यह गुरुद्वारा पंजाब, संगरूर जिले के मुलोवल गावं में स्थित है, इस गुरूद्वारे के पीछे एक ऐतिहासिक कहानी है. कहा जाता है कि ‘गुरुद्वारा मीठाखुह साहिब’ को गुरु तेगबहादुर साहिब जी ने बनवाया था, इस गुरूद्वारे को उनके चरणों में स्थान मिला हुआ है. इस गुरूद्वारे का पुननिर्माण 2009 में हुआ था. कहा जाता है कि पुननिर्माण के दौरान एक ईंट मिली थी जिसके ऊपर ‘इक ओमकारा’ का प्रतीक मिला था. उसी समय से यह गुरुद्वारा चर्चा में बना हुआ है. आईये आज हम आपको एक ऐसे गुरुद्वारा के बारे में जिसे खुद गुरु तेगबहादुर साहिब का आशीर्वाद प्राप्त है.
इस गुरूद्वारे का नाम श्री मीठा खुह साहिब कैसे पड़ा
1663 में, श्री गुरु तेग बहादुर जी ने मालवा क्षेत्र के गुरु जी की यात्रा के दौरान गावं राजो माजरा से यात्रा करते हुए मुल्लोवाल तक पहुच गए. गुरु तेग बहादुर साहिब और गुरु साहिब ने अपने सिख अनुयायियों के साथ तालाब के पास डेरा डाला था. गुरु तेग बहादुर जी ने अपने घोड़े को पास के एक पेड़ से बांध दिया था. जब गुरु तेग बहादुर जी गावं के एक कुएं के पास पहुंच तो गुरु जी ने पानी माँगा. गावं के लोगों ने उन्हें बताया कि यहा का पानी खारा है और कहा की कहीं ओर से पानी ले आईये.
गुरु तेग बहादुर ने कहा कि मुझे यही पानी दे दिए में पी लूँगा, पर जब उन्होंने पानी पिया तो पानी मीठा था. गुरु तेग बहादुर ने बताया कि पानी तो मीठा है गावं के लोगो को यकीन नहीं हुआ. गावं के लोगो ने पानी कि जाँच की ओर पानी मीठा था. ऐसे इस गुरूद्वारे का नाम ‘गुरुद्वारा श्री मीठा खुह साहिब’ रखा गया. यह कुआँ आज भी मौजूद है.
‘गुरुद्वारा मीठाखुह साहिब’ पर गुरु तेग बहादुर जी की कृपा
कुएं का पानी मीठा हो जाने के बाद, गुरु तेगबहादुर जी ने गावं वालों को 9 कुएं ओर खोदने को कहा. सभी गावं वालों ने गुरु जी का आशीर्वाद लिया, लेकिन गोंडा नामक गाँव के चौधरी ने गुरु को प्रणाम नहीं किया. वह चौधरी गोंडा ‘सखी सरवर पीर’ के अनुयायी थे. लेकिन जब उनकी पत्नी ने जब उन्हें गुरु जी को प्रणाम करने को कहा तो उसने मना कर दिया था. थोड़ी ही देर में उसको कुहद ने पकड़ लिया, उनकी पत्नी ने गुरु जी से मदद मांगी और गुरु जी ने उसपर दया कर दी, और उसे ठीक कर दिया.
कुछ लोगो का कहना है कि गुरु तेग बहादुर वहां 4 दिन रुके थे, इस गुरूद्वारे की नीवं में 4 ईंटें भी रखी थी. गुरु जी इस गावं को यह कहकर आशीर्वाद दिया था, कि जो भी कोई इस स्थान की देखभाल करेगा वह हमेशा खुश रहेगा. मूल गुरुद्वारे की एक ईंट यहां संरक्षित की गई है. ऐसा माना जाता है कि श्री गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा लिखित एक हुकमनामा भी यहां संरक्षित किया गया है. 2009 में जब गुरुद्वारे का पुनर्निर्माण हुआ, तो मूल ईंट में से एक मिली. ईंट पर ‘इक ओंकार’ चिन्ह अंकित था.
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