कर्नाटक चुनाव में मिली जीत के बाद कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के लिए डी के शिवकुमार और सिद्धारमैया के बीच कड़ी टक्कर रही और आखिर तक तय नहीं हो पा रहा था कि आखिर किसको मुख्यमंत्री बनाया जाएगा. जिसके चलते 5 दिनों तक अटकलें चलती रही कि आखिर कर्नाटक का मुख्यमंत्री कौन होगा. और आखिरकार 18 मई को सिद्धारमैया के नाम पर मुहर लगा दी गई. हालांकि कांग्रेस के इस फैसले से डीके शिवकुमार को पूरी तरह से नुकसान नहीं हुआ है.
कांग्रेस ने सत्ता साझा करने के लिए उन्हें डिप्टी सीएम बनाया है, लेकिन कांग्रेस ने सीएम पद के लिए रोटेशनल फॉर्मूले की कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की. यह पहली बार नहीं है जब कांग्रेस में सीएम पद के लिए एक प्रमुख दावेदार को झटका लगा हो. आइए जानते हैं कि कांग्रेस शासित राज्यों में वे कौन से चेहरे हैं, जो सीएम बनते-बनते रह गए.
हिमाचल में प्रतिभा सिंह
हिमाचल प्रदेश में पिछले साल कांग्रेस ने बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर दिया. जिसके बाद संभावित सीएम उम्मीदवारों के कई नाम सामने आए. इनमें वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह का नाम सबसे आगे था. प्रतिभा सिंह ने तब यह तर्क दिया कि कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव जीतने के लिए अपने दिवंगत पति के नाम का इस्तेमाल किया है.
उन्होंने बार-बार मुख्यमंत्री चुने जाने के लिए अपने नाम की पैरवी की. पिछले साल शिमला में कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) की बैठक के दौरान प्रतिभा के समर्थकों ने भी उनके समर्थन में नारेबाजी की और उन्हें मुख्यमंत्री बनाने तक की मांग की. हालांकि, कांग्रेस आलाकमान ने हिमाचल के सीएम के रूप में सुखविंदर सिंह सुक्खू के नाम पर मुहर लगा दी. बाद में प्रतिभा सिंह ने अपने जख्तों को छिपाते हुए कहा कि उन्हें कांग्रेस आलाकमान का फैसला स्वीकार है.
छत्तीसगढ़ में टीएस सिंह देव
छत्तीसगढ़ में 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद भूपेश बघेल को सीएम बनाया गया था. हालांकि, राज्य में टीएस सिंह देव, ताम्रध्वज साहू और चरण दास महंत समेत कई नेताओं के नामों की भी चर्चा चल रही थी. इन सब में सबसे बड़े दावेदार टीएस सिंहदेव थे. हालांकि कुछ समय बाद, देव और बघेल के बीच दरार बढ़ गई. 2022 में टीएस सिंह देव ने कहा था कि वह ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के कामकाज से असंतुष्ट हैं.
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उन्होंने भूपेश बघेल मंत्रिमंडल में उन्हें मिले पांच विभागों में से एक पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग से भी इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने बघेल को लिखे पत्र में कहा था कि वह जनघोषणा पत्र (चुनाव घोषणा पत्र) के अनुसार काम नहीं कर सकते. उन्होंने कहा था कि उन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के तहत धन आवंटित करने का अनुरोध किया था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू
कैप्टन अमरिंदर सिंह के 2021 में कांग्रेस से बाहर निकलने के साथ ही पंजाब में सीएम का पद खाली हो गया. इसके बाद सीएम पद के लिए नवजोत सिंह सिद्धू और सुखजिंदर रंधावा के नाम की चर्चा शुरू हो गई. ऐसे में लंबे समय से सीएम की सीट पर सिद्धू नजर गड़ाए बैठे हुए थे. सिद्धू के सीएम बनने में भी कोई रुकावट नजर नहीं आ रही थी, लेकिन लोग तब हैरान रह गए जब कांग्रेस ने दलित-सिख चेहरे चरणजीत सिंह चन्नी को इस पद के लिए चुन लिया.
2022 के पंजाब विधानसभा चुनावों में सिद्धू और चन्नी को फिर से सीएम के संभावित रूप में देखा गया लेकिन चन्नी ने फिर से यह दौड़ जीत ली और कांग्रेस ने उन्हें सीएम उम्मीदवार घोषित कर दिया. हालांकि उन्हें सीएम पद पर बैठने का मौका नहीं मिला क्योंकि AAP यह चुनाव जीत गई और भगवंत मान प्रदेश के नए सीएम बन गए.
