Existence of Buddhism in Hindi – बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है. इसके प्रस्थापक महात्मा बुद्ध शाक्यमुनि (गौतम बुद्ध) थे. वे 563 ईसा पूर्व से 483 ईसा पूर्व तक रहे. ईसाई और इस्लाम धर्म से पहले बौद्ध धर्म की उत्पत्ति हुई थी. दोनों धर्म के बाद यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है. इस धर्म को मानने वाले ज्यादातर चीन, जापान, कोरिया, थाईलैंड, कंबोडिया, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और भारत जैसे कई देशों में रहते हैं.
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वैसे इस धर्म या पंथ को लेकर जो मान्यताएं हैं वो हिन्दू धर्म से शुरूआती वक़्त में काफी ज्यादा मिली-जुली थी. जहाँ वास्तविक स्थान मानवता को दिया गया था. लेकिन वहीँ आज के वक़्त में अब धार्मिक असमानताएं बढ़ती जा रही हैं. फिर भी इन सब से परे आखिर बौद्ध धर्म की उत्पति कैसे हुई? इसके लिए महात्मा बुद्ध ने कैसे क्या क्या किया? क्या सिद्धांत बनाए? आज ये सब जानते हैं आगे इस लेख में…
बुद्ध को ऐसे हुआ दुनिया के दुखों का ज्ञान
गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोदन था और वे शाक्य वंश से संबंधित थे, जो की दक्षिण नेपाल से संबंधित है और माता का नाम महामाया देवी था जो की कोलिय वंश से संबंधित थी. शुद्धोदन कपिलवस्तु (Origin of Bauddhism)के राजा थे और उनकी पत्नी महामाया देवी को संतान होने वाली थी जिसके लिए वह अपने मायके जा रही थी. इसी क्रम में रास्ते में एक वन जिसका नाम लुम्बिनी वन था वहां उन्हें प्रसव पीड़ा शुरू हो गई थी और वहां उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई और वह पुत्र आगे चलकर गौतम बुद्ध के नाम से जाने गए और यह लुम्बिनी वन वर्तमान में नेपाल में है और यह लुम्बिनी वन गौतम बुद्ध का जन्म स्थान बना था.
परंतु गौतम बुद्ध के जन्म के 7 दिनों के बाद ही उनकी माता महामाया देवी का देहांत हो गया था और उनके पिता शुद्धोदन ने गौतम बुद्ध की देखभाल और लालन-पालन के लिए उनकी मौसी प्रजापति गौतमी से विवाह कर लिया था. जब शुद्धोदन ने गौतम बुद्ध की कुंडली दिखाई तो कौण्डिन्य ऋषि द्वारा दो गतियों के बारे में बताया गया जिसमें कहा गया की या तो यह चक्रवर्ती सम्राट बनेंगे या तो यह बहुत बड़े सन्यासी बनेंगे. उनके पिता शुद्धोदन गौतम(Existence of Buddhism) बुद्ध को एक राजा के रूप में देखना चाहते थे इसलिए वे परेशान रहने लगे की कहीं उनका पुत्र संन्यास के मार्ग पर न चले जाए और अपने पिता के इच्छा से उल्टा गौतम बुद्ध वनों में रहना, शांत स्वभाव से चिंतन करना और अकेला रहने का भाव रखते थे.
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इसी भय के चलते उनके पिता ने 16 वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध का विवाह करा दिया गया था, यह इसलिए कराया गया था ताकि गौतम बुद्ध विवाह के बाद सांसारिक जीवन में फंस जाए और संन्यास की तरफ उनका ध्यान न जाए.
गौतम बुद्ध का विवाह यशोधरा नामक कन्या से हुआ और उससे उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी जिसका नाम राहुल रखा गया था, परंतु यह विवाह और पुत्र बंधन भी उन्हें संन्यास से अलग नहीं कर पाए.
बौद्ध धर्म का इतिहास – Existence of Buddhism
उन्होंने 29 वर्ष की आयु में संन्यास लेने का फैसला लिया वो भी उस वक़्त जब सारे लोग निद्रा अवस्था में थे. और रात में सबकी निद्रा अवस्था के समय वे अपना गृह त्याग करके संन्यास के लिए निकल गए थे और इस घटना को “महाभिनिष्क्रमण” कहा जाता है. उनके गृह त्याग के क्रम में वे इधर उधर ज्ञान की प्राप्ति के लिए घूमने लगे और अलग-अलग गुरुओं से भेंट भी की और उनका लक्ष्य ज्ञान की प्राप्ति करना था. इस क्रम में उन्हें अपने पहले गुरु मिले और जिनका नाम आलार कालाम था और उनसे उनकी भेंट वैशाली, बिहार में हुई थी, आलार कालाम सांख्य दर्शन से संबंधित थे और इनसे गौतम बुद्ध ने शिक्षा प्राप्त की थी.
