Non Bailable offense in Hindi – भारत के संविधान में कुछ ऐसे अपराध है जो गैर जमानती धाराएं के अंतरगत आते है, वे गैर जमानती धाराएं कौन कौन सी हैं इसके बारे में बिस्तर से बताया गया है यदि किसी से गैर जमानती अपराध हो जाता है तब उसको भारत के संविधान के अनुसार जमानत देने का प्रावधान नहीं है क्योंकि गैर जमानती अपराध ऐसे अपराध हैं जिनको संगीन जुर्म माना जाता है ऐसे अपराधियों को कोर्ट में जमानत नहीं दी जाती है.
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आइए जानते हैं कौन कौन सी वो गैर जमानती धाराएं और अपराध हैं जिसमे पुलिस बिना अरेस्ट वारंट के आपको गिरफ्तार कर सकती है.
जमानत क्या है?
जमानत एक साधन/लेख-पत्र है जिसका उपयोग, आरोपी की आवश्यकता अनुसार उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए न्यायालय द्वारा किया जाता है. सीआरपीसी जमानत शब्द को परिभाषित नहीं करता है, लेकिन वास्तव में, जमानत एक ऐसा समझौता है जिसमें एक व्यक्ति अदालत में आवश्यकता अनुसार उपस्थिति और अनुबंध में निर्धारित शर्तों का पालन करने के लिए एक लिखित दायित्व पेश करता है.
अगर वह व्यक्ति समझौते के किसी भी नियम और शर्तों का अनुपालन करने में विफल रहता है तो वह एक निश्चित राशि के अर्थदंड भी आश्वासन देता है.
गैर जमानती अपराध
एक गैर जमानती अपराध के मामले में जमानत का अनुदान अधिकार का विषय नहीं है. यहां आरोपी को अदालत में आवेदन करना होगा, और जमानत का अनुदान देना या नहीं देना अदालत के विवेक पर निर्भर होगा.
अदालत आमतौर पर जमानत को मना कर सकती है, अगर: “जमानत बांड” विधिवत निष्पादित नहीं किया गया है, या यदि ऐसा अपराध किया गया है, जो मृत्युदंड या आजीवन कारावास से दंडनीय है जैसे “हत्या” या “बलात्कार” या अभियुक्त के रूप में फरार होने का प्रयास किया है, और उसकी पहचान संदिग्ध है.
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जमानत के लिए आवेदन मजिस्ट्रेट, जिसके विचाराधीन मामला है, के सामने दर्ज किया जाएगा. दायर होने के बाद आवेदन आम तौर पर अगले दिन सूचीबद्ध होता है. उस दिन, आवेदन सुन लिया जाएगा, और पुलिस अभियुक्त को अदालत में पेश भी करेगी. मजिस्ट्रेट को अगर सही लगता है तो जमानत का आदेश पारित कर सकता है.
अरेस्ट के लिए नहीं पड़ती वारंट की जरूरत
यदि किसी अपराधी के द्वारा संगीन जुर्म किए जाते हैं जैसे कि राष्ट्रद्रोह, बलात्कार, हत्या इन अपराधों को संगीन जुर्म की कैटेगरी में रखा गया है इन अपराधों को करने पर पुलिस को किसी भी अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए वारंट की आवश्यकता नहीं पड़ती. ऐसे मुजरिम पुलिस के हाथ से निकल ना जाए उनको गिरफ्तार कर सकती है और उनको यह करने के लिए वारंट की आवश्यकता नहीं पड़ती.
यदि कोई अपराधी इस तरह के जुर्म करता है उसे गैर जमानती अपराध की कैटेगरी में रखा गया है और पुलिस को यह भी अधिकार प्रदान किया गया है कि वह कोर्ट की अनुमति के बिना किसी भी अपराधी के खिलाफ तहकीकात कर सकती हैं. यदि अपने जमानत के लिए याचिका डाली है तो अदालत इस केस की संगीनता पर अपने विवेक से फैसला ले सकती है.
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IPC की गैर जमानती धाराएं
भारतीय संविधान की दंड सहित में गैर जमानती अपराध में रेप, हत्या की कोशिश, डकैती, लूट, फिरौती के लिए अपहरण और गैर इरादतन हत्या जैसे अपराध आते है. गैर जमानती अपराध भारतीय संविधान की दंड सहित में IPC की धरा इस प्रकार है- 115, 121, 121क, 122, 123, 124, 124क, 125 से 128, 130 से 134, 136, 153क, 153ख, 161, 170, 194, 195, 231 से 235, 237, 238, 239, 244 से 251, 255 से 258, 267, 295, 295क, 302, 303, 304, 304ख, 305, 306, 307, 313 से 316, 326 से 329, 331, 333, 363क, 364, 365, 366क, 366ख, 367, 368, 369, 373, 379 से 382, 384, 386क, 364, 365, 366क, 366ख, 367, 368, 369, 373, 379 से 382, 384, 386, 387, 392 से 402, 406 से 409, 411 से 414, 436 से 438, 449 से 457, 461, 466, 468, 477क, 482, 483, 489क, 505.
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