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कर्नाटक में डीके शिवकुमार
कर्नाटक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की भारी जीत के बाद पार्टी आलाकमान ने लंबी चर्चा के बाद 18 मई को सिद्धारमैया को सीएम के रूप में घोषित किया. 75 वर्षीय नेता कर्नाटक में दूसरी बार सीएम पद की शपथ लेंगे. कर्नाटक कांग्रेस के प्रमुख डीके शिवकुमार ने उन्हें सीएम की रेस में बराबर की टक्कर दी थी, लेकिन वह कांग्रेस के संकटमोचक सिद्धारमैया से हार गए. कनकपुरा सीट पर भारी जीत के बावजूद डीके शिवकुमार की शीर्ष पद पाने की उम्मीद अधूरी रह गई. हालांकि राज्य में पावर शेयरिंग फॉर्मूले की खबरें हैं, जो शिवकुमार को बाद में सीएम बना सकते हैं, लेकिन कांग्रेस आलाकमान की तरफ से इसको लेकर कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है. शिवकुमार और सिद्धारमैया दोनों ने हाल ही में सरकार गठन पर चर्चा करने के लिए कांग्रेस नेतृत्व से मुलाकात की थी.
शिवकुमार ने खुद को सीएम बनाने की अपनी मांग पर जोर दिया था. उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से यहां तक कह दिया था कि अगर उन्हें सीएम पद नहीं दिया गया तो वह पार्टी में विधायक के रूप में ही काम करना पसंद करेंगे. उन्होंने खड़गे से यह भी कहा था कि मुख्यमंत्री के रूप में सिद्धारमैया का कार्यकाल (2013 से 2018) एक कुशासन था. उन्होंने कहा कि लिंगायत समुदाय उनके खिलाफ था. इन सबके बाद भी सिद्धारमैया फिर से सीएम पद हथियाने में कामयाब रहे.
हिमंत बिस्वा सरमा और सिंधिया ने छोड़ी पार्टी
इसी तरह हिमंत बिस्वा सरमा और ज्योतिरादित्य सिंधिया का मामला था. दोनों नेताओं ने ही सीएम पद न मिलने के बाद असंतुष्ट होकर कांग्रेस छोड़कर बीजेपी जॉइन कर ली थी. कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 2018 में एमपी विधानसभा चुनावों की अगुवाई में कांग्रेस के लिए जोरदार प्रचार किया था. कांग्रेस की जीत के बाद कांग्रेस ने सीएम के लिए कमलनाथ को चुना, लेकिन कमलनाथ अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. सिंधिया ने कांग्रेस के 22 विधायकों के साथ इस्तीफा देने दिया और वे बीजेपी में चले गए. इसके बाद कमलनाथ को सीएम पद छोड़ना पड़ गया था. 2011 में कांग्रेस के अभियान का सफलतापूर्वक नेतृत्व करने के बाद हिमंत सीएम बनना चाहते थे. उन्हें तत्कालीन सीएम तरुण गोगोई के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता था, लेकिन तरुण गोगोई के बेटे गौरव गोगोई के आगमन ने उन्हें सत्ता सौंपने में बाधा डाल दी.
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असम में नेतृत्व में बदलाव के लिए हिमंत ने कांग्रेस आलाकमान से कई अनुरोध किए लेकिन उन्हें अनसुना कर दिया गया. उन्होंने “परिवार केंद्रित” राजनीति का हवाला देते हुए जुलाई 2014 में गोगोई मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने खुलासा किया था कि उन्होंने कांग्रेस के तत्कालीन उपाध्यक्ष राहुल गांधी को सूचित किया था कि 79 में से 52 विधायकों ने गोगोई को हटाने की मांग की थी. बाद में हिमंत बीजेपी में शामिल हो गए. 2016 के विधानसभा चुनावों के लिए उन्होंने बीजेपी के लिए प्रचार किया. उस समय असम में बीजेपी सत्ता में आई और सर्बानंद सोनोवाल को सीएम बनाया गया. इस बीच हिमंत की लोकप्रियता बढ़ गई. पार्टी ने उनकी मेहनत के कारण उन्हें 2021 में असम का सीएम बना दिया.
राजस्थान में सचिन पायलट
राजस्थान कांग्रेस में चल रही अंदरूनी कलह ने आगामी विधानसभा चुनाव से पहले आलाकमान के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है. सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच तनातनी अपने चरम पर पहुंचती जा रही है. पायलट ने 15 मई को पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों पर कार्रवाई करने के लिए अशोक गहलोत को 15 दिन का अल्टीमेटम दिया था. ऐसा न करने पर राज्यव्यापी विरोध-प्रदर्शन शुरू करने की धमकी दी. हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब कांग्रेस के दोनों नेताओं के बीच तल्खी सामने आई हो. 2018 में पायलट शीर्ष पद की दौड़ में थे, लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने अशोक गहलोत को सीएम और पायलट को डिप्टी बना दिया था.
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तभी से दोनों के बीच तनाव की स्थिति बनी हुई है. मतभेद गहराने के कारण अब यह कयास लगाए जा रहे हैं कि पायलट कांग्रेस छोड़ सकते हैं. नवंबर 2022 में अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को ‘गदर’ (देशद्रोही) तक कह दिया था. उन्होंने कहा था कि उनके जैसा कोई व्यक्ति कभी राजस्थान का सीएम नहीं बन सकता. गहलोत ने एक समाचार पोर्टल को यह भी बताया था कि पायलट उन्हें सीएम के रूप में रीप्लेस करने में सक्षम नहीं थे क्योंकि उन्होंने 2020 में कांग्रेस के खिलाफ विद्रोह कर दिया था और सरकार गिराने की कोशिश की थी.