स्वतन्त्रता सैनानियों द्वारा चलाएं गए स्वतन्त्रता आंदोलनों की लपते दिन प्रति दिन तेज़ होती जा रही थी, देश में असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा जैसे आंदोलनों की वजह देश से देश में गर्म गर्मी का माहौल बना हुआ था. जिसके चलते ज्यादा दिन अब ब्रिटिशो का शासन भारत में ज्यादा दिन नहीं चल सकता था, जिसकी कारण ब्रिटिश सरकार ने भारत से कुछ प्रतिनिधियों को संवैधानिक प्रक्रिया के विकास के लिए गोलमेज सम्मेलन में बुलाया था. जहाँ भारत से दलितों और पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व करने के लिए गोलमेज सम्मेलन में बाबा साहेब गए थे. इस सम्मेलन में बाबा साहेब ने ऐसा भाषण बोला था जिसके बाद ब्रिटिश सरकार को उनकी सारी बात माननी पड़ी थी, इस लेख से आज हम आपको बताएंगे कि कैसे बाबा साहेब ने अपने भाषण से अंग्रेजों को हिला दिया था.
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प्रथम गोलमेज सम्मेलन में भारत के प्रतिनिधि
4 अक्टूबर 1930 में, वायसराय ऑफ ब्रिटिश नामक जहाज में भारत से गोलमेज के लिए प्रतिनिधि रवाना हो गए थे. उस समय कोंग्रेस नहीं चाहती थी, जो नेता कांग्रेस को मानी नहीं है उन नेताओं से ब्रिटिश सरकार बात कर कोई हल निकले जिसके कारण पहले गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस ने भाग नहीं लिया था. पहले गोलमेज सम्मेलन में भारत की तरफ से 89 प्रतिनिधि शामिल हुए थे. इस गोलमेज सम्मेलन में 13 प्रतिनिधि ब्रिटिश सरकार , 76 सदस्य भारतीय रियासतों, राजनीतिक दलों, अल्पसंख्यक समुदायों, तथा दलितों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे.
बाबा साहेब का गोलमेज सम्मेलन में भाषण
पहले गोलमेज सम्मेलन में बाबा साहेब का भाषण सुनकर कट्टर हिन्दु चौक गए थे, बाबा साहेब ने गोलमेज सम्मेलन में देश में जातिवाद, हिन्दुत्व के बारे में बताया और ऐसी बातें बोली, जिन्हें सुनकर ब्रिटिश सरकार बाबा साहेब की बातों को इंकार नहीं कर सकते. बाबा साहेब का सम्बोधन इस प्रकार था…
“मैं जिन अछूतों के प्रतिनिधि के रूप में यहां उपस्थित हुवा हूँ, उनकी संख्या हिंदुस्तान की कुल जनसंख्या का पांचवा भाग है अर्थात ब्रिटेन और फ्रांस की कुल जनसंख्या के बराबर है. ऐसे भारत की कुल जनसंख्या के 5वें भाग के लोगों के प्रतिनिधित्व की हैसियत से मैं यहां आया हूं. जिन की दशा गुलामों से भी बदतर है और घृणित और पशुवत जीवन-यापन कर रहे हैं. गुलामों के मालिक भी गुलामों को छूते थे, परंतु हमें छूना भी पाप समझा जाता है. वह सदियों से शोषित हैं और उपेक्षित होता आ रहा है. सरकार बदली राज्य बदले परंतु दलितों का भाग्य बद से बदतर होता चला गया. ब्रिटिश सरकार से पहले अस्थिरता के कारण हम घृणित अवस्था में थे ब्रिटिश सरकार ने हमारी हालत सुधारने के लिए क्या कुछ किया? पहले हम गांव के कुएं से पानी नहीं भर सकते थे आज भी वही स्थिति है. गांव के कुएं से पानी तक नहीं पी सकते हैं. क्या ब्रिटिश सरकार ने हमें वह अधिकार दिलाया? ब्रिटिश राज्य से पूर्व हम मंदिरों में नहीं जा सकते थे और आज भी मंदिरों के द्वार हमारे लिए बंद है. फिर ब्रिटिश सरकार ने हम अछूतों के अधिकार के लिए क्या किया? पहले हमें पुलिस विभाग में भर्ती नहीं किया जाता था क्या अब ब्रिटिश सरकार हमें पुलिस में भर्ती करती है ?पहले भी हमें सैनिक सेवा में भर्ती नहीं किया जाता था क्या अब सेना में सेवा करने का मौका दिया जाता है?
इन प्रश्नों में से किसी का भी उत्तर हां में नहीं दिया जा सकता. डेढ़-सौ वर्ष के ब्रिटिश राज्य में हमारी हालत पहले जैसी थी, वैसे ही बदस्तूरजारी है. ऐसी सरकार से हमारा क्या भला होगा? आज अछूत भी वर्तमान सरकार के स्थान पर जनता के लिए जनता का राज्य चाहते हैं मजदूर और किसानों का शोषण करने वाले पूंजीपति और जमीदार की रक्षक सरकार हम नहीं चाहते.अपने दुख हम स्वयं दूर करेंगे. इसके लिए हमारे हाथों में सत्ता की बागडोर होनी चाहिए .क्योंकि यह वह सरकार थी जिसने पूंजीपतियों पर ध्यान दिया, जमीदारों का ख्याल रखा परंतु जिसने मजदूर व दलितों की ओर मुंह मोड़ा. वे पहले भी शोषित होते रहे और उपेक्षित ही बनी रहे. और सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वासों के अंधेरे में किराए और ढके ले जाते रहे ब्रिटिश सरकार चाहती तो कानून के द्वारा उनकी रक्षा कर सकती थी लेकिन उसने ऐसा नहीं किया जबकि उन्हें चाहिए था कि सामाजिक आर्थिक स्थिति में उसी प्रकार बदलाव लाए जाए जिस प्रकार राजनीतिक स्थिति में किए जाते रहे हैं ऐसी स्थिति में कोई भी संविधान काम नहीं कर सकता जब तक कि वह बहुमत द्वारा ही कार्य न हो बहुत समय बीत गया जब आप हुक्म चला कर फैसला करते थे और भारत उसे स्वीकार करता था अब वह समय लौट गया और मैं अब कभी लौट सकता है”.
बाबा साहेब के इस सम्बोधन के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा बाबा साहेब की सारी बातें मन ली गयी थी, दलितों को कुछ अधिकार भी मिले, लेकिन बाद में पूना पैक्ट समझौते में बाबा साहेब की सारी मेहनत भी बर्बाद हो गयी थी.
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