इसके बाद गौतम बुद्ध को उनके दूसरे गुरु मिले जिनका नाम रुद्रक रामपुत्र था और उनसे उनकी भेंट राजगृह, बिहार में हुई थी और इनसे भी बुद्ध ने शिक्षा प्राप्त की थी. परंतु इन सब के बाद भी गौतम बुद्ध (Existence of Buddhism) को ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो पा रही थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने ज्ञान की प्राप्ति के अभियान को जारी रखा था और इस क्रम में वे फिर बिहार के बोधगया पहुंचे.
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बोधगया पहुँचने के बाद वहां उन्होंने निरंजन नदी जिसे फल्गू नदी भी कहते हैं उसके किनारे 49 दिनों तक एक पीपल के पेड़ के नीचे कठोर तपस्या की और इसके बाद अंत में वैशाख पूर्णिमा के दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई, इसके अलावा गौतम बुद्ध का जन्म, मृत्यु और ज्ञान की प्राप्ति वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुई थी इसलिए इसे बुद्ध पूर्णिमा भी कहा जाता है.
जिस समय बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई तब उनकी आयु 35 वर्ष की थी अर्थात उनके गृह त्याग करने के 6 वर्ष बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. बुद्ध की इस ज्ञान की प्राप्ति को “बुद्धत्व” कहा गया अर्थात ज्ञान की प्राप्ति और बुद्धत्व तीन प्रकार के होते हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं:
(1) सम्यकसम्बुद्ध (2) प्रत्येकबुद्ध (3) सावकबुद्ध
बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार
उन्हें “तथागत” और “बुद्ध” जैसे नामों से जाना जाने लगा था, जिसमें बुद्ध का अर्थ बुद्धत्व(Existence of Buddhism:) को प्राप्त करने वाला है और तथागत का अर्थ “सत्य है ज्ञान जिसका” है, अपनी इस ज्ञान की प्राप्ति के बाद उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रसार आरंभ किया और इस क्रम में उनके सबसे पहले 5 शिष्य बने और इन पांच शिष्य में से आनंद उनका सबसे प्रिय शिष्य था. इन पाँचों शिष्यों को उन्होंने अपना सबसे पहला उपदेश दिया था और अपना यह सबसे पहला उपदेश उन्होंने सारनाथ, उत्तर प्रदेश में दिया था, सारनाथ को ऋषिपत्तन के नाम से भी संबोधित किया जाता है.
गौतम बुद्ध ने अपने प्रवचनों और उपदेशों के माध्यम से बौद्ध धर्म का प्रसार और समाज को जागृत करने का प्रयास किया था. वर्तमान में भी बौद्ध धर्म कई देशों में विस्तृत है. इस क्रम में उन्होंने अपने बहुत सारे संघ भी बनाए जिसके माध्यम से उनके बहुत सारे भिक्षुक बनते गए और ये भिक्षुक भी बौद्ध धर्म का प्रसार करते गए थे. इन सब प्रयासों की वजह से लोग इन से जुड़ते चले गए और धीरे-धीरे बौद्ध धर्म लगभग पूर्ण उत्तर भारत में फ़ैल गया था और उत्तर भारत के बड़े और प्रमुख धर्मों में से एक बन गया था.
बौद्ध धर्म के प्रसार के क्रम में बहुत सारे संघ, मठ और विहार बनाए गए थे जहाँ पर बौद्ध धर्म को मानने वाले उनके अनुयायी रहा करते थे, परंतु तब इसमें सिर्फ पुरुष ही रहा करते थे, बाद में बुद्ध के प्रिय शिष्य आनंद के आग्रह के बाद उनके द्वारा इन जगहों पर महिलाओं को भी रहने की अनुमति दे दी गई थी. बुद्ध के अनुसार जब तक यहाँ पुरुष होंगे तब तक बौद्ध धर्म अच्छा चलेगा और इसकी प्रगति होती रहेगी, लेकिन महिलाओं के आने के बाद यह धर्म आने वाले 500 से 1000 (Existence of Buddhism) वर्ष में अपनी प्रगति खोता चला जाएगा.
गौतम बुद्ध ने अपने जीवन का सबसे अंतिम उपदेश अपने शिष्य सुभद को दिया था और 80 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु कुशीनगर, उत्तर प्रदेश में हो गई थी, इस घटना को “महापरिनिर्वाण” कहा जाता है और उन्होंने अपने पूरे जीवन में नैतिक ज्ञान को लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया था.
