1891 में, महार जाति में जन्मे बाबा साहेब को हम दलितों के मसीहा के रूप में जानते है. उस समय महार जाति को अछूत मानते थे, जिस कारण बाबा साहेब के पूरा जीवन जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा था. बाबा साहेब ने हिन्दू जाति व्यवस्था के अन्याय के खिलाफ आंदोलन करने, दलितों को उनका हक दिलाने और पिछड़े वर्ग के लोगो को शिक्षित करने पर जोर दिया था. बाबा साहेब ने दलितों के संघर्ष के लिए अपना निजी जीवन भी अनदेखा किया था. जिसके चलते बाबा साहेब को दलितों के मसीहा के रूप में जाना जाता था. उस समय बाबा साहेब हिन्दू वर्ग व्यवस्था का कटु विरोधी थे, उनके कई भाषणों में हिन्दू वर्ण व्यवस्था का विरोधाभास देखा जा सकता है. ऐसे ही एक भाषण के बारे में आज हम आपको बताएंगे. जो भाषण कभी बोला नही गया, लेकिन उस भाषण ने आगे चलकर एक किताब “जाति का विनाश” का रूप ले लिया था. जिसमे बाबा साहेब ने अछूतों के खिलाफ हिंदुओं द्वारा किए जाने वाले दैनिक अत्याचार पर सबूत दिए.
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जाति का विनाश – बाबा साहेब
‘जाति का विनाश’ किताब बाबा साहेब के उस भाषण का लिखित रूप है जो बाबा साहेब को 1936 में विशेषाधिकार प्राप्त हिन्दू जातियों के समक्ष लाहौर में देना था. लाहौर के जात-पात तोड़कर मंडल ने बाबा साहेब को इस अध्यक्षीय भाषण के लिए आमंत्रित किया था. सम्मेलन से कुछ दिन पहले ‘जात-पात तोड़कर मंडल’ ने बाबा साहेब से भाषण की एक लिखी कॉपी मांगी, ताकि भाषण को छपवाया और बटवाया जा सकते.
लेकिन जब उन्होंने बाबा साहेब का भाषण पढ़ा और उन्हें पता चला कि इस भाषण में बाबा साहेब ने अछूतों के खिलाफ हिंदुओं द्वारा किए जाने वाले दैनिक अत्याचार पर सबूत दिए है. भारत के अपनी आजादी हासिल करने से लगभग दस साल पहले बाबा साहेब ने इस भाषण को लिखा था, अंबेडकर की आलोचना का जोर इस बात पर है कि अपनी वर्तमान स्थिति में, हिंदू समाज राजनीतिक शक्ति के लिए अयोग्य है और हिन्दू धर्म के वेद को हमारे समाज में जाति व्यवस्था का कारण बताया था. लेकिन उस मंडल ने बाबा साहेब से अपना भाषण बदलने का आवेदन किया और कहा कि आप इतने तो समझदार है कि अपने भाषण के अंत में यह बता दे कि यह आपके विचार है, इन विचारो से हमारे मंडल का कोई लेना-देना नहीं है. लेकिन बाबा साहेब ने अपना भाषण बदलने से इंकार कर दिया. जिसके बाद उस सम्मेलन को रद्द करना पड़ा और बाबा साहेब का भाषण भी नहीं बोला गया.
लेकिन बाद में, बाबा साहेब ने उस भाषण को एक किताब का रूप दे दिया था. यह किताब “जाति का विनाश” नाम से जानी गयी. जिसमे बाबा साहेब ने हिन्दू वर्ण व्यवस्था, हिन्दू धर्म का पवित्र ग्रंथों वेदों और हमारे समाज की स्थति पर प्रहार किया था. बाबा साहेब ने अपनी इस किताब में कहा है कि अगर जाति का विनाश नहीं हुआ तो यह हमारे समाज का विनाश होगा.
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