कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 (Karnataka Assembly Election 2023) को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं. 29 मार्च को चुनाव आयोग ने राज्य में चुनाव कब होंगे, इसे भी क्लीयर कर दिया. कर्नाटक में विधानसभा चुनाव की तारीख 10 मई तय की गई है, जिसके परिणाम 13 मई को घोषित किए जाएंगे. मतदान की तारीख तय होने के साथ ही राजनीतिक दलों की धड़कने भी तेज हो गई है. बसवराज बोम्मई के नेतृत्व में भाजपा राज्य को एक बार फिर से भगवामय करने को तैयार है. तो वहीं, कांग्रेस पार्टी इस बार कर्नाटक में कोई कसर नहीं छोड़ने वाली है. साथ ही एचडी कुमारास्वामी के नेतृत्व में जेडीएस और केसीआर की पार्टी बीआरएस गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं.
इनके अलावा आम आदमी पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की पार्टी AIMIM अकेले ही चुनावी समय में उतरने की तैयारी में है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस और जेडीएस ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था और सरकार बनाई थी लेकिन इस बार दोनों पार्टियों की राहें जुदा हैं. लेकिन सवाल यही है कि आखिर कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 में पलड़ा किसका भारी रहेगा? कर्नाटक में किसकी वापसी होगी? कर्नाटक का जातीगत समीकरण क्या है और राजनीतिक पार्टियां उन्हें कैसे साधने का काम करेंगी? क्या भाजपा राज्य में वापसी कर पाएगी या कांग्रेस बाजी मार ले जाएगी? इन सारे प्रश्नों के उत्तर आपको इस लेख में मिल जाएंगे.
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कर्नाटक का जातीय समीकरण
2011 की जनगणना के अनुसार, कर्नाटक की कुल जनसंख्या 6.11 करोड़ है. इनमें सबसे ज्यादा हिन्दू 5.13 करोड़ यानी 84 फीसदी हैं. इसके बाद मुस्लिम हैं जिनकी जनसंख्या 79 लाख यानी 12.91 फीसदी है. राज्य में ईसाई 11 लाख यानी लगभग 1.87 फीसदी हैं और जैन जनसंख्या 4 लाख यानी 0.72 फीसदी है. राज्य में लिंगायत सबसे बड़ा समुदाय है. इनकी जनसंख्या करीब 17 फीसदी है. इसके बाद दूसरा सबसे बड़ा समुदाय वोक्कालिगा है, जिसकी आबादी 12 फीसदी हैं. राज्य में कुरुबा 8 फीसदी, एससी 17 फीसदी, एसटी 7 फीसदी हैं. लिंगायत समाज को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है.
कर्नाटक में भाजपा की स्थिति
दरअसल, कर्नाटक में 224 विधानसभा सीटें हैं और किसी भी पार्टी को बहुमत के लिए 113 सीटें जीतनी होंगी. राज्य में मौजूदा समय में बसवराज बोम्मई के नेतृत्व में भाजपा की सरकार है. हालांकि, कर्नाटक चुनाव 2018 में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन ने चुनाव में जीत हासिल किया था और एचडी कुमारास्वामी के नेतृत्व में सरकार बनाई थी. लेकिन गठबंधन के करीब 2 दर्जन विधायकों ने पद से इस्तीफा दे दिया और भाजपा में शामिल हो गए. कुमारास्वामी की सरकार अल्पमत में आ गई. उन्हें सीएम के पद से इस्तीफा देना पड़ा और इस तरह राज्य में भाजपा की वापसी हो गई. बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में 2019 में भाजपा की सरकार बनी लेकिन भ्रष्टाचार के आरोप और कर्नाटक भाजपा में अंदरुनी कलह के कारण जुलाई 2021 में येदियुरप्पा को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था. जिसके बाद पार्टी ने बसवराज बोम्मई को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया और आगामी चुनाव में उन्हीं के चेहरे पर पार्टी चुनावी समर में भी उतर रही है.
