ऐसा कहा जाता है कि बिहार की राजनीति में जातिवाद का
बोलबाला है. बिहार में अभी तक के
राजनीतिक समीकरण जाति को ध्यान में रखकर ही साधे गए हैं. आज भी जमीनी स्तर पर ‘वोट और जाति’ ही सर्वोच्च दिखाई देते हैं. लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि इसमें परिवर्तन
देखने को नहीं मिल सकता है और नीतीश कुमार के करीबी रह चुके चुनावी रणनीतिकार
प्रशांत किशोर बिहार की राजनीति को बदलने हेतु कुछ ऐसा ही प्रयास कर रहे हैं.
प्रशांत किशोर ने पूरे बिहार में जन सुराज यात्रा निकाली
है. वो राज्य के हर जिले में जा रहे हैं, वहां के लोगों से बातचीत कर रहे हैं,
उनके बीच बैठ रहे हैं, उनकी परेशानियां सुन रहे हैं और उनके सामने अपनी बातें रख
रहे हैं. साथ ही वो लोगों को इस दलदल से निकलने के उपाय भी बता रहे हैं यानी
प्रशांत किशोर लोगों के बीच बैठकर उनकी मुश्किलों को हल करने का उपाय बताकर अपनी
राजनीतिक सीढ़ियां बनाने की कोशिश कर रहे हैं. वह अपने भाषण में विकास की बात करते
हैं, राज्य से बेरोजगारी को हटाने की बात करते हैं. पढ़े लिखे लोगों को राजनीति
में लाने की बात करते हैं.
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उनकी रैलियों में जमकर भीड़ देखने को मिलती हैं, लोग
प्रशांत किशोर को सुनना पसंद करते हैं. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा भी है कि वो
बिहार में नई राजनीतिक व्यवस्था बनाना चाहते हैं क्योंकि पिछले 30-40 वर्षों से
कुछ नहीं बदला है. उनकी इन बातों में सच्चाई भी है. बिहार की जनता इस सच्चाई से
अवगत भी है और इससे बाहर निकलने का प्रयास भी करती है. लेकिन जब बात वोट देने की
आती है तो वोट देने का वहीं ‘पुरान ढर्रा’ चल पड़ता है.
इन सबके बावजूद बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर अपनी
छाप छोड़ने की पूरी तैयारी में लगे हुए हैं लेकिन बिहार में उनका व्यापक उदय कब
होगा और यह कितना संभव है, यह भविष्य के गर्भ में छिपा हुआ है. बिहार की जनता ने
अभी तक इस तरह की राजनीति नहीं देखी है. ऐसे में प्रशांत किशोर का जन सुराज
निश्चित तौर पर राज्य की राजनीति में कुछ
बदलाव लेकर आएगा लेकिन उसे राजनीतिक विकल्प कहना अभी जल्दीबाजी होगी.