बौद्ध धर्म में ‘वस्सावसा’ – Existence of Buddhism
संघ संस्कृत भाषा से लिया गया शब्द है जिससे तात्पर्य है समुदाय या सभा, बौद्ध संघ में बौद्ध भिक्षु और उपासक रहा करते थे और वे घूम-घूम कर बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करते थे. संघ में बौद्ध भिक्षु अलग-अलग क्षेत्रों में जाके बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे और वे सिर्फ वर्षा ऋतु के दौरान ही किसी एक जगह पर रुक जाते थे और वर्षा ऋतु के ख़त्म हो जाने पर वे अपनी यात्रा दुबारा शुरू कर देते थे, इसे बौद्ध धर्म में “वस्सावसा” कहा जाता है.
संघ के इन्हीं प्रयासों से बौद्ध धर्म पूरे उत्तर भारत में माना जाने लग गया था, और बहुत सारे राजाओं ने भी बौद्ध धर्म का सहयोग किया, जो कुछ इस प्रकार हैं:
- मगध (बिम्बिसार, अजातशत्रु)
- कोशल (प्रसेनजीत)
- कौशाम्बी (राजा उदयन)
- उत्तर भारत के कई गणतंत्रात्मक राज्य
सबसे ज्यादा मौर्य सम्राट “अशोक” (Existence of Buddhism)ने बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया था और इसे पश्चिमी एशिया, बर्मा, श्रीलंका जैसे देशों तक पहुंचाया था.
गौतम बुद्ध की जीवन घटनाएं और उनके प्रतीक
बौद्ध के जन्म को कमल एवं सांड के प्रतीक चिन्ह से दर्शाया जाता है क्योंकि जातक कथाओं में बुद्ध के जन्म के संबंध में यह कहा गया है की जब उनका जन्म हुआ तब उन्होंने 7 कमल के पुष्पों के ऊपर पैर रख कर अपना कदम बढ़ाया था. उनके गृह त्याग को घोड़े से दर्शाया जाता है क्यूंकि वे घोड़े के द्वारा अपना घर छोड़ कर निकले थे. उनके ज्ञान प्राप्ति को पीपल के वृक्ष से दर्शाया जाता है क्यूंकि उन्हें पीपल के वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी.
उनके निर्वाण को पद चिन्ह से दर्शाया जाता है और निर्वाण का अर्थ है की जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाना, दीपक का बुझ जाना और इस मोह-माया वाली दुनिया को छोड़ जाना. मृत्यु को स्तूप(Existence of Buddhism) से दर्शाया जाता है और स्तूप में बौद्ध धर्म के अवशेष रखे जाते हैं.
बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य (Four Noble Truths of Buddhism)
बुद्ध के द्वारा बौद्ध धर्म की शिक्षाएं और उनके उपदेशों से उन्होंने बहुत नैतिक ज्ञान समाज को दिया और उन्होंने चार आर्य सत्यों की बताए, जो कुछ इस प्रकार हैं:
(1) दुःख (2) दुःख समुदाय (3) दुःख निरोध (4) दुःख निरोध मार्ग
- उन्होंने बताया की इंसान को पूरे जीवन में दुःख तो देखना ही पड़ेगा।
- दुःख अकेला नहीं बल्कि पूरे समुदाय में होगा।
- दुःख का निरोध अर्थात ख़त्म किया जा सकता है।
- दुःख को ख़त्म करने के लिए उसका निरोध मार्ग भी है।
सांसारिक दुखों से मुक्ति के लिए बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग की बात कही. ये साधन हैं.
(i) सम्यक दृष्टि
(ii) सम्यक संकल्प
(iii) सम्यक वाणी
(iv) सम्यक कर्मांत
(v) सम्यक आजीव
(vi) सम्यक व्यायाम
(vii) सम्यक स्मृति
(viii) सम्यक समाधि
उन्होंने बताया की अगर मनुष्य इन 8 रास्तों का पालन करता है तो वह अपने जीवन के दुखों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है, इसमें सम्यक का अर्थ “सही” होता है. सम्यक दृष्टि और सम्यक संकल्प को प्रज्ञा स्कंद कहा गया है और यह बुद्धि से संबंधित है। सम्यक वाक्, सम्यक कर्म और सम्यक आजीव को शील स्कंद कहा गया है और यह नैतिकता से संबंधित है. सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि को समाधि स्कंद कहा गया है और यह एकाग्रता से संबंधित है.
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