कर्नाटक में येदियुरप्पा भाजपा के ऐसे इक्के हैं, जो अपने दम पर राज्य की राजनीति को बदलने की काबिलियत रखते हैं. राज्य के सबसे अधिक जनसंख्या वाले समुदाय लिंगायत में उनकी काफी पकड़ है, वह स्वयं लिंगायत समुदाय से भी आते हैं. यही नहीं, कर्नाटक में लिंगायत समुदाय ही किंगमेकर की भूमिका निभाते रही है. ऐसे में जब येदियुरप्पा को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा तो राज्य में काफी बवाल देखने को मिला था. लिंगायत समुदाय के लोग सड़कों पर दिखे थे. उसके बाद भाजपा ने दांव खेलते हुए बसवराज बोम्मई को सीएम बना दिया, जो लिंगायत समुदाय से ही आते हैं. लेकिन राज्य की राजनीति में उनकी पकड़ येदियुरप्पा के आगे नगण्य है. वहीं, कर्नाटक भाजपा में अंदरुनी कलह भी किसी से छिपी नहीं है. कई बारे आपने भाजपा विधायकों को दिल्ली में आकर शिकायत करते हुए भी देखा होगा. इसके साथ ही केंद्रीय नेतृत्व और बसवराज बोम्मई की तल्खी भी हमने देखी है.
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हाल ही में कुछ महीने पहले जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने कर्नाटक में एक रैली को संबोधित करते हुए अमूल और सुरभि ब्रांड को एकसाथ मिलकर काम करने की सलाह दी थी, तो राज्य के कई हिस्सों में इसे कर्नाटक का अपमान बताया गया था. यहां तक कि स्वयं बसवराज बोम्मई इस मुद्दे पर अमित शाह के बयान के विपरीत खड़े दिखाई दिए. इसके अलावा भी राज्य सरकार के कई मुद्दे और बयान भाजपा केंद्रीय नेतृत्व से परे दिखाई दिए हैं. कर्नाटक भाजपा विधायकों की गुटबाजी भी हमें देखने को मिली है, वो भी कई हिस्सों में बंटे हुए हैं. कहा जाता है कि सीएम पद से हटने के बावजूद येदियुरप्पा का समर्थन करने वाले विधायकों की संख्या, बसवराज बोम्मई को समर्थन देने वाले विधायकों से अधिक है. भाजपा भी इस चीज को समझ रही है और कहीं न कहीं इसी कारण से बीएस येदियुरप्पा के कंधों पर कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 की जिम्मेदारी सौंपी गई है.
क्या कांग्रेस पार्टी उठा पाएगी लाभ?
कर्नाटक में भाजपा के लिए चीजें आसान नहीं है लेकिन उसके साथ ही सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि कर्नाटक में भाजपा नहीं तो कौन? हालांकि, लोग कांग्रेस को विकल्प के रूप में देख रहे हैं. कई ओपिनियन पोल में भी कांग्रेस को ऊपर दिखाया गया है. लेकिन अगर कर्नाटक में कांग्रेस की स्थिति को देखा जाए तो पार्टी अब 3 खेमे में बँटी हुई है. पहले राज्य कांग्रेस में 2 ध्रुव थे. एक डीके शिवकुमार और दूसरे सिद्धारमैया लेकिन कर्नाटक के दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद अब राज्य में 3 ध्रुव नजर आते हैं. वहीं, सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच की तल्खी भी काफी पहले से ही सार्वजनिक है. कांग्रेस इस बार राज्य में अपने दम पर चुनाव लड़ रही है, जबकि 2018 में उसे JDS का साथ मिला था.
मौजूदा समय में डीके शिवकुमार (DK Shivkumar) कर्नाटक कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे हैं, जो वोक्कालिगा समुदाय से आते है. उनके मन में भी राज्य की बागडोर संभालने की महत्वाकांक्षा हिलोरे ले रही है. दूसरी ओर कांग्रेस की ओर से कर्नाटक के सीएम रह चुके सिद्धारमैया फिर से राज्य का सीएम बनना चाहते हैं. राज्य में कांग्रेस के नेता और यहां तक कि कार्यकर्ता भी गुटों में बंटे हुए हैं. ऐसे में टूटी-बिखरी कांग्रेस पार्टी कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 में कितना असर डाल पाएगी, यह भविष्य के गर्भ में छिपा हुआ है. अब आपके मन में सवाल होगा कि ओपनियिन पोल में कांग्रेस की सरकार बनते दिखाया गया है, उसका क्या?
