बाल गंगाधर तिलक को हम स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, समाज सुधारक, भारतीय राष्ट्रवादी और वकील के तौर पर जानते है. इनका जन्म 1956 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में हुआ था. इन्होने आजादी से पहले कॉलेज की आधुनिक शिक्षा ग्रहण करने वाले कुछ लोगो में गिना जाता था. कुछ समय तक इन्होने कॉलेज में गणित भी पढ़ाया था. 1881 में इन्होने अपना पत्रकारिता के करियर शुरू कर दिया था. इन्होने इंग्लिश में ‘मराठा’ और मराठी में ‘केसरी’ दो दैनिक समाचार पत्र शुरू किए जो जनता में काफी लोकप्रिय हुए थे. इन्होने अपने समाचार पत्रों के जरिये कई आन्दोलन चलाये थे. कई बार अपने लेखो से ब्रिटिश सरकार को भी चुनौती दी थी. लेकिन इसमें बाद भी महिलाओ की शिक्षा को लेकर इनके विचार थे कि महिलाओ को ज्यादा पढ़ना लिखना नहीं चाहिए. विधवा महिलाओं की शिक्षा के खिलाफ इन्होने अपने समाचार पत्रों के जरिए आन्दोलन भी चलाये थे.
दोस्तों, आईये आज हम आपको हमारे इस लेख से बतायेंगे की महिलाओ की शिक्षा को लेकर तिलक के क्या विचार थे ? बाल गंगाधर तिलक ने क्यों विधवा महिलाओं की शिक्षा के खिलाफ आन्दोलन चलाया था ?
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विधवा महिलाओं की शिक्षा के खिलाफ थे तिलक
हम आपको बता दे कि तिलक ने 1881 में अपना पत्रकारिता का करियर की शुरुवात कि थी. लेकिन उनका पत्रकारिता का करियर तीन चीजों के विरोधाभास से चला है. पहला है तिलक ने विधवा महिलाओं की शिक्षा का विरोध किया और कहा की महिलाओं को अंग्रेजी भाषा नहीं पढ़ानी चाहिए. दूसरा है आकाल के समय कर्जे में डूबे किसानों का विरोध किया. तीसरा देश में जाति व्यवस्था का बचाव किया था.
क्या आप जानते है कि बाल गंगाधर तिलक का कहना था कि महिलाओ को दिन में केवल 3 घंटे पढ़ना चाहिए, महिलाओ को अंग्रेजी भाषा नहीं पढ़नी चाहिए क्यों कि तिलक के अनुसार महिलाये अंग्रेजी भाषा पढ़कर साधारण गृहस्थी का जीवन नहीं जिएंगी.
तिलक के अनुसार महिलाओ को केवल देसज भाषा का ज्ञान होना चाहिए, दिन में केवल 3 घंटे स्कूल जाना चाहिए, महिलाओ को देसी भाषा का ज्ञान, नैतिक विज्ञानं और सिलाई कढाई का काम सीखना चाहिए. जिससे वह केवल घर को अच्छे से चला सके. तिलक ने महिलाओ की शिक्षा का विरोध करते हुए कहा कि अगर हमने इसकी तरफ ध्यान नहीं दिया तो, पढ़ लिख कर सारी महिलाये रक्माबाई जैसे अपने पतियों को छोड़ कर चली जायेंगी.
बाल गंगधार तिलक विधवा महिलाओ की शिक्षा के भी खिलाफ थे उन्होंने अपने समचार पत्र ‘केसरी’ में इसके विरोध आन्दोलन भी किया था, क्यों कि तिलक महिलाओं की शिक्षा हिन्दू सामाजिक व्यवस्था के अनुसार चलते थे. उनका मानना था कि महिलाओं की शिक्षा सामाजिक स्तर को बदलने के लिए नहीं, बल्कि घरेलू और परम्परिक वैवाहिक जीवन को चलाने के लिए होनी चाहिए.
एज ऑफ कंसेंट विधेयक के खिलाफ थे तिलक
1891 में, अंग्रेजो द्वारा लाया गया ऐज ऑफ कंसेंट विधेयक, जिसमे लड़की के साथ सहमति से शारीरिक सम्बंध बनाने की न्यूनतम उम्र 10 से 12 कर दी थी. बाल गंगाधर तिलक एक पत्रकार, समाज सुधारक होने के बाद भी उन्होंने ऐज ऑफ कंसेंट विधेयक का विरोध किया था. क्यों कि वह इस विधेयक को हिन्दू धर्म के विरोध देखते थे.
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