नानकीशाही कैलेण्डर के अनुसार 1666 में पौष माह के शुल्क पक्ष की सप्तमी तिथि को सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेगबहादुर जी और माता गुजरी देवी के घर गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म हुआ था. गुरु गोबिंद सिंह जी सिखों के अंतिम गुरु थे. गुरु गोबिंद सिंह जी की अद्भुत गाथाएं हमारे देख के इतिहास की शौर्य और अद्भुत गाथाओं में से है. इन्हें दशम गुरु भी कहा जाता है. गुरु दशक के समकालीन मुग़ल सम्राट औरंगजेब को गुरु जी ने एक पत्र लिखा था. जिससे हम जफरनामा के नाम से जानते है. इसको को गुरु की अद्भुत व् शौर्य गाथाओं में गिना जाता है. इस लेख से आज हम आपको इस पत्र जफरनामा के बारे में बताएंगे, गुरु गोबिंद सिंह जी ने औरंगजेब को पत्र में क्या लिखा था.
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जफरनामा : दशम गुरु की अप्रतिम शौर्य गाथा
“जफरनामा” जो सिखों के अंतिम गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुग़ल सम्राट औरंगजेब को लिखा “विजय पत्र” है. जो मूल रूप से फारसी भाषा में लिखा गया है. जो उन्होंने अपने चरों बेटों और साथियों के बलिदान में आनादपुर छोड़ने के बाद 1706 में लिखा अपने अंतिम दिनों में लिखा था.
हम आपको बता दे कि फारसी में लिखे इस पत्र में खालसा पंथ की स्थापना, 40 सिखों के साथ चारो बेटों का बलिदान, आनादपुर छोड़ना, फतेहगढ़ की घटना, चमकौर के संघर्ष, राजपूतों और मराठों द्वारा औरंगजेब की हार, का अद्भुत्य्य वर्णन किया है. इतिहासकारों के अनुसार गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा जफरनामा में औरंगजेब के अत्याचारों के विरोध अभिव्यक्ति की थी. इस पत्र में दशम गुरु द्वारा औरंगजेब की अत्याचारों, कुशासन और झूठे वादों का वर्णन किया है.
’जफरनामा’’ में गुरु गोविन्द सिंह के स्वर एक विजेता का स्वर है, जिसमें गुरु गोविन्द सिंह जी ने इस पत्र में औरंगज़ेब को ललकारते हुए लिखते है कि “औरंगज़ेब, तू धर्म से कोसों दूर है जो अपने भाइयों व बाप की हत्या करके अल्लाह की इबादत करने का ‘ढोंग’ रचता है. तूने कुरान की कसम खाकर कहा था कि मैं सुलह रखूंगा, लड़ाई नहीं करूंगा पर तू अव्वल दर्जे का ‘धूर्त’, ‘फरेबी’ और ‘मक्कार’ है. तूने अपने बाप की मिट्टी को अपने भाइयों के खून से गूँथा और उस खून से सनी मिट्टी से अपने राज्य की नींव रखी है और अपना आलीशान महल तैयार किया है. तेरे खुदा की कसम तेरे सिर पर भार है”.
गुरु गोबिंद सिंह जी औरंगज़ेब को चुनौती देते हुए लिखते है कि “क्या हुआ जो मेरे चारो बच्चे देश की मिट्टी के लिए कुर्बान हो गए. पर कुंडली मारे तुझे डंसने वाला नाग अभी जिन्दा बाकी है. अगर तू कमजोरों पर जुल्म करना और उन्हें सताना बंद नहीं करेगा तो मुझे कसम है उस परवरदिगार की कि तुझे आरे से चिरवा दूंगा. मैं युद्ध के मैदान में अकेला आऊंगा और मैं तेरे पांव के नीचे ऐसी आग रखूंगा कि पूरे पंजाब में उसे बुझाने वाला तथा तुझे पानी पिलाने वाला एक न मिलेगा. मैंने पंजाब में तेरी पराजय की पूरी व्यवस्था कर ली है.”
इस जफरनामा में आगे गुरु गोविंद सिंह जी औरंगज़ेब को इतिहास के बारे में बताते हुए लिखते है कि “तू अपनी मन की आँखों से देख कर विचार कर कि भारत को जीतने का सपना देखने वाले सिकंदर और शेरशाह; तैमूर और बाबर, हुमायूं और अकबर आज कहां है ?”
फिर आगे इस जफरनामा में गुरु जी औरंगज़ेब को चेतावनी देते हुए कहते है कि “औरंगज़ेब, तू मेरी यह बात ध्यान से सुन कि जिस ईश्वर ने तुझे इस मुल्क की बादशाहत दी है, उसी ने मुझे धर्म और मेरे देश की रक्षा का जिम्मा सौंपकर वह शक्ति दी है कि मैं धर्म और सत्य का परचम बुलंद करूं. जब सभी प्रयास असफल हो गये हों, न्याय का मार्ग अवरुद्ध हो गया हो, तब तलवार उठाना तथा युद्ध करना सबसे बड़ा धर्म है. जफरनामा के अंत में गुरु लिखते है कि “शत्रु कितनी भी शत्रुता निभा ले लेकिन ईश्वर में विश्वास रखने से ईश्वर हमारा बल भी बांका नहीं होने देते”.
हम आपको बता दे कि सिखों के अंतिम गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी महान योधा होने के साथ साथ अध्यात्मिक चिंतक भी थे. इन्होने “दशम ग्रथ” लिख “श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी” को पुर पर सिखों को आदेश भी दिया था कि अब से कोई भी इंसान गुरु नहीं होगा, यह किताब सिखों की गुरु होगी. गुरु गोबिंद सिंह जी ने जफरनामा में औरंगज़ेब को ललकार का समझाया है कि सिर्फ तलवार ही धनी नहीं होती है, कलम भी बहुत ताकतवर होती है.