चिड़ियों से मै बाज लडाऊ, गीदड़ों को मैं शेर बनाऊ सवा लाख से एक लडाऊ, तभी गोबिंद सिंह नाम कहाउँ” ये कहावत सिखों के दसवें और अंतिम गुरु गुरु गोबिन्द सिंह ने कही थी. गुरु गोविदं सिंह के कई रूप थे वो एक पिता, पुत्र, महान योद्धा, चिन्तक, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता भी है और हिन्दू धर्म में भी गुरु गोविदं सिंह का अहम योगदान रहा है.
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पिता और पुत्रों का दिया बलिदान
22 दिसम्बर 1822 को जन्मे गुरु गोविंद सिंह सिख धर्म के गुरु और सिख समुदाय के महान संत-सिपाही थे और गुरु गोविंद सिंह जी ने भी महज 9 साल की उम्र में अपने पिता से बलिदान की बात कही थी. इसी के साथ गुरु गोविंद सिंह राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए बच्चो का भी बलिदान दे दिया. गुरु गोबिंद सिंह ने खुद अपने बेटों को शस्त्र दिया और दुश्मन को सामना करने की बात कही और उनके दो पुत्र अजीत सिंह और जुझारू सिंह मुगलों के साथ युद्ध में मारे गए थे. वहीँ दो अन्य पुत्रों जोरावर सिंह (9 वर्ष) और फतह सिंह (7 वर्ष) को सरहिन्द के सूबेदार वजीर खान ने इस्लाम स्वीकार न करने के कारण दीवारों में चुनवा दिया था. चार-चार वीर पुत्रों को खोकर भी गोबिंद सिंह जी ने कहा था, ‘चार मुए तो क्या हुआ, जीवित कई हजार. ’
पिता और पुत्रो को खोने के साथ गुरु गोविंद सिंह जी ने एक और त्याग भी दिया और ये त्याग घर का था जहाँ यो कई सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं में रह सकते थे तो वहीं धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने ये भी छोड़ दिया.
गुरु गोबिंद सिंह का हिन्दू धर्म में योगदान
वहीं एक लेखक और कवि के रूप में गुरु गोबिंद सिंह ने कई सारी रचना की साथ ही तो वहीं उन्होंने भागवत पुराण, राम अवतार, कृषण अवतार सभी की रचना भी की और कहा जाता है कि गुरु गोविंद सिंह ने नैनादेवी पहाड़ के नीचे सतलज नदी के किनारे बैठ कर 1698 को ‘रामावतार’ की रचना पूरी की थी। इनमें करीब 900 श्लोक युद्ध को लेकर विस्तृत विवरण देते हैं। सिख आज भी दशहरा मनाते हैं।. उन्होंने इसके अंत में लिखा है – “रामायण अनंत है। रामकथा सदा अनादि और अनंत रहेगी.
इसलिए महान योद्धा थे गुरु गोबिंद सिंह
वहीं एक योद्धा के रूप में गुरु गोबिंद सिंह ने अपना हर तीर पर एक तोला सोना लगवाया ताकि जो भी उनके तीर से घायल हो वो अपना इलाज करवा सके और अगर उसकी मौत हो जाती है तो उसका अंतिम संसकर हो सकें. तो वहीं एक एक गुरु के रूप में उन्होंने सिख गुरुओं के सभी उपदेशों को गुरु ग्रंथ साहिब में संगृहीत किया और भविष्य के लिए गुरु ग्रंथ साहिब को गुरु का दर्जा दे दिया. गुरु का काम होता है, अंधेरे से उजाले की ओर ले जाने वाला… एक गुरु के रूप में खालसा पंथ के लोगों को एक नई दिशा दी.
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