15 मार्च 1934 को पंजाब में जन्मे कांशीराम को हम राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक के तौर पर जानते है, उन्होंने भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की राजनीति की दशा ही बदल दी थी, कांशीराम ने गाय, गीता और गंगा की संस्कृति में बंधे उत्तर प्रदेश को उनकी पहली दलित महिला मुख्यमंत्री से मिला. उन्होंने हिन्दुवादी राज्य में अम्बेडकर की विचारधारा ऐसी फैलाई की पूरा देश देखकर दंग रह गया था. इन्होने उत्तर प्रदेश के दलितों का जीवन आसन बनाया, सब उनके काम करने के तरीके को देख कर सब हैरान होते थे कि एक दलित और गरीब परिवार के लड़ने ने एक खुद की पार्टी बना कर, बीजेपी जैसी पार्टी को हरा दिया था. कांशीराम अपने अपने जीवन में बाबा साहेब और फूले को बहुत मानते थे, उनके कदमों पर चलाकर दलित समाज के लिए कुछ करना कहते थे, जिसके कारण आगे चलकर उन्हें कुछ प्रतिज्ञाएँ भी ली थी.
दोस्तो, आईये आज हम आपको दलितों के मसीहा कांशीराम की उन 7 प्रतिज्ञाओं के बारे में बताएंगे जो उन्होंने ली थी.
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कांशीराम को दलितों और पिछड़े वर्ग का मसीहा कहा जाता है. क्यों कि उन्होंने जीवनभर पिछड़े वर्ग के लोगो को उनका हक दिलाने के लिए संघर्ष किया था. वह दलितों को उनका अधिकार दिलाना चाहते थे. वह बाबा साहेब को बहुत मानते थे, जिनके कदमो पर चलकर वह दलित समाज का उधार करना चाहते थे. कांशीराम ने अपनी खुद की पार्टी बना, एक दलित महिला को देश के उच्च पद तक भी पहुंचा दिया था.
सन 2002 में, कांशीराम जी ने 14 अक्टूबर 2006 को बाबा साहेब के धर्म परिवर्तन की 50 साल पूरे होने पर बौद्ध धर्म ग्रहण करने की घोषणा की थी. कांशीराम ने अनुरोध किया था कि उनके साथ उनके 5 करोड़ समर्थक भी इसी समय धर्म परिवर्तन करें. कांशीराम की धर्म परिवर्तन की इस योजना का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा यह था कि उनके समर्थकों को केवल दलित या पिछड़े वर्ग ही शामिल नहीं थे बल्कि विभिन्न जातियों के लोग भी शामिल थे. लेकिन 9 अक्टूबर 2006 को उनका निधन हो गया और उनकी बौद्ध धर्म ग्रहण नहीं कर पाएं , लेकिन उन्होंने काफी वर्ष पहले गौतम बौद्ध की तरह कुछ प्रतिज्ञां ली थी.
कांशीराम की 7 प्रतिज्ञाएं
- कभी घर नहीं जाऊंगा.
- अपना घर नहीं बनाऊंगा.
- गरीबों और दलितों के ही घर हमेशा रहूँगा.
- रिश्तेदारों से मुक्त रहूँगा.
- शादी और श्राधो जैसे समाहरोह में शामिल नहीं होऊंगा.
- कहीं पर नौकरी नहीं करूंगा.
- फुले और अम्बेडकर के सपनों को पूरा होने तक चैन से नहीं बठुंगा.
इन प्रतिज्ञाओं का कांशीराम ने जीवनभर पालन भी किया था, एक बार कांशीराम के पिता भी उनका भाषण सुनने के लिए आए थे, उनके पिता ने कांशीराम से मिलने की भावना जताई थी, लेकिन उस समय भी कांशीराम अपने पिता से नहीं मिले थे, और जब उनके पिता का देहांत हुआ था, जब भी कांशीराम अपने घर नहीं गए थे.
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