Wadda Ghallughara Massacre in Hindi – कहते हैं कि ‘इतिहास के पन्नों’ को पलटने से सिर्फ और सिर्फ तकलीफें मिलती हैं और कुछ नहीं. और अगर वो पन्ना भारतीय इतिहास से जुड़ा हो तो बिन बोले ही वो बातें सामने आ जाती हैं जिसका शायद हम कभी जिक्र नहीं करना चाहते. आप सोंच रहे होंगे हम ये कैसी बातें कर रहे हैं? लेकिन वास्तविकता से इसका बहुत गहरा नाता है. मुगलों ने भारत पर शासन किया लेकिन उनमें इंसानियत नामात्र थी…मुगल क्रूर थे और इतिहास के किताबों में उनकी महानता के जो किस्से पढ़ाए जाते हैं..वे सब के सब फर्जी हैं. अगर इनमें इंसानियत होती तो ये एक साथ 50 हजार सिख बच्चों, बुढों और स्त्रियों की हत्या नहीं करते…अगर इनमें इंसानियत होती तो कभी भी सिखों को सामूहिक रुप से मारने और उनके अस्तित्व को जड़ से नष्ट करने का प्रयास नहीं करते.
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जब सिखों ने अब्दाली की बजा दी थी बैंड
दरअसल, अहमद शाह दुर्रानी ने 1761 में भारत पर हमला किया और पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों पर विजय प्राप्त करने के उपरांत लूट के सामान के साथ वापस लौट रहा था. जब अब्दाली (Wadda Ghallughara Massacre 1762) ने अफगानिस्तान के लिए अपना यात्रा शुरु की तो सिखों ने सतलुज नहीं से लेकर सिंधु नदीं तक अब्दाली और उसकी सेना पर जमकर हमला किया. दुर्रानी को पानी पिला दिया…उसके लूटे हुए सामानों को भी सिख लूट ले गए और साथ ही 2000 महिला कैदियों को मुक्त करा लिया. इसके बाद सिखों की नजर उस विशाल साम्राज्य पर थी, जो मुगलों के अधीन था और मुगल शासकों ने उन जगहों पर अपने फौजदारों को बिठा रखा था…दुर्रानी को पानी पिलाने के बाद सिखों ने जालंधर की ओऱ रूख किया. जालंधर के फौजदार को खदेड़ दिया….सरहिंद और मालेरकोटला को लूट लिया. अहमद शाह अब्दाली खून के घूंट पी रहा था.
अगस्त 1761 में ही अहमद शाह दुर्रानी ने सिखों को कुचलने के लिए 12000 लड़ाकों की एक सेना भेजी लेकिन सिखों ने उसकी सेना को तहस नहस कर दिया. इसके ठीक बाद सिखों ने अक्टूबर 1761 में लाहौर के गवर्नर ओबैद खान को हराकर लाहौर पर कब्जा कर लिया. उसके बाद 27 अक्टूबर 1761 में दिवाली के अवसर पर अमृतसर में बुलाई गई एक आम सभा में अफगानों के एजेंटो, मुखबिरों और सहयोगियों को दंडित करने का निर्णय लिया गया, जिसकी शुरुआत जंडियाला के अकील दास से हुई…अकील दास निरंजनिया संप्रदाय औऱ सिखों का कट्टर दुश्मन था…जैसे ही सिखों ने अफगानों के एजेंटों को सजा देने का फैसला किया..वैसे ही अकील दास ने अहमद शाह दुर्रानी के पास अपने दूत भेज दिया…अहमद शाह दुर्रानी उस समय एक बड़ी सेना के साथ भारत में प्रवेश कर चुका था.
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सिखों को जैसे ही इसकी भनक लगी उन्होंने पूरे जंडियाला को घेर लिया. लेकिन दुर्रानी जंडियाला तक पहुंच पाता उससे पहले अपने परिवारों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाना सिखों की पहली प्राथमिकता थी. इसी उद्देश्य से सिख अपने परिवार को लेकर मालवा क्षेत्र की ओर बढ़ने लगे और सतलुज नदीं को पार कर गए. अहमद शाह दुर्रानी को इसकी खबर लग गई. उसने सरहिदं के फौजदार जैन खान और मलेरकोटला के भीखान खान से सिखों को घेरने को कहा. 5 फरवरी 1762 को इस क्रूर शासक ने अपनी सेना के साथ सतलुज नदी पार की और 30,000 घुड़सवार सैनिकों के साथ सिखों पर हमला कर दिया. उसके अलावा सरहिंद और मलेरकोटला की सेना ने दूसरी ओर से 20,000 से अधिक की सेना और तोपचियों के साथ हमला कर दिया. उस समय तक सिख कुप के गांवों तक ही पहुंचे थे. इसी जह से वड्डा घल्लूघारा शुरु हुआ था.
इस जगह पर हुआ था युद्ध
सिखों को चारों ओर से इन आक्रांताओं ने घेर लिया था..अब अपने परिवार और बच्चों की सुरक्षा सिख लड़ाकों को सताने लगी. इसी के मद्देनजर सिखों ने 4 किलोमीटर लंबी एक सुरक्षात्मक घेरा बनाया और मालवा की ओर बढ़ते रहे. पूरी दिन लड़ाई जारी रही. सूर्यास्त के समय तक सिखों ने लगभग 30,000 पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को खो दिया था. जबकि 10 हजार के करीब लोग घायल हो गए थे. इसके अलावा कई लड़ाके अपनी शहादत दे चुके थे. सरदार जस्सा सिंह को 22 घाव और महाराणा रणजीत सिंह जी के दादा सरदार चरत सिंह के शरीर पर 19 घाव हुए थे. हर सिख योद्धा अपनी मातृभूमि और अपने परिवार की रक्षा में घायल हो गया था.
30000 मासूमों की गई थी जान – Wadda Ghallughara Massacre in Hindi
वहीं, काफी सिख बरनाला की ओर भाग गए. दुर्रानी के सामने भी दुविधा थी कि उसकी सेना पिछले 2 दिनों से लगातार यात्रा और युद्ध ही कर रही थी…ऐसे में उसने सिखों का पीछा नहीं किया…लेकिन युद्ध के पश्चात अहमद शाह का वीभत्स रूप पूरी दुनिया ने देखा था. युद्ध में मारे गए सिखों के सिर को काटकर वह लाहौर ले गया और सिरो के पिरामिड बनवाए. कहा तो यह भी जाता है कि दुर्रानी ने सिखों के बिखरे हुए शवों को एकत्र किया और उन्हें 60 गाड़ियों पर लादकर लाहौर ले गया और मीनारों पर लटका दिया. हालांकि, इसके बाद सिखों ने फिर से हुंकार भरी. सिखों ने छोटी अवधि के लिए खुद को पुनर्गठित किया और अफगानों को अमृतसर से बाहर तक खदेड़ दिया.
इस तरह मरा था अहमद शाह अब्दाली
कहा जाता है कि जब अहमद शाह दुर्रानी, जिसे अहमद शाह अब्दाली भी कहा जाता है…उसके आदेश पर अफगानी सेना ने श्रीहरमंदिर साहिब को बारुद से नष्ट करने का प्रयास किया था और इसी दौरान एक ईंट का टुकड़ा उड़कर उसके नाक से टकराया. यह घाव इतना भयानक था कि इस कांड के अगले 10 वर्ष तक अब्दाली कोशिश करता रह गया लेकिन घाव ठीक नहीं हुआ. इसी घाव के कारण 1772 में उसकी मृत्यु भी हो गई थी.
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