Kanshiram statement on Democracy – 15 मार्च 1934 को पंजाब में जन्मे कांशीराम को हम राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक के तौर पर जानते है, उन्होंने भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की राजनीति की दशा ही बदल दी थी, कांशीराम ने गाय, गीता और गंगा की संस्कृति में बंधे उत्तर प्रदेश में अम्बेडकर की विचारधारा ऐसी फैलाई की पूरा देश देखकर दंग रह गया था. सब कांशीराम के काम करने के तरीके को देख कर हैरान होते थे कि एक दलित और गरीब परिवार के लड़के ने खुद की पार्टी बना कर, बीजेपी जैसी पार्टी को हरा दिया था.
कांशीराम ने अपने जीवन में बाबा साहेब और फूले को बहुत मानते थे और उनके क़दमों पर ही चलकर उन्होंने हमारे समाज में जातिगत भेदभाव को खत्म करने के लिय संघर्ष किया. दलितों को उनके हक दिलाने के लिए उन्होंने जीवन भर लड़ाई जारी रखी. इसके साथ ही उन्होंने कई किताबे लिखी जिनमें सबसे चर्चित किताब ‘चमचा युग’ है, जिसमें उन्होंने कांग्रेस और गांधी का विरोधाभास किया. दोस्तों, आज हम आपको इस लेख में बताएंगे कि कांशीराम को क्यों लगता था कि भारत में कोई लोकतंत्र नहीं है.
और पढ़ें : दलितों के मसीहा कांशीराम की इन 7 प्रतिज्ञाओं के बारे में जानिए यहां
भारत में कोई लोकतंत्र नहीं है – कांशीराम
कांशीराम ने सरकार के संविधान में मनमाने तरीके से संशोधन करने को पूंजीपतियों और मनुवादी समाजों के लोगों हित में बताया. कांशीराम के अनुसार, इन लोगों का ध्यान कभी भी बहुजन समाज और पिछड़े वर्ग की तरफ नहीं जाता. बहुजन समाज और पिछड़े वर्ग की याद सिर्फ चुनाव के समय ही आती है. जैसे वर्तमान सरकार द्वारा 10 प्रतिशत गैर-संवैधानिक सवर्ण आरक्षण, पूंजीपतियों को दिए गए लाखों-करोड़ों रुपए की छूट और एनपीए की वसूलीइस बात का ही उदहारण है. जैसे बहुतम की सरकारे कैसे काम करती है.
Kanshiram statement on Democracy – कांशीराम ने बार-बार चुनाव की महत्वता पर जोर दिया है, कि चुनाव लोकतंत्र के लिए कितना जरूरी होता है लेकिन हमारे देश की चुनाव प्रणाली को देखकर कांशीराम ने कहा है ‘भारत में कोई लोकतंत्र नहीं है’ हमारे देश को बेहतर चुनाव प्रणाली की आवश्यकता है. कांशीराम के अनुसार बार-बार चुनाव होने चाहिए इसे अल्पमत की सरकार बनने से वे जन सरोकार के मुद्दों पर ध्यान देने के लिए विवश होंगी, पूंजीपतियों के हित में में काम नही होगा और जनता को हमेशा नए अवसर मिलते रहेंगे.
कांशीराम के अनुसार, दलितों एवं वंचितों से चुने जाने वाले जनप्रतिनिधि कमजोर रहे है. ऐसे प्रतिनिधि खुद को चुनने वाली जनता से ज़्यादा अपनी पार्टी के प्रति वफ़ादार होते रहे, इससे वह दलितों के प्रतिनिधि न होकर अपनी पार्टी के प्रतिनिधि होते है. कांशीराम के अनुसार राजनीतिक पार्टियों भी लोकतंत्र की समाप्ति की वजह बनती जा रही है.
और पढ़ें : जानिए कांशीराम को राष्ट्रपति क्यों बनाना चाहते थे वाजपेयी