तो उसके पीछे का गणित ये हो सकता है कि हाल ही में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) पर ऐसी कार्रवाई हुई है, जिसकी संभावना ही नहीं थी. उस कार्रवाई के बाद से ही कांग्रेस काफी एक्टिव हो गई है. राज्य से लेकर केंद्रीय नेतृत्व तक कांग्रेस अलग अंदाज में दिख रही है. ऐसे में इस बात की संभावना हो सकती है कि राहुल गांधी पर हुई कार्रवाई से सहानुभूति और कांग्रेस के एग्रेशन को लेकर ऐसा अंदेशा लगाया गया हो. वहीं, दूसरी ओर चर्चा यह भी है कि एच डी कुमारस्वामी के नेतृत्व में क्षेत्रीय पार्टी जेडीएस भाजपा और कांग्रेस का खेल खराब न कर दे. हालांकि, इसकी भी संभावना कम ही है.
JDS कितना असर डाल पाएगी?
कर्नाटक की राजनीति में JDS के पकड़ को नकारा नहीं जा सकता है. एचडी देवेगौड़ा ने पार्टी को जमीनी स्तर पर काफी मजबूत कर रखा था लेकिन जब से कुमारस्वामी के हाथ में चीजें आईं, पार्टी की पकड़ ढीली पड़ती दिखी है. हालांकि, कांग्रेस+जेडीएस गठबंधन ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 में जीत हासिल की थी और एच डी कुमारस्वामी सीएम बने थे लेकिन वो गठबंधन को एकजुट रखने में नाकाम साबित हुए. इसका नतीजा यह हुआ कि भाजपा ने उनके विधायकों को तोड़ते हुए येदियुरप्पा के नेतृत्व में सरकार बना लिया.
वहीं, कुमारस्वामी के ऐसे ऐसे बयान सामने आए, जो ‘कार्यकर्ताओं’ वाले थे. यानी अपनी पकड़ और पार्टी की पहचान को धूमिल करने में कुमारस्वामी सबसे आगे रहे. मौजूदा समय में पार्टी केसीआर की पार्टी BRS के साथ चुनावी समर में है. ऐसा हो सकता है कि एक सीमित क्षेत्र में जेडीएस अपने विधायकों की संख्या बढ़ा ले लेकिन इस बात की संभावना बनती नहीं दिख रही है कि यह गठबंधन सरकार बनाने में कामयाब हो पाएगा. क्योंकि राज्य की सियासत में इस बार की लड़ाई सीधे तौर पर भाजपा और कांग्रेस के बीच दिख रही है. ऐसे में वोक्कालिगा से आने वाले कुमारस्वामी क्या असर डाल पाएंगे, यह भविष्य के गर्भ में छिपा हुआ है. हालांकि, भाजपा या कांग्रेस की सीटें कम पड़ती है तो कुमारस्वामी किंग मेकर की भूमिका भी निभाते हुए दिख सकते हैं.
विधानसभा चुनाव 2018 में क्या थी स्थिति
अगर हम कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 (Karnataka Assembly Election 2018) की बात करें तो उस चुनाव में राज्य की 224 में से 222 विधानसभा सीटों पर मतदान हुआ था. जिसमें भाजपा ने 104 सीटों पर जीत हासिल की थी. कांग्रेस को 78 और जेडीएस+ को 39 सीटें मिली थीं. ऐसे में कांग्रेस और जेडीएस+ ने एक साथ आकर कुमारस्वामी के नेतृत्व में सरकार बनाई थी. लेकिन सरकार बनाने के एक से डेढ़ वर्ष बाद क्या खेल हुआ, आप बेहतर जानते हैं. ऐसे में अब कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं, माहौल बनाया जा रहा है, अपने आप को सर्वस्व दिखाने का प्रयास किया जा रहा है. इस पूरे खेल का फाइनल रिजल्ट 13 मई को सार्वजनिक हो जाएगा.
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