राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के राजनीतिक भविष्य को लेकर अब कई तरह के सवाल सामने आ रहे हैं. वह उठेंगे या अब गुमनामी में चले जाएंगे, इसे लेकर भी चर्चा हो रही है. हालांकि, राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द किए जाने के बाद जिस तरह से कांग्रेस की प्रतिक्रिया सामने आ रही है, उससे यह प्रतीत होता दिख रहा है कि राहुल गांधी और एग्रेशन के साथ सामने आएंगे. लेकिन अगर हम कांग्रेस की राजनीतिक इतिहास को देखें तो हमने कई बार देखा है कि कांग्रेस पार्टी किसी भी मुद्दे पर 2 दिन सवाल उठाने और प्रदर्शन करने के बाद ढ़ीली पड़ जाती है.
यानी पार्टी के तमाम नेता जल्द ही किसी भी मसले पर चुप्पी साध लेते हैं या फिर सत्ता पक्ष द्वारा पकड़ाए गए ‘लॉलीपप’ के बहाव में बह जाते हैं. लेकिन इस बार मसला कांग्रेस के इकलौते चश्मोचिराग राहुल गांधी का है, ऐसे में ये हो सकता है कि कांग्रेस पार्टी (Congress) जल्द इस मसले पर चुप न हो. लेकिन राहुल गांधी पर हुए इस एक्शन से कांग्रेस का काफी कुछ दांव पर लगा हुआ है. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, आगे लेख में आपको पता चलेगा.
और पढ़ें: क्या राहुल गांधी की 150 दिनों की मेहनत पर भाजपा ने पानी फेर दिया?
एकजुट दिख रहा है विपक्ष
दरअसल, सूरत कोर्ट ने 2019 के एक मामले में राहुल गांधी को 2 साल की सजा सुनाई. उसके बाद अगले ही दिन लोकसभा सचिवालय की ओर से उनकी सदस्यता रद्द करने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया. हालांकि, सभी को इस बात का आभास था कि राहुल गांधी की सदस्यता जानी ही है लेकिन उन पर एक्शन इतनी जल्दी होगी, यह किसी ने नहीं सोचा था. उस दिन राहुल गांधी सुबह सुबह संसद भी पहुंचे थे और कांग्रेस के संसदीय दल की बैठक में हिस्सा भी लिया था लेकिन दोपहर तक लोकसभा सचिवालय ने नोटिफिकेशन जारी कर दिया और पलभर में राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म हो गई.
राहुल गांधी की सदस्यता रद्द किए जाने के तुरंत बाद देश के कई हिस्सों में कांग्रेस का प्रदर्शन देखने को मिला. कई राज्यों में ट्रेने भी रोकी गईं. कांग्रेस के कई नेताओं ने इसके लिए मोदी सरकार को जमकर लताड़ा. वहीं, अन्य विपक्षी पार्टियों ने भी इस मसले पर कांग्रेस का साथ दिया और राहुल गांधी पर हुए एक्शन के विरोध में मोदी को कठघरे में खड़ा किया. उसके बाद से ही यह चर्चा होने लगी कि अब विपक्षी पार्टियों के पास एकजुट होने के अलावा अन्य कोई भी विकल्प नहीं है. ऐसी तमाम खबरें भी सामने आ रही हैं कि अब विपक्ष पूर्ण रुप से एकजुट होकर भाजपा का मुकाबला करेगा.
समझौता ही एकमात्र विकल्प
हालांकि, पिछले कुछ महीनों में हमने कई बार विपक्षी एकजुटता का ढ़ोल भी फटते देखा है लेकिन इस बार मामला थोड़ा गंभीर है. लेकिन सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री बनने का स्वप्न पाले हुए गैर कांग्रेसी नेता कांग्रेस का साथ देंगे? अगर साथ देंगे भी तो कब तक देंगे क्योंकि नीतीश कुमार (Nitish Kumar), अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal), एमके स्टालिन (MK Stalin), के चंद्रशेखर राव (KCR), ममता बनर्जी (Mamata Banerjee)….समेत अन्य भी कई नेताओं को पीएम ही बनना है! क्या ये राजनीतिक पार्टियां राहुल गांधी के नेतृत्व में आगे बढ़ेंगी? क्या ये राहुल गांधी को अब पीएम मैटेरियल मान पाएंगे? इन सबका जवाब है- नहीं. क्योंकि मौजूदा समय में राहुल गांधी कांग्रेस के एक आम नेता के अलावा कुछ नहीं हैं. उनके पास गांधी परिवार में पैदा होने का टैग है और यह कुछ हद तक फायदेमंद हो सकता है लेकिन कब तक? ऐसे में कांग्रेस के पास एक ही विकल्प है, समझौता.
और पढ़ें: एक माफी से बच सकती थी राहुल गांधी की सदस्यता! मानहानि के मामले में पहले तीन बार मांग चुके हैं माफी
कांग्रेस के पास नहीं है विकल्प
अगर सभी चीजों का साइड कर कांग्रेस पार्टी, भाजपा और पीएम मोदी (PM Modi) को टक्कर देने की प्लानिंग कर रही है तो उसे विपक्षी पार्टियों को जोड़े रखना होगा. क्योंकि देश में अब कांग्रेस अपने दम पर अधिकतर राज्यों में कुछ नहीं कर सकती है. हालांकि, यह तब संभव है जब कांग्रस पार्टी राहुल गांधी में अपना पीएम चेहरा देखना छोड़ दे और विपक्षी पार्टियों की ओर से जो भी चेहरा चुना जाए, उसे लेकर आगे बढ़े. क्योंकि भले ही सामने से चीजें कांग्रेस को अपने पक्ष में दिख रही हो लेकिन जब बात कुर्सी की आती है, तो भाई भाई को पछाड़ने में नहीं चूकता और यहां तो एक निष्कासित सांसद की बात है.
विपक्षी पार्टियां पहले भी कांग्रेस को अलग कर थर्ड फ्रंट बनाने की बात कर रही थी, ऐसे में अब कांग्रेस को उनका साथ चाहिए तो उनके पीछे चलने के अलावा पार्टी के पास अन्य कोई विकल्प नहीं है. कांग्रेस को अपना आत्मसम्मान ताक पर रखकर फैसला लेना होगा, वरना स्थिति ढाक के तीन पात जैसी ही रहेगी.