरकिशन को हर तरह योग्य मानते हुए सन् 1661 में गुरुगद्दी उन्हे सौंपी थी. उस समय उनकी आयु मात्र 5 वर्ष की थी. इसीलिए उन्हें बाल गुरु भी कहा गया है.
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गुरु हरकिशन जी के पिता, गुरु हरिराय जी के दो पुत्र थे- राम राय और हरकिशन. लेकिन राम राय को पहले ही सिख धर्म की मर्यादाओं का उल्लंघन करने के कारण गुरु जी ने बेदखल कर दिया था. इसलिए मृत्यु से कुछ वक्त पहले ही गुरु हरिराय ने सिख धर्म की बागडोर अपने छोटे पुत्र, जो उस समय केवल 5 वर्ष के थे, उनके हाथ सौंप दी. आईए जानते आज सिखों के 8वें गुरु गुरु हरिकिशन जी के बारे में 10 खास तथ्य…
गुरु हरिकिशन जी के बारे में 10 खास तथ्य:-
- सिखों धर्म के आठवें गुरु, गुरु हर किशन सिंह जी का जन्म श्रावण मास, कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को सन् 1656 ई. में कीरतपुर साहिब में हुआ था.
- गुरु हर किशन सिंह के पिता सिख धर्म के सातवें गुरु, गुरु हरि राय जी थे और उनकी माता का नाम किशन कौर था.
- बचपन से ही गुरु हर किशन जी बहुत ही गंभीर और सहनशील प्रवृत्ति के थे. वे 5 वर्ष की उम्र में भी आध्यात्मिक साधना में लीन रहते थे. उनके पिता अकसर हर किशन जी के बड़े भाई राम राय और उनकी कठीन से कठीन परीक्षा लेते रहते थे.
- जब हर किशन जी गुरुबाणी पाठ कर रहे होते तो वे उन्हें सुई चुभाते, किंतु बाल हर किशन जी गुरुबाणी में ही रमे रहते.
- उनके पिता गुरु हरि राय जी ने गुरु हर किशन को हर तरह से योग्य मानते हुए सन् 1661 में गुरुगद्दी सौंपी. उस समय उनकी आयु मात्र 5 वर्ष की थी. इसीलिए उन्हें बाल गुरु कहा गया है.
- गुरु हर किशन जी ने अपने जीवन काल में मात्र तीन वर्ष तक ही सिखों का नेतृत्व किया.
- ऐसा माना जाता है कि उनके बड़े भाई राम राय ने उस समय के मुगल बादशाह औरंगजेब से उनकी शिकायत कर दी थी कि वह बड़े हैं और गुरु गद्दी पर उनका हक है। जिस वजह से औरंग जेब ने उन्हें दिल्ली बुलाया था.
- ऊंच-नीच और जाति का भेदभाव मिटाकर उन्होंने सेवा का अभियान चलाया, लोग उनकी मानवता की इस सेवा से बहुत प्रभावित हुए और उन्हें बाला पीर कहकर पुकारने लगे.
- गुरुद्वारा बंगला साहिब असल में एक बंगला है, जो 7वीं शताब्दी के भारतीय शासक, राजा जय सिंह का था. कहते हैं जब औरंगजेब ने उन्हें दिल्ली बुलाया था तब वह यहां रुके थे. कहा तो यह भी जाता है कि गुरु हरकिशन सिंह जी जब दिल्ली पहुंचे तो उस वक्त दिल्ली को चेचक महामारी ने घेर रखा था और गुरु जी ने इसी बंगले में लोगों का इलाज बंगले के अंदर के सरोवर के पवित्र पानी से किया था. जिसके बाद से ही इस बंगले को उनकी याद में गुरुद्वारा बंगला साहिब कर दिया गया.
- अमृतसर में 30 मार्च 1964 को चेचक की बीमारी के कारण महज 8 वर्ष की आयु में सिखों के सबसे छोटे गुरु गुरु हरकिशन सिंह जी ने प्राण त्याग दिए. उन्होंने अपने अंत समय में अपनी माता को अपने पास बुलाया और कहा कि उनका अंत अब निकट है. जब लोगों ने कहा कि अब गुरु गद्दी पर कौन बैठेगा तो उन्हें अपने उत्तराधिकारी के लिए केवल ‘बाबा- बकाला’ का नाम लिया, जिसका अर्थ था कि उनका उत्तराधिकारी बकाला गांव में ढूंढा जाए। उनके उत्तराधिकारी गुरु तेजबहादुर सिंह जी थे और उनका जन्म बकाला में हुआ था.
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