जानिए सिख धर्म में क्या है ‘माथा टेक’ कर्तव्य कर्म

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सिख धर्म की शुरुवात 15वीं शताब्दी के अंत में सिखों के गुरु, गुरु नानक देव जी ने पंजाब के क्षेत्र में की थी. वैसे तो सिखों के 10 सिख गुरु माने जाते है, लेकिन गुरु ग्रन्थ साहिब जी को लिखते समय 6 गुरुओं के साथ तीस भगतों की बानी भी थी. सिखों के अंतिम गुरु ने अपने जीवन के आखरी पलों में सिखों को आदेश दिया था कि अब से सिखों का कोई भी इंसान गुरु नहीं होगा. सभी सिखों श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी को अपना गुरु मानेगे. सिख धर्म में सिखों के बहुत सारी रीति रिवाजें होंती है. सिख अपने धर्म को सबसे ऊपर मानते है . सिख गुरुओ ने बताया है कि मनुष्य की आत्मा निराकार है, सिख मुर्तिपूजन का खंडन करते है लेकिन एक किताब को अपना गुरु मानते है. ऐसे हीई सिख धर्म में कई ऐसी चीजें है जिनका मतलब बहुत गहरा होता है. आज हम आपको ऐसी ही एक आस्था के बारे में बताएंगे.

दोस्तों, आईये आज हम आपको की सिखों में माथा टेक क्यों करते हैं? सिखों में माथा टेकने की क्या मान्यता है ? सिखों के लिए यह कर्तव्य खर्म इतना जरूरी क्यों होता ही ?

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सिख धर्म में ‘माथा टेक’ क्यों जरूरी है? 

सिखों अपने गुरुओं के स्थान पर माथा टेक करते है. माथा टेक का अर्थ होता है कि अपना सर झुका कर अपने माथे को जमीन पर छूना. इसके साथ ही माथा टेक से अभी यह भी होता ही कि अपने  गुरुओं का आशीर्वाद लेना या अपने गुरुओ को प्रणाम करने की प्रक्रिया को माथा टेक कहते है. यह एक ऐसी आस्था होती है जिसका हर सिख पालन करता है. हम आपको बता दे की माथा टेकने से गुरु का आशीर्वाद भी लेते है.

यह सिखों का श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी के आगे करने वाला एक कर्तव्य कर्म है. जो गुरूद्वारे या पूजास्थल पर आने वाले श्रद्धालु जो गुरबाणी के प्रति सम्मान दिखने के लिए अपने घटने और हाथों के बल झुकते है. जिससे अपने हाथ, पैर और घुटने जमीन से छुते था और अपने माथे को जमीन से छूते है. इससे शारीरिक भाषा के तौर पर बहुत ज्यादा सम्मान और विनम्रता की आस्था माना जाता है.

सिख श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी के सामने झुकने से खुद को धर्मग्रन्थ और सच्चे शब्दों के प्रति समर्पित कर रहे है. जब सिख गुरूद्वारे पहुचते है तो उसके द्वार पर ही सबसे पहले माथा टेक करते है, जिससे वह गुरुओं को सम्मान देते है. इसके साथ ही सिख गुरूद्वारे में लंगर बनाने में भी मदद करते है, जिसको सिख अपना कर्तव्य कर्म में ही गिनते है.

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