लोकसभा में केंद्र सरकार की ओर से दिल्ली सेवा बिल पेश किया गया था, जिसे विपक्षी पार्टियों के भारी विरोध के बीच पारित कर दिया गया. सरकार की ओर से दावा किया गया कि विधेयक में तमाम चीजें ठीक की गई है, जबकि काफी चीजों को हटाया भी गया है. इस विधेयक के पास होने के बाद से ही पूरे देश की राजनीति में बवाल मचा हुआ है. खासकर दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार अब आमने सामने आ गए हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद मोदी सरकार के खिलाफ उतर गए हैं. चलिए समझते हैं कि आखिर क्या है दिल्ली सेवा बिल, जिसे लेकर बवाल मचा हुआ है.
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दिल्ली सेवा बिल क्यों लेकर आई मोदी सरकार
दरअसल, दिल्ली में नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली एक्ट 1991 लागू है जो विधानसभा और सरकार के कामकाज के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है. साल 2021 में केंद्र सरकार ने इसमें संशोधन किया था, जिसमें दिल्ली में सरकार के संचालन, कामकाज को लेकर कुछ बदलाव किए गए थे. इसमें उपराज्यपाल को कुछ अतिरिक्त अधिकार भी दिए गए थे. संशोधन के मुताबिक, चुनी हुई सरकार को किसी भी फैसले के लिए एलजी की राय लेना जरूरी था. इसके बाद 11 मई को सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय पीठ ने इस मामले को लेकर फैसला सुनाया था, जिसमें दिल्ली सरकार को कई अधिकार दिए गए थे और उप राज्यपाल के अधिकार को सीमित कर दिया गया था.
इसके ठीक 1 हफ्ते बाद 19 मई को मोदी सरकार एक अध्यादेश लेकर आई और दिल्ली में प्रशासनिक अधिकारियों की तैनाती और तबादले का अधिकार उपराज्यपाल को दे दिया गया. इस अध्यादेश के तहत राष्ट्रीय राजधानी सिविल सर्विसेज अथॉरिटी का गठन किया गया और दिल्ली के मुख्यमंत्री, दिल्ली के मुख्यसचिव और गृह सचिव को इसका सदस्य बनाया गया.
ध्यान देने वाली बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पर जो फैसला सुनाया था, वह केजरीवाल सरकार के पक्ष में था. ऐसे में मोदी सरकार के सामने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने की चुनौती थी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उस कानून में संशोधन कर या नया कानून बनाकर ही पलटा जा सकता था. ऐसे में मोदी सरकार अध्यादेश लेकर आई. इसकी भी एक प्रक्रिया है. अगर सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए अध्यादेश लेकर आती है तो उसे 6 महीने के भीतर संसद के दोनों सदन में पास कराना होता है और अगर ऐसा नहीं होता तो वह अध्यादेश निरस्त हो जाता है.
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उस समय सदन चल नहीं रहा था, इसीलिए मंगलवार को सरकार लोकसभा में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023 (Delhi Ordinance Bill 2023) लेकर आई. आपको बता दें कि राज्यसभा में बिल पास होते ही कानून का रुप ले लेगा. इस बिल में नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली एक्ट में भी बदलाव किया गया है. एक बार फिर से उप राज्यपाल के हाथों में प्रशासनिक अधिकारियों के ट्रांसफर, पोस्टिंग की बागडोर दी गई है. अब केंद्र सरकार ही तय करेगी कि दिल्ली में किसी ऑफिसर का कार्यकाल क्या हो, उनकी सैलरी, ग्रेच्युटी से लेकर पीएफ तक के अधिकार अब केंद्र सरकार के दायरे में आ जाएंगे. ऐसे में आने वाले समय में दिल्ली में कुछ बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं.
केजरीवाल सरकार की शक्तियों पर क्या होगा असर ?
बताते चलें कि दिल्ली सेवा बिल के लागू होने के बाद अरविंद केजरीवाल को चिंता सताने लगी है. केजरीवाल सरकार की कुछ शक्तियों पर अब अंकुश लग जाएगा. केजरीवाल का प्रशासनिक नियंत्रण पर पहले भी नियंत्रण कम था लेकिन अब पूरी तरह से शून्य हो जाएगा. ध्यान देने वाली बात है कि केजरीवाल सरकार लंबे समय से दिल्ली की प्रशासनिक व्यवस्था को अपने अंडर में लाने का प्रयास कर रही थी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उनके विचारों को बल मिला था लेकिन अब केंद्र सरकार द्वारा लाया गया दिल्ली सेवा बिल ने इनके अरमानों पर पानी फेर दिया है. लोकसभा में दिल्ली सेवा बिल आसानी से पास हो गया है. अब राज्यसभा में इसे पेश किया जाना है. राज्य सभा में कौन इनके साथ आता है और कौन इनके विरोध में आता है, यह देखने वाली बात होगी.