आज के समय में भगवा शब्द का अर्थ आपने मूल अर्थ से बिलकुल बदल गया है. आज के समय में भगवा शब्द आते ही हमारे सामने एक तस्वीर बनती है जो लोग भगवा रंग के ध्वज को उठा कर किसी एक धर्म को प्रमोट करते है. लेकिन इतिहास में भगवा रंग का मतलब इससे बिलकुल भिन्न था. इतिहास में भगवा रंग को किसी एक धर्म के साथ नहीं जोड़ा गया था, भगवा का शाब्दिक अर्थ ‘उतम गुणों से सम्पन’ है. भगवा रंग को लेकर हमारे समाज में बहुत सी भ्रांतिया फ़ैल गयी है. इसीलिए आज हम आपको भगवा रंग का सही इतिहास आपके लिए लेकर आए है साथ ही हम आपको बताएंगे कि बाबा साहबे भगवा रंग के बारे में, भगवा ध्वज के बारे में क्या सोचते थे?
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भगवा रंग का इतिहास
भगवा शब्द को प्रयोग पाली साहित्य में कई बार मिलता है. भगवा शब्द का मूल अर्थ इसके रंग से नहीं बल्कि ‘‘उतम गुणों से सम्पन’. भगवा शब्द का मूल अर्थ भागवत है, संस्कृत में इसका अर्थ ‘भगवान’ है. जैसे हमने बताया कि भगवा शब्द अर्थ ‘उतम गुणों से सम्पन’ होता है, बौद्ध धर्म को इतिहास में बहुत नामो से जाना जाता है, उन नामों में से एक नाम भगवा भी है. बौद्ध को भगवा भी कहा जाता था क्यों कि गौतम बौद्ध उतम गुणों से सम्पन थे. बौद्ध रंगीन चीवर पहनते थे, जिन्हें बाद में धीरे धीरे भगवा कहा जाने लगा. जिससे बाद में रंग के रूप में देखा जाने लगा था. समय के साथ बौद्ध के विचाधारा से लोग काफी प्रभावित ही हुए थे. जिसके बाद भगवा रंग धर्म के अनुसार भी बटने लगा था. बौद्ध को मानने वालो का भगवा रंग के साथ अलग ही लगाव बन गया था.
भगवा या तिरंगा, क्या थी बाबा साहेब की पहली पसंद?
बाबा साहेब भगवा रंग के मूल इतिहास से अवगत थे, जिसके कारण देश का ध्वज भगवा रंग का होने से भी उन्हें कोई समस्या नहीं थी. जब संविधान सभा में देश के झंडा का निर्धारण करना था तो बैठक में विवाद हो गया था. कुछ लोगो का कहना था कि देश का झंडा भगवा रंग का होना चाहिए, जिसके लिए बाबा साहेब भी मन गए थे, लेकिन बहुमत नहीं बनने की वजह से बाबा साहेब ने देश के झड़े में अशोक स्तंभ हो, इसीलिए तिरंगे को देश का झंडा बन दिया गया था. बाबा साहेब को देश के झंडे का महत्व भी काफी अच्छे से समझ आता था और भगवा रंग के इतिहास से भी वाखिफ थे.
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