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जब डॉ अंबेडकर ने कोर्ट में बाल गंगाधर तिलक को हराया

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जब डॉ अंबेडकर ने कोर्ट में बाल गंगाधर तिलक को हराया
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Ambedkar vs Tilak Courtdrama Details in Hindi – महार जाति में जन्मे बाबा साहेब को हम दलितों के मसीहा और संविधान निर्माता के रूप में जानते है. लेकिन जब इनका जन्म हुआ था तो उस समय महार जाति को अछूत मानते थे, जिस कारण बाबा साहेब के पूरा जीवन जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा था. बाबा साहेब ने हिन्दू जाति व्यवस्था के अन्याय के खिलाफ आंदोलन करने, दलितों को उनका हक दिलाने और पिछड़े वर्ग, महिलाओं को शिक्षित करने पर जोर दिया था. जिसके चलते बाबा साहेब को दलितों के मसीहा के रूप में जाना जाता था. इसके साथ ही समाज में कुछ ऐसी व्यक्ति भी थे, जो महिलाओं की शिक्षा के विरोध थे और हिन्दू वर्ण व्यवस्था का समर्थन करते थे.  उनमें से एक बाल गंगाधर तिलक भी थे.

बाबा साहेब ने बहुत बार बाल गंगाधर तिलक की आलोचना भी की है. ये तो सब जानते है कि बाबा साहेब और बाल गंगाधर तिलक के बीच वैचारिक मतभेद था, लेकिन आप ये नहीं जानते होंगे कि एक बार बाबा साहेब ने बाल गंगाधर तिलक को अदालत में हराया था. दोस्तों, आईये आज हम आपको बताएंगे कि बाबा साहेब ने अदालत में रक मानहानि वाले मामले ने बाल गंगाधर तिलक को कैसे हराया था.

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जब डॉ अंबेडकर ने कोर्ट में तिलक को हराया

1926 में, गैर –ब्राह्मण आंदोलन के नेता केशवराव जेधे द्वारा ‘देशाचे दुश्मन’ यानि देश का दुश्मन नामक किताब प्रकाशित की गयी थी, जिसके लेखक सत्यशोधक दिनकरराव जवळकर है, जो गैर –ब्राह्मण आंदोलन से भी जुड़े थे. यह किताब बाल गंगाधर तिलक और विष्णुशास्त्री चिपळूणकर के विचारो की कड़ी आलोचना करती है, इस किताब में इन दोनों नेताओं पर ब्राह्मणवादी, प्रतिक्रियावादी और राष्ट्रविरोधी होने का आरोप लगाया था. और उन्हें महाराष्ट्र में दलित जातियों और मुस्लिमों के पिछड़ेपन का कारण भी बताया गया था.

इस किताब के छपने के बाद तिलक और चिपळूणकर के समर्थकों ने भारी हंगामा खड़ा कर दिया था, और साथ ही नारायण गणेश नामक व्यक्ति ने केशवराव जेधे और सत्यशोधक दिनकरराव के खिलाफ गंगाधर तिलक और विष्णुशास्त्री चिपळूणकर की मानहानि का मामला दर्ज करवा दिया था, जो खुद को बाल गंगाधर तिलक का दूर का रिश्तेदार बता रहा था. नारायण गणेश ने कहा कि इस किताब में गंगाधर तिलक और विष्णुशास्त्री चिपळूणकर की प्रतिष्ठा और चरित्र को हानि पहुंचाई है, लेकिन वे किताब के प्रकाशन के समय वे जीवित तक नहीं थे. नारायण गणेश ने केशवराव जेधे और सत्यशोधक दिनकरराव से 50 हजार रुपये का हर्जाना माँगा था और इस किताब को बैन करने की भी मांग की थी.

Ambedkar vs Tilak courtdrama – खास बात ये है कि इस मामले में केशवराव जेधे और सत्यशोधक दिनकरराव का पक्ष बाबा साहेब ने किया था, जो उस समय उसी कोर्ट में अपनी वकालत की तैयारी कर रहे थे. बाबा साहेब खुद समाजिक बदलाव व जातिगत भेदभाव ले कारण बाल गंगाधर की आलोचना करते थे. अब बाबा साहेब की इस मामले में बचाव रणनीति दो तथ्यों पर आधारित थी, पहली तो ये कि जब किताब का प्रकाशन हुआ था तो तिलक और चिपळूणकर जीवित नहीं थे तो उनकी मानहानि कैसे हो सकती है, दूसरा नारायण गणेश तिलक और चिपळूणकर के करीबी रिश्तेदार या वारिस नहीं थे तो उन्हें पास मानहानि करने का अधिकार ही नहीं था. ऐसे बाबा साहेब नमे इस मुकदमे को जीता था. और साथ ही बताया कि इस किताब का उदेश्य किसी को बदनाम करना नही बल्कि ऐतिहासिक तथ्यों से राजनीति राय व्यक्त करना था.

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