अपने जीवन काल में लिए थे कुछ बड़े फैसले
जाने वाले हमेशा चले ही जाते है, पर उनके किये हुए कुछ काम यहीं पर रह जाते हैं। कुछ इसी तरह मुलायम सिंह यादव के मृत्यु पश्चात भी हो रहा है। समाजवादी पार्टी प्रमुख और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव अब हमारे बिच नहीं रहे, लेकिन उनके द्वारा लिए गए कुछ अहम फैसले लम्बे समय तक भारत की राजनीति पर अपना छाप जरूर रखेगी। मुलायम सिंह ने वैसे तो अपने जीवन काल में कई निर्णायक फैसले लिए हैं, पर उनके कुछ ऐसे फैसले भी हैं जो भारतीय राजनीति में लम्बे समय तक याद की जाती रहेगी।
पहलवानी के शौक़ीन बने शिक्षक
सिंह को जवानी के दिनों में पहलवानी का शौक़ था तथा वह राजनीति में सक्रिय होने से पहले शिक्षक हुआ करते थे। समाजवादी पार्टी के संस्थापक और तीन बार उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के मुख्यमंत्री, मुलायम सिंह यादव, 1970 के दशक के बाद तीव्र सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल के दौर में उत्तर प्रदेश की राजनीति में में आये। मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी राजनेता राम मनोहर लोहिया के विचारों से प्रभावित होक राजनीतिक में कदम रखा था। जिसके बाद उन्होंने अपने इस सफ़र में पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों के हित की अगुवाई कर राजनीति में अपनी पुख्ता ज़मीन तैयार की। आज हम बात करेंगे मुलायम सिंह के उन फैसलों के बारे में जिससे उत्तर प्रदेश और देश की राजनीती में बड़ा बदलाव आया।
सिंह के लिए खुद की पार्टी साबित हुई मिल का पत्थर
मुलायम सिंह यादव ने अपनी शुरूआती राजनीतिक करीयर में सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर सबसे कम उम्र में विधायक बन दमदार तरीक़े से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। 1967 में उन्हें सोशलिस्ट पार्टी की तरफ से टिकट मिला था। 1992 में मुलायम सिंह ने जनता दल से अलग, खुद की एक अलग पार्टी बनाई जिसका नाम उन्होंने समाजवादी पार्टी रखा। उस समय तक पिछड़ी जातियों और अल्प संख्यकों के बीच वो खासे लोकप्रिय हो गए थे। नई पार्टी बनाना सिंह के लिए एक निर्णायक और बड़ा फैसला साबित हुआ। यह फैसला मुलायम सिंह की राजनीतिक जीवन के लिए मिल का पत्थर साबित हुआ, क्यूंकि इसके बाद सिंह तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, जबकि दूसरी तरफ केंद्र सरकार में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई। मुलायम सिंह यादव को इसके बाद राजनीतिक खेल का एक मांझा हुआ खिलाड़ी माना जाने लगा।
रथ यात्रा के दौरान कार सेवकों पर चलवाई थी गोलियां
मुलायम सिंह 1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। केंद्र में वीपी सिंह की सरकार के पतन के बाद मुलायम ने चंद्रशेखर की जनता दल (समाजवादी) के समर्थन से अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाई रखी। लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा जब अयोध्या पहुंची और मंदिर के लिए आंदोलन तेज़ हुआ, तो कार सेवकों पर साल 1990 में उन्होंने गोली चलाने का आदेश दिया। इस गोली कांड में एक दर्जन से ज्यादा कार सेवक मारे गए थे। इस बारे में बाद में मुलायम सिंह ने बात करते हुए कहा था कि ये फ़ैसला उनके लिए कठिन था, लेकिन उनके राजनीतिक जीवन में इसका उन्हें लाभ हुआ था। इसके बाद उनके विरोधियों ने उन्हें ‘मुल्ला मुलायम’ का नाम दे दिया था।
कांग्रेस को परमाणु समझौते पर दिया था अपना समर्थन
मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार साल 2008 में वामपंथी दलों के समर्थन वापस लेने से अमरीका के साथ परमाणु करार को लेकर संकट से घिरी हुई थी। ऐसे बुरे वक़्त में मुलायम सिंह ने मनमोहन सरकार को बाहर से समर्थन दिया था। राजनीतिक जानकारों का कहना था कि उनका ये क़दम समाजवादी सोच से अलग था और व्यावहारिक उद्देश्यों से ज़्यादा प्रेरित था। मुलायम सिंह के इस समर्थन के कारण उस समय कांग्रेस सरकार बच गई थी।
ओबीसी आरक्षण को 15 फीसदी से बढ़ाकर कर दिया था 27 फीसदी
1993 के चुनावों के बाद मुलायम सिंह दूसरी बार मुख्यमंत्री बने थे, जिसमें ओबीसी और एससी के साथ ने भाजपा को उस समय सत्ता से बाहर रखा था। हालांकि उस चुनाव के समय भाजपा सरकार को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के कारण चार राज्यों से बर्खास्त कर दिया गया था। उसी समय मुलायम सिंह सरकार ने मंडल आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ओबीसी आरक्षण को 15 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया था। लेकिन मुलायम सिंह के इस फैसले से विपक्ष ने उन्हें अपराधियों को बचाने और अपने परिवार के सदस्यों को राजनीति में बढ़ावा देने वाला सरकार बताया था।
समाजवादी पार्टी को दे दिया था राजनीतिक भविष्य
2012 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 403 में से 226 सीटों पर अपना कब्ज़ा जमाने के बाद, रताजनीतिक गलियारे में यह कयास लगाया जा रहा था की मुलायम सिंह ने अपने आलोचकों को जवाब देने के लिए एक बार फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे। इस बार मुलायम सिंह यादव ने सतरंज की खेल में अपनी चाल को बदलते हुए इस बार ऐसा नहीं किया। उन्होंने समाजवादी पार्टी को राजनीतिक भविष्य देते हुए अपने पुत्र अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बना दिया। मुलायम सिंह यादव का यह फैसला उनके भाइयों पर बिजली की तरह गिरा। ख़ास कर शिवपाल यादव पर जो खुद को मुलायम के बाद उनका उत्तराधिकारी समझ रहे थे और खुद को मुख्यमंत्री पद का स्वाभाविक हक़दार मान कर चल रहे थे।
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